Bareilly News: 08 अगस्त को शुरू हुआ था ''भारत छोड़ो आंदोलन'' जानिए आंदोलन से जुड़े कुछ तथ्य

Bareilly News: मुफ़्ती सलीम नूरी ने ई-पाठशाला के माध्यम से छात्रों को बताया कि पहली बार गाँधी जी ने दिया था ''मरो या मारो'' का नारा।

Written By :  Vivek Singh
Published By :  Pallavi Srivastava
Update: 2021-08-09 04:36 GMT

‘‘भारत छोड़ो आंदोलन’’ की तस्वीर pic(social media)

Bareilly News: महात्मा गांधी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' की योजना बनाई। इसके लिए 08 अगस्त 1942 की तारीख तय की गई। 'भारत छोड़ो आंदोलन' को पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जाएगा। इसी क्रम में ई-पाठशाला के माध्यम से छात्रों को इस दिन के बारे में बताया गया।

अगस्त का महीना स्वतंत्रता संग्राम के कई आंदोलनों से विशेष रिश्ता रखता है। इसी महीने की 08 तारीख़ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण दर्जा रखती है। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फ़ाज़िले बरेलवी साहब के स्थापित कर्दा मदरसा मंज़रे इस्लाम दरगाहे आला हज़रत की ई-पाठशाला द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की युवाओं और छात्रों को जानकारी देते हुए आज इन ख़्यालात और विचारों को व्यक्त किया।

भारत की स्वतंत्रता में मील का पत्थर साबित हुआ था गाँधी जी का 'भारत छोड़ो आंदोलन' pic(social media)

मदरसा मंज़रे इस्लाम दरगाहे आला हज़रत बरेली के वरिष्ठ शिक्षक और बुद्विजीवी मुफ़्ती सलीम नूरी ने कहा कि 08 अगस्त 1942 ई0 की रात में सर्व भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुम्बई अधिवेशन में गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का शुभारम्भ किया। जिसमें वह नारा अपनाया गया कि जिसे सबसे पहले यूसुफ़ मेहर अली ने स्वतंत्रता संग्राम के योद्वाओं में जोश व खरोश पैदा करने के लिये दिया था। यूसुफ़ मेहर अली मुम्बई के एक बहुत अमीर घराने से संबंधित थे। उनके पिता जी का मुम्बई में बहुत बड़ा कपड़े का मील था। भारत छोड़ो आंदोलन भारत की स्वतंत्रता और हिंदुस्तान की आज़ादी में मील का पत्थर साबित हुआ।

मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि मदरसा मंज़रे इस्लाम की ई-पाठशाला द्वारा समय समय पर स्वतंत्रता संग्राम के योद्वाओं और क्रांतिकारियों की देश के लिये दी गयी कुर्बानियों के इतिहास की जो जानकारी मुफ़्ती सलीम नूरी द्वारा दी जा रही है उससे युवाओं में एक उत्साह है और आपसी सौहार्द का वातावरण बनाने में इससे काफ़ी योगदान प्राप्त हो रहा है। नासिर कुरैशी ने बताया कि आज के ऑनलाईन कार्यक्रम द्वारा मुफ़्ती सलीम नूरी ने भारत छोड़ो आंदोलन के संबंध में युवाओं को भरपूर जानकारी देते हुए बताया कि 1857 ई0 के जन आंदोलन के बाद देश की आज़ादी के लिये चलाये जाने वाले सभी आंदोलनों में 1942 ई0 का भारत छोड़ो आंदोलन सबसे विशाल और सबसे प्रभावी आंदोलन साबित हुआ।

'भारत छोड़ो आंदोलन' भारत के इतिहास में ''अगस्त क्रांति'' के नाम से भी जाना जाता है

इस आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश राज्य की नींव पूरी तरह से हिला डाली थी। आंदोलन के ऐलान करते समय ही गाँधी जी ने कहा था कि मैंने कांग्रेस को बाज़ी पर लगा दिया। यह जो लड़ाई छिड़ रही है वह एक सामूहिक लड़ाई है यही वजह है कि 1942 ई0 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत के इतिहास में ''अगस्त क्रांति'' के नाम से भी जाना जाता रहा है। यही वह आंदोलन है कि जिस ने सम्पूर्ण भारत को संगठित कर दिया था। यह आंदोलन भारतीयों के आपसी सौहार्द की अनूठी मिसाल था। जिसमें हर हिंदुस्तानी चाहे वह हिंदू हो कि मुसलमान सिख हो या किसी और मज़हब का मानने वाला सबने अपनी जान व माल और इज्ज़त व आबरू को दांव पर लगाकर इस आंदोलन में हिस्सा लिया था। इस आंदोलन की भव्यता को देखकर अंग्रेज़ी साम्राज्य में ज़लज़ला आ गया था।

इसलिये उसने इस आंदोलन को कुचलने के लिए क्रूरता के साथ बल प्रयोग किया जिसकी वजह से भारत छोड़ो आंदोलन में 940 लोग मारे गये, 1630 लोग घायल हुए और 60229 लोगों को गिरफ़्तार किया गया।

ब्रिटिश साम्राज्य ने कांग्रेस को एक ग़ैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया था

स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अधिकांश योद्वाओं और क्रांतिकारियों को ब्रिटिश फ़ौज ने गिरफ़्तार करके जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया। अंहिसा का पाठ पढ़ाने वाले गांधी जी ने इसी आंदोलन में पहली बार करो या मरो की बात कही थी। 09 अगस्त 1942 ई0 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ़्तार करके ब्रिटिश साम्राज्य ने कांग्रेस को एक ग़ैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया। इस आंदोलन के खिलाफ़ ब्रिटिश हुकूमत ने सख्ती का परिचय तो ज़रूर दिया मगर हिंदुस्तान के देश प्रेमियों की एकजुटता और उनके आपसी सौहार्द तथा उनके उग्र रूप को देखकर ब्रिटिश हुकूमत ने इस बात का संकेत दे दिया कि द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद भारत को एक आज़ाद मुल्क घोषित कर दिया जायेगा।

इसी आंदोलन की वजह से गांधी जी, यूसुफ़ मेहर अली, लाल बहादुर शास्त्री, जय प्रकाश नारायण, मिस्टर अबुल कलाम आज़ाद जैसे बहुत से लीडरों को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। आंदोलनकारियों की कुर्बानियाँ रंग लायीं और हमारा देश 15 अगस्त 1947 ई0 को आज़ाद हो गया। समस्त देशवासियों को इन क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता संग्रामियों और इन देश प्रेमियों की कुर्बानियों को याद रखते हुये देश में आपसी सौहार्द क़ायम करने के प्रयास करते रहना चाहिये ताकि इन योद्वाओं का लहू और इनकी कुर्बानियाँ बेकार न जायें और देश तरक्की की राह पर आग्रसित रहे।

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