संतों में संग्राम, आस्था की लुटिया डुबोता संघर्ष 

Update: 2017-09-22 07:11 GMT

जिन हाथों में माला होनी चाहिए, उनमें भाला तना है। जिस जुबान पर राम नाम होना चाहिए, वहां से मुंहफट गालियां निकल रही हैं। धर्मभीरु समाज जिनमें भगवान का रूप निहारता है, उनमें दानव दिख रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से कुछ संतों के बीच उभरा विवाद कुछ ऐसे ही हालात पैदा किए हुए है। संतों में विवाद कोई नया नहीं है। कभी शंकराचार्यों की पीठों को लेकर, कभी अखाड़ों के महामंडलेश्वर बनाने पर तो कभी आचार्यों और संप्रदायों के बीच कौन छोटा-कौन बड़ा के मसले पर। लेकिन ताजा विवाद ने संत परंपरा की मान्यताओं पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं, वह भी प्रयागराज में डेढ़ साल बाद होने वाले अर्धकुंभ से पहले। यह विवाद इतना बढ़ता दिख रहा है कि कुछ संत एक दूसरे को नंगा करने पर आमादा हैं। आस्था पर घात-प्रतिघात किया जा रहा है। इससे न केवल संतों की बदनामी हो रही है, वरन सनातन धर्म को भी भारी क्षति पहुंच रही है। कौन हैं इसके जिम्मेदार, कैसे हो सकता है समाधान। पूरे हालात की पड़ताल करती

आरबी त्रिपाठी की रिपोर्ट-

लखनऊ: शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को अखाड़ा परिषद की उस घोषणा पर घोर अचरज है, जिसमें १४ संतों को नकली बताया गया है। शंकराचार्य जो इन अखाड़ों के सर्वोच्च प्रमुख होते हैं, ने सवाल किया कि अखाड़ा परिषद को किसी संत को नकली या असली घोषित करने का अधिकार है क्या? किसी भी शंकराचार्य पीठ ने अखाड़ा परिषद को ऐसा कोई आदेश दिया है क्या? शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती कहते हैं कि अखाड़ा परिषद ने धर्म, कानून और भक्तों की भावनाओं के विपरीत फैसला लेकर यह घोषणा की है।

ऐसे निर्णय अखाड़ा परिषद के दायरे में आते ही नहीं। यह अनाधिकार चेष्टा है। निजी अहंकार के कारण ऐसी घोषणाओं से सनातन धर्म और गुरु परंपरा को भारी क्षति पहुंचेगी। सनातनधॢमयों को इससे सावधान रहना होगा। शंकराचार्य का यह कथन ही संतों के बीच विवाद की पराकाष्ठा समझने के लिए काफी है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पिछले दिनों एक सूची जारी की जिसमें 14 संतों को फर्जी संत करार दिया गया है। यह सूची बिना मांगे ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई, जो स्वयं संतों के एक संप्रदाय का नेतृत्व करते हैं। सूची उन्होंने रख तो ली, लेकिन कोई टिप्पणी नहीं की। यह बात दीगर है कि अखाड़ा परिषद ने मुख्यमंत्री कार्यालय से बाहर आकर दावा कि मुख्यमंत्री ने परिषद की इस पहल का स्वागत किया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की यह एकतरफा घोषणा थी, शासन की नहीं। उनकी घोषणा के बाद सवाल पूछने पर शासन की तरफ से एक शब्द भी इस पर नहीं बोला गया। मतलब साफ है कि शासन साधु समाज का सम्मान करते हुए उसकी समस्याओं पर तो ध्यान देने का इच्छुक है, पर उनके आपसी पचड़े से दूर ही रहना चाहता है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या सरकार के प्रवक्ताओं की तरफ से संतों के विवाद पर या किसी तरह की कार्रवाई की बात पर कोई टिप्पणी नहीं की गई। जबकि अखाड़ा परिषद की ओर से अब तक धमकियों भरी बात कही जा रही है कि वह और भी ऐसे संतों की सूची जारी करेगा जिन्हें वह फर्जी मानता है। ऐसी धमकी भरी बातों से संत समाज में आक्रोश बढ़ रहा है।

पिछले दिनों हरियाणा समेत अनेक क्षेत्रों में अपना जाल-बट्टा फैलाए डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को अदालत ने दो साध्वियों से दुराचार के आरोप में बीस साल की सजा सुना दी। वह जेल चला गया। इसी हालात का फायदा उठाते हुए अखाड़ा परिषद ने विवादों से घिरे कुछ संतों की सूची बना डाली। इस सूची में ज्यादातर वही लोग शामिल हैं जो या तो सरकारों का कोपभाजन रहे हैं या फिर अदालत से सजा पा चुके हैं।

