शिक्षक की नौकरी छोड़ लड़ रहे गरीबों की लड़ाई, कहानी जानकर आप भी करेंगे तारीफ

ईमानदारी, सरल स्वभाव और तपस्वी जीवन के लिए विख्यात सत्य नारायण त्रिपाठी का जन्म एक जनवरी 1943 को जिले के सदर तहसील क्षेत्र में सिंघवापुर गांव में पिता राम अभिलाख त्रिपाठी और माता सुब्बा देवी के घर हुआ था।

Update:2021-01-19 19:11 IST
शिक्षक की नौकरी छोड़ लड़ रहे गरीबों की लड़ाई, कहानी जानकर आप भी करेंगे तारीफ

तेज प्रताप सिंह

गोंडा। इस भौतिकवादी युग में भला शिक्षक की सम्मानित नौकरी कौन छोड़ता है? तो जवाब है वो जिन्हें खुद के दम पर कुछ बड़ा करना होता है। साल 1966 में कर्मचारी नेता सत्य नारायण त्रिपाठी का चयन शिक्षक के पद पर हुआ था लेकिन अपने समाजसेवा के मिशन को नए आयाम तक ले जाने के लिए उन्होंने 1967 में ही नौकरी छोड़ दी।

दर्जनों बार जेल जा चुके त्रिपाठी

गरीबों और कर्मचारियों के हितों की लड़ाई-लड़ते हुए दर्जनों बार जेल जा चुके त्रिपाठी ने अपना घर बार त्याग समाज के वंचितों, शोषितों और कर्मचारी हितों की लड़ाई लड़ रही ट्रेड युनियनों के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया। 20 हजार से अधिक लोगों को आजीविका मुहैया कराकर, लाखों कर्मचारियों को उनका वाजिब हक दिलाकर उनके जीवन में उजाला लाने और ईमानदारी के साथ तपस्वी का जीवन जीने वाले सत्य नारायण त्रिपाठी की जिले में अलग पहचान है। वे साल 1967 से निरंतर उप्र लोक निर्माण विभाग कर्मचारी संघ के सदस्य और पदाधिकारी हैं।

कौन हैं सत्य नरायन त्रिपाठी

ईमानदारी, सरल स्वभाव और तपस्वी जीवन के लिए विख्यात सत्य नारायण त्रिपाठी का जन्म एक जनवरी 1943 को जिले के सदर तहसील क्षेत्र में सिंघवापुर गांव में पिता राम अभिलाख त्रिपाठी और माता सुब्बा देवी के घर हुआ था। चार भाई और दो बहनों में सबसे बड़े सत्य नारायण त्रिपाठी ने पत्नी के निधन के बाद आजीवन अकेले रहकर समाजसेवा करने का व्रत लिया। निकट के गांव बसालतपुर में प्रारंभिक शिक्षा, जिला मुख्यालय के टामसन इण्टर कालेज से इण्टरमीडिएट और बलरामपुर के एमएलके कालेज से 1964 में स्नातक उत्तीर्ण करने के बाद त्रिपाठी को बाबागंज के संत सहजवन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (अब संत सहजवन इण्टर कालेज) में शिक्षक की नौकरी मिल गई। लेकिन सिद्धान्तवादी विचारों से सम्बद्धता के कारण उन्हें यह सम्मानित नौकरी छोड़ना पड़ा।

1995 से तीन बार भाकपा रह चुके

वर्तमान में एटक के प्रदेश कार्यवाहक अध्यक्ष और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, लोक निर्माण विभाग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष, भाकपा के राज्य कार्यकारिणी सदस्य, राज्य कर्मचारी महासंघ के मण्डल अध्यक्ष, संविदा श्रमिक संघ के प्रदेश अध्यक्ष, एआईसीटीयू के राष्ट्रीय काउंसिल के सदस्य, उत्तर प्रदेश ट्रेड यूनियन कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हैं। 1995 से तीन बार भाकपा के जिला मंत्री, प्रदेश अनुशासन समिति के सदस्य रह चुके हैं।

