समाजवादी एंबुलेंस सेवा पर विवाद, घोटाले के आरोपों पर कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
सरकारी खजाने से जीवीके कंपनी को करोड़ों रुपये का भुगतान किया जा रहा है परन्तु कंपनी की कार्य प्रणाली पर निगरानी के लिए राज्य सरकार की तरफ से कोई मैकेनिज्म नहीं बनाया गया है।
लखनऊ: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट समाजवादी 108 और 102 एंबुलेंस सेवा को झटका लगा है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने योजना में वित्तीय अनियमितताओं और अन्य आरोपों पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि क्यों न पूरे मामले की सीबीआई से प्रारंभिक जांच करवाई जाए। यह आदेश जस्टिस एसएन शुक्ला एवं जस्टिस एके सिंह प्रथम की बेंच ने जारी किया।
जांच की मांग
-हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि इन प्रोजेक्ट्स के क्रियान्वयन में गंभीर घोटाले हुए हैं, जिनकी सीबीआई से प्रारंभिक जांच कराई जाय और हेराफेरी के प्रथम दृश्टया साक्ष्य मिलने पर नियमित केस दर्ज कर विवेचना की जाय।
-याचिका में यह भी मांग की गई है कि एबुंलेंस सेवा के लिए ठेकेदार कंपनी के बिलों का मूल रिकॉर्ड से सत्यापन कराया जाय।
-याचिका में उक्त प्राइवेट कंपनी के 2012 से अब तक समस्त पीडीआर (पेशेंट डाटा रिकॉर्ड), पेशेंट केयर रिकॉर्ड (पीसीआर) व डीबीआर (ड्राप बैक रिकार्ड) तलब कर बिलों के भुगतान के सत्यापन की मांग की गई है।
-यह जनहित याचिका अमित मिश्र और जगदेव वर्मा की ओर से दायर की गई थी।
-याचिका पर बहस करते हुए वकील रवि सिंह सिसोदिया का तर्क था कि राज्य सरकार ने 11 नवंबर 2011 को प्रदेश में इमरजेंसी मेडिकल ट्रांसपोर्ट के संचालन हेतु आंध्र प्रदेश की मेसर्स जीवीकेईएमआरआई लिमिटेड कंपनी को ठेका जारी किया।
-ठेके के अनुसार कंपनी को प्रति एंबुलेंस प्रति माह 1 लाख 17 हजार रुपये पेमेंट करना था।
-2012 में शुरू हुई इस योजना में प्रति एबुंलेंस दिए जाने वाले भुगतान में प्रत्येक वर्ष 10 प्रतिशत बढ़ोतरी होना भी तय की गई थी।
-वर्तमान में प्रदेश भर में करीब 1488 एबुंलेंस 108 सेवा के तहत चल रही हैं जिसका तात्पर्य है कि हजारों करोड़ रुपया उक्त प्राइवेट कंपनी को भुगतान किया जा रहा है।
-फिर सरकार ने 19 जुलाई 2013 को जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती महिलाओं और बीमार शिशुओं के लिये 102 एंबुलेंस सेवा शुरू की।
-इका ठेका मुख्यमंत्री के निर्णय पर उसी कंपनी को दिया गया जो 108 एबुंलेंस सेवा संचालित कर रही है।
-102 सेवा में भी 2270 एम्बुलेंस चलायी जा रही हैं जिसके लिए भी अलग से करोड़ों का पेमेंट किया जा रहा है।
घोटाले के आरोप
-वकील सिसोदिया ने कहा कि सरकारी खजाने से जीवीके कंपनी को करोड़ों रुपये का भुगतान किया जा रहा है परन्तु कंपनी की कार्य प्रणाली पर निगरानी के लिए राज्य सरकार की तरफ से कोई मैकेनिज्म नहीं बनाया गया है।
-जबकि सरकार और कंपनी के बीच हुए करारों में इस बात का स्पष्ट जिक्र था कि सरकार कंपनी के बिलों आदि की निगरानी के लिए एक एजेंसी का गठन कर सकती है।
-याचिका में स्वास्थ्य मंत्री के पत्रों का हवाला देकर कहा गया कि घोटाले से जुड़े लोगों की ताकत इसी से पता चलती है कि मंत्री द्वारा पूरे मामले में उच्च स्तरीय समिति बनाकर जांच के लिए की गई संस्तुति पर भी आला सरकार अफसरों ने कोई ध्यान नहीं दिया।
-यहां तक कि मंत्री द्वारा उक्त कंपनी के बिल भुगतान पर रोक लगाए जाने के बावजूद कंपनी को भुगतान लगातार किया जा रहा है।
-जवाब में जीवीके कंपनी की ओर से याचिका का विरोध करते हुए वरिष्ठ वकील एसके कालिया ने कहा कि याचिका छद्म रूप से दाखिल की गई है जो पोषणीय नहीं है।
-सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि क्या उक्त मंत्री अब भी सरकार में हैं।
-जवाब मिलने पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि क्या मंत्री असहाय हो गये है जिनके आदेश के बावजूद जांच नहीं हो रही है।
-कोर्ट के सख्त रुख पर राज्य सरकार के वकील ने मंत्री के पत्रों पर कार्यवाही की जानकारी के लिये समय मांगा।
-इस पर कोर्ट ने समय देते हुए कार्यवाही से कोर्ट को अवगत कराने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 20 मार्च को होगी।