गुरमीत राम रहीम, हरियाणा के ही बाबा रामपाल, जेल में बरसों से सजा काट रहे आसाराम बापू, दक्षिण के स्वामी नित्यानंद जैसे कुख्यात लोग इस सूची में तो हैं ही, अखाड़ा परिषद अध्यक्ष नरेंद्र गिरि से विवादों के चलते उनके आंखों की किरकिरी बने इलाहाबाद के आचार्य कुशमुनि स्वरूप भी इस सूची में शामिल कर लिए गए। इतना ही नहीं इलाहाबाद से ही ओम नम: शिवाय समूह शुरू कर उत्तर प्रदेश के कई शहरों में अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ा लेने वाले लाल महेंद्र प्रताप सिंह का नाम भी इस सूची में शामिल है।

लाल महेंद्र की ओर से कुछ विरोधी स्वर तो निकले, लेकिन आचार्य कुशमुनि ने तो अखाड़ा परिषद अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की जड़ों में मट्ठा डालने जैसा संकल्प ले लिया। वह घूम-घूमकर संतों के बीच अपना पक्ष तो मजबूत कर ही रहे हैं, अखाड़ा परिषद के खिलाफ माहौल भी बना चुके हैं।

शंकराचार्य, अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष और मठाधीश भी खफा

इस सूची को जारी करने के बाद अखाड़ा परिषद पर शंकराचार्यों की भौंहें तन गई हैं। कई मठों के संत नाराज हो गए हैं। और तो और अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष महंत ज्ञानदास खासे खफा हैं। तभी तो फर्जी साधुओं की सूची का नाम लेते ही महंत ज्ञानदास कहते हैं कि क्या समाज या सरकार ने परिषद से इस बात का अनुरोध किया कि आप किसी को असली या नकली बताने लगें। क्या किसी शंकराचार्य ने अखाड़ा परिषद को आदेश दिया है कि आप अमुक व्यक्ति को दंडित करें, यह सनातन धर्म पर आघात कर रहा है।

अगर ऐसा नहीं है तो फिर अखाड़ा परिषद किस अधिकार से किसी को असली या नकली साबित कर रहा है। संत के बाने में कुकर्म करने वाले जो लोग अपनी करनी का फल स्वयं भोग रहे हैं, सरकार और अदालत उन्हें दंडित कर रही है, ऐसे में उन्हें नकली घोषित करने का क्या मतलब। समाज की नजर में वह खुद नकली साबित हो चुके हैं। मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली तर्ज पर कुछ लोग सस्ती राजनीति कर रहे हैं और मनमानी पर उतारू हैं। ऐसे लोग खुद ही संत समाज की बदनामी करा रहे हैं।

वैधानिकता पर उठे सवाल

महंत ज्ञानदास अखाड़ा परिषद की वैधानिकता पर ही सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि जो अखाड़ा परिषद स्वयं अपूर्ण है, वह कार्रवाई क्या करेगा। इसमें वैष्णवों का प्रतिनिधित्व ही नहीं। सब मनमानी है। इस तरह की कार्रवाई का कोई मतलब नहीं। जाहिर है कि अखाड़ा परिषद की ओर से जल्दबाजी में लिए गए निर्णय से संत समाज में विवाद खड़ा हो गया है।

संत समाज किसी को संत घोषित करने या उसे असंत साबित करने के लिए अखाड़ा परिषद को सक्षम नहीं मानता।

यही वजह है कि वाराणसी स्थित मछली बंदर मठ के महंत और अखिल भारतीय दंडी संन्यासी प्रबंधन समिति के अध्यक्ष स्वामी विमल देव आश्रम कहते हैं कि भगवा चोले में कोई अपराध कर रहा है तो उसके लिए शासन और अदालत है जो उसे दंडित करेगी। फर्जी और असली होने की परिभाषा अखाड़ा परिषद कैसे तय सकता है। जिसे शासन ने पकड़ लिया है,अदालत ने अपराधी घोषित कर दिया है उसे कोई और कौन दंड दे सकता है। स्वामी विमलदेव आश्रम अखाड़ा परिषद की कार्रवाई पूरी तरह असहमत हैं। विवाद इतना बढ़ गया है कि कुछ महामंडलेश्वर भी नाराज हो चले हैं जबकि उनकी सत्ता और सम्मान अखाड़े ही स्वीकारते और बढा़ते हैं।

नरेंद्र गिरि पर करोड़ों की जमीन बेचने का आरोप

अखाड़ा परिषद का विरोध करने वाले आचार्य कुशमुनि स्वरूप कहते हैं कि यह वही नरेंद्र गिरि हैं जिन्होंने इलाहाबाद के अल्लापुर मुहल्ले में बाघम्बरी गद्दी की करोड़ों की जमीन बेच डाली। पिछली सरकार में आजम खां से गले मिलते थे। उन्हें डेढ़ किलो चांदी का मुकुट पहनाकर प्रशस्तिपत्र भेट किया था। अखिलेश यादव के चक्कर काटते थे। चुनाव का टिकट मांग रहे थे। और तो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ न केवल अपना उम्मीदवार खड़ा कराया था, वरन समाजवादी पार्टी की जीत के लिए यज्ञ भी कराया था।