सिद्धान्तवादी राजनीति के चलते छोड़ा नौकरी

नगर के सुभाष नगर मोहल्ले में स्थित भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के कार्यालय में रह रहे का. सत्य नारायण त्रिपाठी ने महज साल भर में ही शिक्षक की नौकरी छोड़ दिया था। इसके पीछे कारणों की चर्चा करते हुए वे बताते हैं कि साल 1962 में बलरामपुर से जब कांग्रेस के टिकट पर सुभद्रा जोशी चुनाव लड़ रहीं थीं तब वामपंथियों का उन्हें समर्थन था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता और सुभद्रा जोशी के पति बीडी जोशी के निर्देश पर उन्होंने जवाहर लाल नेहरु एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के 15-15 छात्र नेताओं की टीम के साथ रात दिन जुटकर प्रचार कर जितवाया था। लेकिन 1967 में जब सुभद्रा जोशी दोबारा लोकसभा का चुनाव लड़ रहीं थीं तो न तो वामपंथी दलों का उन्हें समर्थन था और न ही उनके पति बीडी जोशी ही उनका समर्थन कर रहे थे।

वे कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार करें- दीप नरायन

तब सुभद्रा जोशी तथा संत सहजवन स्कूल के प्रबंधक और विधायक महंथ दीप नरायन वन ने कहा कि वे कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार करें। लेकिन स्टूडेंट फेडरेशन में होने के कारण उन्होंने मना किया और प्रचार में नहीं गए। इसके साथ ही अन्य शिक्षकों के प्रचार में जाने पर भी विरोध किया। इससे उनके और प्रबंधन के बीच तल्खी बढ़ी। प्रबंधन ने उनके शिक्षक समस्याओं को लेकर आन्दोलन और सामाजिक कार्यों में भाग लेने पर भी पाबंदियां लगाना शुरु किया। बाद में सुलह समझौते के भी प्रस्ताव आए लेकिन उन्होंने नौकरी को समाजसेवा और सिद्धान्त की राह का रोड़ा मानते हुए त्यागपत्र दे दिया।

1962 में ली स्टूडेंट फेडरेशन की सदस्यता

वामपंथी विचारक और कर्मचारी नेता सत्य नारायण त्रिपाठी बताते हैं कि एमएलके कालेज बलरामपुर में पढ़ाई के दौरान प्रख्यात आरएसपी नेता केशव प्रसाद शुक्ला और सांसद कामरेड झारखण्डे राय के सानिध्य से उनके मन में समाजसेवा के भाव अंकुरित हुए और 1962 में झारखण्डे राय और कामरेड सरजू पाण्डेय ने प्रस्तावक बनकर उन्हें स्टूडेंट फेडरेशन की सदस्यता दिलाई। इसी बैनर तले उन्होंने छात्र राजनीति का शुभारंभ भी किया। यद्यपि कि उन्होंने कभी छात्रसंघ के चुनाव में भागीदारी नहीं की। लेकिन छात्रों के बीच उनकी लोकप्रियता परवान चढ़ी। 1966 में संत सहजवन स्कूल बाबागंज में नौकरी मिली तो ठकुरई गुट के नाम से शिक्षक संघ की स्थापना की। उन्हें इस शिक्षक संघ का सचिव बनाया गया। नौकरी से त्यागपत्र के बाद त्रिपाठी राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के बैनर तले कर्मचारी हितों की लड़ाई लड़ने लगे।

झारखण्डे राय और सरजू पाण्डेय को माना गुरु

सत्य नारायण त्रिपाठी कहते हैं कि 1952 से लेकर 21 सालों तक विधान सभा तथा उप्र की घोषी चौथी, पांचवीं और सातवीं लोकसभा के सदस्य रहे कामरेड झारखन्डे राय एवं दूसरी लोकसभा से लेकर पांचवी लोकसभा तक (1952 से 1980 तक) ग़ाज़ीपुर संसदीय क्षेत्र का लगातार प्रतिनिधित्व करने वाले कामरेड सरजू पान्डे वर्ष 1962 मे मेरे सदस्यता फार्म के प्रस्तावक समर्थक बने थे। वह दिन कभी भूल नही सकता। वे दोनो ही मेरे वैचारिक गुरू बने और उनके आचार विचार ने ही मुझे सब कुछ त्याग कर बिना कुछ लिए समाजसेवा के लिए पूरा वक्ती बना दिया और आज तक सतत संघर्ष शील हूं। आजीवन उनके सम्पर्क में रहा और वे निरन्तर हमारे जिलों में आते जाते रहे।

