हाईकोर्ट ने कहा, मान्यता देने के लिए स्कूल में खेल का मैदान जरूरी

हाईकोर्ट ने कहा है कि विद्यालय को बोर्ड से मान्यता देने के लिए यह आवश्यक है कि उस विद्यालय के पास खेल का मैदान हो। यह मान्यता देने के लिए अनिवार्य अर्हता है। स्कूल का भवन और खेल का मैदान एक ही परिसर में होना चाहिए, यह अलग अलग नहीं हो सकता।

Update:2019-01-22 19:42 IST
प्रतीकात्मक फोटो

प्रयागराज : हाईकोर्ट ने कहा है कि विद्यालय को बोर्ड से मान्यता देने के लिए यह आवश्यक है कि उस विद्यालय के पास खेल का मैदान हो। यह मान्यता देने के लिए अनिवार्य अर्हता है। स्कूल का भवन और खेल का मैदान एक ही परिसर में होना चाहिए, यह अलग अलग नहीं हो सकता। यदि खेल का मैदान स्कूल भवन से दूर है या इस तक जाने के लिए बच्चों को सड़क पार करनी होती है तो खेल मैदान का उद्देश्य विफल हो जायेगा। एपल गोव स्कूल सहारनपुर की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश अजय भनोट ने दिया है।

स्कूल ने सीबीएसई बोर्ड के यह फरवरी 18 के आदेश को चुनौती दी थी। बोर्ड ने विद्यालय की मान्यता इस आधार पर रद्द कर दी थी कि उसके पास खेल का मैदान नहीं है। विद्यालय का कहना था कि उनके पास खेल का मैदान है मगर वह कुछ दूरी पर स्थित है। स्कूल ने सड़क पार करने के लिए फुटओवर ब्रिज के निर्माण का प्रस्ताव रखा था मगर उनका प्रस्ताव रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि मैदान उसी परिसर में होना जरूरी है।

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पुरातात्विक महत्ता की मंदिर की भूमि बेचने के आरोपी की जमानत अर्जी पर जवाब तलब

लगभग पांच सौ वर्ष प्राचीन पुरातत्व महत्व का मंदिर महादेव उदयभन बाग की भूमि को भूमाफियाओं द्वारा कब्जा करने के आरोपी रामबाबू की जमानत अर्जी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार मिश्रा की अदालत में हुई। मामले की प्राथमिकी आगरा स्थित जगदीशपुर थाने में भा.द.सं. की धारा 420, 467, 468, 471, 447, 295, 297, 504, 506 व 120 बी के तहत रामबाबू व 26 अन्य के विरुद्ध दर्ज की गयी।

अपर महाधिवक्ता अर्जित कुमार ने अदालत को बताया कि मंदिर का जिक्र आर्किलाॅजिकल सर्वे आफ इण्डिया 1871-72 में भी है तथा अकबर व आगरा नामक पुस्तक में है। मामले में भू माफियाओं द्वारा फर्जी वसीयत व सिविल वादों के आधार पर मंदिर की भूमिको बेचने जा रहे हैं साथ ही मंदिर का पुरातत्व महत्व समाप्त हो रहा है। न्यायालय ने जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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सड़क निर्माण घोटाले की हो उच्च स्तरीय जांच

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मिर्जापुर में सड़क निर्माण घोटाले की उच्च स्तरीय जांच करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि विशेषज्ञों की समिति गठित कर जांच करायी जाए। शशिशंकर त्रिपाठी की जनहित याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार चतुर्थ की खण्डपीठ ने दिया है।

याचिका में कहा गया है कि लोक निर्माण विभाग ने सड़क निर्माण में मानकों का प्रयोग नहीं किया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग को निर्देश दिया है कि वह तकनीकी विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित करें जिसमें लोक निर्माण विभाग का कोई विशेषज्ञ शामिल नहीं होगा। कमेटी मोती लाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज, नेशन इंस्टीट्यूट आफ ट्रेनिंग आफ हाईवे इंजीनियरिंग नोएडा और इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञ होंगे। कमेटी मिर्जापुर में पिछले छह माह के दौरान बनी सड़कों की गुणवत्ता की जांच करेगी और एक माह में रिपोर्ट देगी। कोर्ट ने प्रमुख सचिव को एक सप्ताह के भीतर कमेटी गठित करें और इसे सभी आवश्यक सहूलियतें देने का निर्देश दिया है। याचिका पर पांच मार्च को अगली सुनवाई होगी।

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महिला को निर्वस्त्र घुमाने का मामला, पीड़िता का बयान दर्ज करने का निर्देश

हाईकोर्ट ने भदोही में महिला को निर्वस्त्र कर घुमाने के मामले में पीड़ित महिला का 161 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि घटना की जांच इंस्पेक्टर या डिप्टी एसपी स्तर के अधिकारी से करायी जाए। ह्यूमन राइट लाॅ नेटवर्क के प्रशिक्षु विधि छात्रों की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता और न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खण्डपीठ सुनवाई कर रही है।

याचिकाकर्ता शाम्भवी कांत, शुभांकर तिवारी और अन्य का कहना था कि भदोही में पारिवारिक विवाद को लेकर महिला को निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया गया। पुलिस इस घटना में लीपापोती कर रही है। अभी तक पीड़िता का बयान भी दर्ज नहीं किया गया है।

कोर्ट ने घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच किसी उच्च स्तरीय अधिकारी से कराने का निर्देश दिया है। याचिका की अगली सुनवाई सात फरवरी को होगी।

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सिविल जज परीक्षा में शामिल होने के लिए, प्रयागराज में आवास की व्यवस्था का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30, 31 जनवरी व 1 फरवरी को होने वाली उ.प्र. सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए याचियों की 3 दिन के लिए आवासीय व्यवस्था करने का निर्देश दिया है और राज्य सरकार व लोक सेवा आयोग से याचिका पर एक माह में जवाब मांगा है।

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल तथा न्यायमूर्ति आर.आर. अग्रवाल की खंडपीठ ने शिखर गुप्ता व 7 अन्य की याचिका पर दिया है। याचीगण का कहना था कि प्रयागराज में कुम्भ मेले के चलते परीक्षा देने के लिए 3 दिन तक आवास मिलना कठिन है। इसलिए परीक्षा अन्य जिले में कराई जाय।

याची का यह भी कहना है कि जनवरी में प्रारम्भिक परीक्षा परिणाम घोषित हुआ और तुरन्त मुख्य परीक्षा कराई जा रही है। यूपीजेडए को खत्म कर नया कानून राजस्व संहिता लाया गया है। शांतिपूर्ण अध्ययन के लिए आवास की जरूरत है। इस पर कोर्ट ने जिलाधिकारी को याचियों के ठहरने का प्रबंध करने का निर्देश दिया है ताकि वे बिना किसी अवरोध के परीक्षा की तैयारी कर सके।

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