Lok Sabha Election 2024: स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम शेरवानी को सबक सिखाने के लिए शिवपाल को उतारा मैदान में, सपा के लिए नाक का सवाल बनी बदायूं सीट
Samajwadi Party: आने वाले लोकसभा चुनाव में बदायूं सीट पर सबसे दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। समाजवादी पार्टी ने शिवपाल यादव को यहां से उतार कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। सपा ने यहां से पहले धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन बदले समीकरणों में धर्मेंद्र के स्थान पर शिवपाल यादव को प्रत्याशी बनाया गया है।
Samajwadi Party: आने वाले लोकसभा चुनाव में बदायूं सीट पर सबसे दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। समाजवादी पार्टी ने शिवपाल यादव को यहां से उतार कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। सपा ने यहां से पहले धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन बदले समीकरणों में धर्मेंद्र के स्थान पर शिवपाल यादव को प्रत्याशी बनाया गया है।
कभी सपा का गढ़ थी बदायूं लोकसभा सीट-
कभी बदायूं समाजवादी पार्टी के लिए एक आसान सीट हुआ करती थी। यहां यादव और मुसलमान वोटों का समीकरण ऐसा बनता था कि समाजवादी पार्टी का प्रत्य़ाशी आसानी से जीत जाता था, लेकिन 2019 में बीजेपी ने यहां से स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी को टिकट देकर ओबीसी वोट में सेंधमारी की और कांग्रेस से सलीम शेरवानी के लड़ने से मुसलिम वोट बंटा और संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव से यह सीट छीन ली।
मौर्य और शेरवानी के सपा ने नाराज होने से समीकरण बदला-
इस बार जब तक स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में थे तब तक सपा को लगता था कि यह सीट वह बीजेपी से छीन लेगी। इस बार सलीम शेरवानी भी सपा के साथ थे और इस सीट को धर्मेंद्र यादव के लिए सुरक्षित माना जा रहा था। इसी बीच घटनाक्रम तेजी से बदला और स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी छोड़ दी इसके साथ ही सलीम शेरवानी भी सपा से नाराज हुए और उन्होंने भी पार्टी का पद छोड़ दिया। दोनों नेता समाजवादी पार्टी से राज्यसभा के प्रत्याशियों के चयन से नाराज थे। इन नेताओं के सपा से अलग होने के बाद धर्मेंद्र की राह कठिन हो गई थी।
कठिन समय में अखिलेश को चाचा याद आए-
ऐसे में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को अपने चाचा शिवपाल यादव की याद आई। दरअसल शिवपाल यादव की चुनाव प्रबंधन क्षमता से सभी वाकिफ हैं। इसके साथ ही उनका कार्यकर्ताओं से कनेक्ट भी सपा के अन्य नेताओं के काफी बेहतर है। शिवपाल यादव सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं और प्रदेश भर में उनका बढ़िया नेटवर्क है। शिवपाल यादव की इन्हीं क्षमताओं के देखते हुए अखिलेश यादव ने धर्मेंद्र यादव को हटाकर उन्हें मैदान में उतारा। धर्मेंद्र यादव इससे पहले भी आजमगढ़ का लोकसभा का उपचुनाव हार चुके हैं। आजमगढ़ भी सपा के लिए बहुत मुफीद सीट थी। यहां से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सांसद चुने गए थे।
शिवपाल यादव को चुनाव लड़ाकर समाजवादी पार्टी स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम शेरवानी को जवाब देना चाहती है। दोनों ने ही ऐन चुनाव से पहले जिस तरह से अखिलेश यादव को झटका दिया है उससे अखिलेश यादव इन्हें सबक सिखाना चाहते हैं। और इसके लिए उन्हें चाचा शिवपाल यादव से बेहतर कोई नेता नजर नहीं आया।
बीजेपी का पलड़ा अब भी भारी-
अब बात करते हैं बीजेपी की जिसने 2019 में सपा का गढ़ रही यह सीट उससे छीन ली थी। बीजेपी किसी भी कीमत पर यह सीट अब गंवाना नहीं चाहेगी। अब देखना यह है कि बीजेपी स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को दोबारा टिकट देती है या नहीं। हालांकि स्वामी के अखिलेश यादव से अलग होने और अखिलेश पर प्रहार करने के बाद इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि संघमित्रा को दोबारा टिकट मिल जाए। इसके साथ सलीम शेरवानी के सपा से अलग होने से भी बीजेपी की बढ़त इस सीट पर मजबूत हुई है। ऐसे में बीजेपी के लिए संभावना बेहतर हैं इसमें कोई शक नहीं।