कम वेतन सुविधा पर भी सादगी

नारायण कहते है कि मैं भी लखनऊ-दिल्ली जाकर उनसे मिलता रहा। वह दौर और था आज का दौर और है तब अधिकांश जन प्रतिनिधि थे जिन्हें जनता वोट नोट सपोर्ट से स्वयं जिताती थी। कम वेतन सुविधा पर भी सादगी, ईमानदारी देश उसके संविधान, शान्ति, सर्वांगीण विकास जनप्रतिबद्धता की गजब क्षमता थी। मेरे राजनैतिक गुरू थे उन्ही की प्रेरणा से निष्पक्ष, निष्कपट प्रतिबद्धता और ईमानदारी से अब तक निरन्तर मेहनतकश अवाम के लिए विगत 58 सालों से संघर्ष शील रहते 80 वर्ष की आयु पार कर चुका हूं।

जमीन हथियाओ, कर्मचारी आन्दोलनों में गए जेल

शिक्षक, कर्मचारियों और भूमिहीन गरीबों की लड़ाई लड़ते हुए सत्य नारायण त्रिपाठी को दर्जनों बार जेल जाना पड़ा। त्रिपाठी बताते हैं कि 70 के दशक में पार्टी द्वारा गांव में रह रहे गरीबों के लिए जमीन हथियाओ अभियान चलाया गया, जिसमेंगां के गरीब पात्र भूमिहीन मजदूरों को गांव में रिक्त ग्राम समाज की जमीन पर जबरन कब्जा कराया जाता था। यद्यपि कि इस आन्दोलन के दौरान उन्हें कई बार जेल की हवा खानी पड़ी। लेकिन अंततः सरकार ने पात्र भूमिहीन गरीबों को जमीन पट्टे पर देकर कब्जा देना शुरु किया। इस आन्दोलन का ही दबाव था कि ग्राम प्रधान अथवा राजस्व कर्मियों द्वारा धन उगाही नहीं की जा सकी।

जब डीएम और तहसीलदार पर गिरी गाज

संघर्षपूर्ण जीवन की चर्चा करते हुए त्रिपाठी ने बताया कि गोंडा जनपद मे भंयकर बरसात, बाढ़ से तमाम घर गिरे थे। अनुदान में बन्दर बांट हो रहा था। तब कमलापति त्रिपाठी मुख्य मंत्री थे और राम चन्दर टकरु यहां के जिलाधिकारी थे। अनुदान वितरण में गड़बड़ी की शिकायत लेकर जिलाधिकारी के पास गया तो टालने की नियत से उन्होंने मुझे अपने चपरासी के साथ एसडीएम सदर के पास भेज दिया। एसडीएम आईएएस थे उन्हें सैकडों प्रार्थना पत्र दिन बदिन दिलाया। एसडीएम ने सबकी अलग-अलग फाइल खोलवा दिया। जब डीएम को पता चला तो उनके हाथ पांव फूलने लगे। उन्होने मुझे घर बुलवाया बहुत समझाया बुझाया और कहा कि आपके जानकारी में जितनों की पात्रता सूची हो अपने हस्ताक्षर मुहर से प्रमाणित कर तहसील दार को देकर सबका पैसा लेकर बांट दें। हमने कहा आज 26 मार्च है इतने दिन में सम्भव कैसे होगा।

'मैं इतना डरा था कि नाश्ता नहीं करा'