अब जब देखा कि यूपी में भाजपा की सरकार आ गई तो बचाव के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंच बनाने में जुट गए हैं। कुशमुनि सरकार से मांग करते हैं कि नरेंद्र गिरि की पूरी जांच कराई जाए तो इनका सारा कच्चा चिट्ठा सामने आ जाएगा कि वास्तव में वे क्या हैं। विहिप की पंचकोशी परिक्रमा का विरोध तक इन्होंने किया था। दरअसल, नरेंद्र गिरि सरकार से सुरक्षा लेकर समाज में अपनी हैसियत बढ़ाना चाहते हैं। इसीलिए सूची बनाने और सरकार से मेलजोल बढ़ाने का नाटक कर रहे हैं।

उधर महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि जो लोग संत का चोला ओढक़र फर्जी काम कर रहे थे, उन्हें संत समाज से बाहर किया जाएगा तो अपने बचाव में वह कुछ न कुछ तो आरोप लगाएंगे ही। अखाड़ा परिषद किसी की धमकी के सामने झुकने वाला नहीं है। हम अभी और लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे।

कहां-कहां हुआ विवाद

बार और डिस्कोथेक चलाने वाले सचिन दत्ता नामक व्यक्ति को अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर की पदवी से नवाजा था। प्रयाग में हुए इस आयोजन में उनके साथ पंचाग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि भी शामिल थे। उस समय आरोप लगा था कि अखाड़ा परिषद ने यह पदवी देने में आॢथक भ्रष्टाचार किया है। बाद में प्रशासनिक कार्रवाई पर सचिन दत्ता की कलई खुल गई तो अखाड़ा परिषद ने उसकी पदवी छीन लेने का दावा किया।

इससे पहले हरिद्वार में शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के स्थान पर भूमापीठाधीश्वर अच्युतानंद तीर्थ को शंकराचार्य घोषित कर दिया गया था। तब भी संत समाज और अखाड़ा परिषद में विवाद हुआ था। विवाद उस समय भी खड़ा हुआ था जब नरेंद्र गिरि ने राम जन्मभूमि के खिलाफ के मुकदमा लडऩे वाले बाबरी मस्जिद के पक्षकार हासिम अंसारी से आशीर्वाद लेते हुए उनका हाथ अपने सिर पर रखवाया। संतों को तब बहुत नागवार गुजरा था।

पीछे का खेल

अखाड़ों में चल रही राजनीति पर नजर रखने वाले संत कहते हैं कि यह सारा मायाजाल प्रयागराज में होने वाले अर्धकुंभ के मद्देनजर फैलाया जा रहा है। मकसद सरकार की नजरों में खुद को ताकतवर दिखाकर मेला क्षेत्र में सुख-सुविधाएं जुटाना, अपने-अपने अखाड़ों के लिए सरकार से निर्माण संबंधी कुछ सहायता हासिल करना भी है। इस आशंका की पुष्टि भी पिछले दिनों हुई अखाड़ा परिषद के बैनर तले मुख्यमंत्री से मिलने आए दर्जन भर साधुओं की बातों से हुई। इन साधुओं में से कुछ ने कहा भी कि सरकार हमारे अखाड़ों में स्थायी निर्माण कराने की बात कह रही है।

हालांकि सरकार की ओर से इस पर कोई अधिकृत बयान नहीं जारी किया गया कि वह अखाड़ों के मुकामों पर कोई निर्माण कराएगी या नहीं। जाहिर है कि ऐसे ही वितंडा फैलाकर कुछ सुविधाएं बटोरना कुछ अखाड़े वालों का एक बड़ा मकसद हो सकता है। ये वही साधु-संत हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के यहां भी चक्कर काटते रहे हैं।

अखाड़ा परिषद इन्हें कह रहा फर्जी संत

आसाराम बापू, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, सच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम, ओमबाबा उर्फ विवेकानंद, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति, स्वामी असीमानंद, ऊँ नम: शिवाय बाबा, नारायण साईं, बाबा रामपाल, आचार्य कुशमुनि, बृहस्पति गिरि, बाबा मलखान सिंह।

vasudevananad sarswati

अखाड़ा परिषद ने धर्म, कानून और भक्तों की भावनाओं के विपरीत फैसला लेकर यह घोषणा की है। ऐसे निर्णय अखाड़ा परिषद के दायरे में आते ही नहीं। यह अनाधिकार चेष्टा है। निजी अहंकार के कारण ऐसी घोषणाओं से सनातन धर्म और गुरु परंपरा को भारी क्षति पहुंचेगी। सनातनधर्मियों को इससे सावधान रहना होगा।

स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती

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