उन्होने कहा हजारों अंगूठे कहीं बैठकर लगाये जा सकते हैं। सभी विधायक यही किये हैं, आप भी चार छह हजार का कर डालें और दस अप्रैल तक जमा कर दें। मैं हां कह कर चला आया पर सोचा यह तो मुझे वर्बाद कर देगा। रात में रेलगाड़ी पकड कर सुबह सुबह का. झारखण्डे राय के लखनऊ स्थित विधायक निवास पर पहुंच गया। नित्य क्रिया से निवृत्त होकर उन्होंने नास्ते पर बुलाया। मैं इतना डरा था कि नाश्ता नहीं कर रहा था। तब उन्होंने डांट कर नाश्ता कराया, फिर रिक्शे पर बैठाकर मुख्यमंत्री कमलापति के आवास पर ले गये। कमलापति जी आंगन में चटाई डालकर चार आदमियों से तेल मालिश करा रहे थे। उन्होंने वहीं बुलवा लिया।

गोंडा में अनुदान वितरण की जांच का ऐलान

इतना ही नहीं उन्होंने आगे बताया कि राय साहब ने मेरा परिचय कराया और पूरी बात बताने के लिए कहा। मैंने त्रिपाठी जी को सब कुछ बता दिया। मुख्यमंत्री ने पूरी बात सुनी और तत्काल नये डीएम नरसिंह पाल यादव की तैनाती का पत्र जारी कर दिया। यही नहीं उन्होंने नए डीएम श्री यादव से कहा कि त्रिपाठी जी तुम्हारे पद से डरे हैं जब गोंडा जाना तो राय साहब के घर से इन्हें साथ लेकर जाना। इतना ही नहीं उन्होंने विधान सभा में जाकर बस्ती और गोंडा जिले में अनुदान वितरण की जांच का ऐलान भी कर दिया। डीएम राम चन्दर टकरु हटे और जांच में दोषी पाए गया तहसीलदार को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया।

सिद्धांतहीन स्वंयभू नेता, युनियनों ने किया बंटाधार

संविदा श्रमिक संघ के प्रदेश अध्यक्ष, एआईसीटीयू के राष्ट्रीय काउंसिल के सदस्य, उत्तर प्रदेश ट्रेड यूनियन कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष सत्य नारायण तिवारी कहते हैं कि मजदूरों की लड़ाई वे पिछले 62 वर्षों से लड़ रहे हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का शोषण हो रहा है। हमारे पुरखों ने अंग्रेजों से लड़कर ट्रेड यूनियन एक्ट, मुआवजा एक्ट, आईडी आदि एक्ट लड़कर स्थापित ही नहीं किया बल्कि आजाद भारत में संविधान के सहारे बहुत से अच्छे सुधार कर बुनियाद पर हम लोगों ने लड़कर अपनी कुर्बानियों से बन्धुआ मजदूरी मुक्त व्यवस्था बनवाया। सरकार ने समान कार्य समान वेतन के पदों को स्वीकृत किया।

दैनिक तदर्थ कार्यप्रभारित व्यवस्था खत्म

नारायण तिवारी कहते हैं कि कर्मचारियों ने तीन साल दैनिक तदर्थ पर स्थाई नियुक्ति, पुरानी पेन्शन नियमावलियां आदि बहुत सी सुविधाएं प्राप्त कर लीं और सरकारी विभागों में दैनिक तदर्थ कार्यप्रभारित व्यवस्था खत्म कर दिया। कमजोर ही सही, आपसी एका न सही, फिर भी वर्ष 2010 तक आऊट सोर्सिंग, फाऊल सोर्सिंग बहुत हद तक रोकने में कामयाब रहे। वर्ष 1991 से जब से निजीकरण उदारीकरण, वैश्वीकरण के दौर में पक्ष विपक्ष ने मिलकर स्कीम वर्कर आऊट सोर्सिंग लागू किया।

‘हर झन्डे, हर धन्धे के मेहनतकशों एक हो‘

देश की मान्यता प्राप्त यूनियनों, उनसे सम्बधित संगठनों, फेडरेशनों ने उसी समय अपनी 12 मांगों पर ‘हर झन्डे, हर धन्धे के मेहनतकशों एक हो‘ के नारों पर एका बनाई। लेकिन तमाम व्यक्तिवादी सिद्धात हीन स्वंयभू नेता जो वर्ग मित्र वर्ग शत्रु की पहचान नहीं रखते। ऐसे मालिक परस्त व्यक्तिवादी युनियनों को खड़ा किया। उन्होंने वर्ग हित कम निज हित को महत्व देकर कार्य किया। नाम नहीं लूंगा लेकिन आज हर उद्योगों में तमाम शोषक मुनाफाखोर भक्त मालिकों के धन से यूनियन चलाते हैं, ट्रेड करते हैं। इन्हीं विभीषणों ने कर्मचारी आन्दोलनों को कमजोर कर दिया। कहां हम ‘दुनिया के मेहनतकशों एक हो‘ के स्वप्न पर एक थे, कहां हम भाई-भाई के शोषक दिखने लगे।

ठकुरई के साथ शिक्षक संगठन बनाया

उन्होंने कहा कि मैने ठकुरई के साथ शिक्षक संगठन बनाया। नौकरी से मुक्त हुआ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद का गठन साथियों के साथ मिलकर कराया। तब से आज तक मेहनतकश संगठनों के साथ तन मन धन से लगा हूं। इससे मुझे आत्म शान्ति मिलती है। आज भी बेदाग हूं लेकिन पीड़ा वैसे है जैसे मेहनत के धन से बने घर पर पीपल जम आये। मैं चढ़ कर उखाड़ नहीं सकता, बच्चे सुनते नहीं।

पेंशन बहाली के लिए जाएंगे सुप्रीम कोर्ट

कर्मचारियों की पेंशन समाप्ति पर सत्य नारायण त्रिपाठी कहते हैं कि वर्ष 2004 के बाद नियुक्त शिक्षक, अधिकारियों और कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिलेगा। लेकिन तमाम दैनिक तदर्थ व वर्कचार्ज से नियमित ऐसे अभागे कर्मचारी हैं, जिन्होंने कुल मिला कर 33 वर्ष की निरन्तर सेवा किया परन्तु विभागीय बेईमानी अथवा शिथिलता से नियमित वर्ष 2004 के बाद हुए। फाइनेंन्सियल हैन्ड बुक की धारा 367, 368, 369 विलुप्त कर दी गई। परन्तु 370 जिन्दा रहकर पेन्शन नियमावली 1961 के 8/3 हो गई। जो निरन्तर दैनिक वर्कचार्ज की सेवा को पेन्शन हेतु सेवा मान्य नहीं करती।

अधिकांश कर्मचारी जीपीएफ के बजाय ईपीएफ हुए

अब उसमें अधिकांश कर्मचारी निरन्तर 33 वर्ष से अधिक सेवा के बावजूद वर्ष 2004 के बाद विनियमित मानकर जीपीएफ के बजाय ईपीएफ हो गया। अब वे सब पूरी सेवा की ग्रेच्युटी से वंचित तथा दस वर्ष यदि पूरा कर लिऐ तो पांच-छह सौ रूपया पेन्शन के हकदार होंगे। वह भी तब पाएगें जब सर्वोच्च न्यायालय दोनों धारा के प्रावधानों को डिलीट कर दिया है। उत्तराखंड आदि कई प्रदेशों में तथा केन्द्रीय कर्मचारियों आदि पर लागू हो गया है, लेकिन उप्र सरकार मान्य नहीं कर रही है। जबकि 26-08-2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने बी शिव कुमार बनाम केरल सरकार के बाद में अपने 17 पेज के आदेश में केरल सरकार के कुछ कर्मचारियों को एरियर सहित सभी सेवाओं को जोडकर पेन्शन आदि के भुगतान का बहुत स्पष्ट आदेश पारित किया है।

पेंशन के अधिकार को माना संवैधानिक

सर्वोच्च न्यायालय ने पेंशन के अधिकार को संवैधानिक माना है। इसके तहत दैनिक और कार्यप्रभारित (वर्कचार्ज) कर्मचारियों को पेंशन और ग्रेच्युटी का लाभ मिलना चाहिए। जबकि उप्र सरकार अध्यादेश जारी कर जिन विभागों ने इसका लाभ दे दिया था उन्हें रिकबरी का आदेश दिया है। लोक निर्माण विभाग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वे अब सुप्रीम अदालत में याचिका दाखिल कर अध्यादेश को चुनौती देंगे।

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