लखनऊ: एबीवीपी नेता शिवाजी चंद्रमौली सिंह की हत्या के करीब 15 साल बाद एक स्थानीय कोर्ट ने सात दोषियों को सजा सुनाई है। साथ ही दो अभियुक्तों का संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।
किसको मिली सजा और हुआ बरी
विशेष जज राजेंद्र सिंह ने अपना फैसला सुनाते हुए सातों अभियुक्तों को आईपीसी की दफा 302 के तहत उम्र कैद की सजा दी है। वही उन पर दस-दस हजार रूपए के जुर्माना भी ठोंका है।
इन अभियुक्तों में मो.इलियास, अब्दुल जहीर फारुकी, अब्दुल नजीर फारुकी, फजलु रहमान, मो.हसीब, मो.आलम और मो.अलीम शामिल हैं। कोर्ट ने मोइनुद्दीन सिद्दीकी व मुलायम उर्फ कमरुद्दीन के खिलाफ घटना में शामिल होने के पर्याप्त सबूत नही पाए और उन्हे संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
कब और कैसे हुई थी शिवाजी चंद्रमौली
7 जुलाई 2001 को मृतक चंद्रमौली के चाचा डॉ.चेतनारायण सिंह ने थाना हुसैनगंज में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इससे पहले 29 जून 2001 को अभियुक्तों ने हसनगंज थाने पर एक रिपोर्ट दर्ज कराकर कहा था कि वे सभी कुतुबपुर स्थित मेराज लॉज में रहते और पढ़ाई करते हैं।
रात में अब्दुल जहीर फारुकी के कमरे में एक आदमी चोरी करके भाग रहा था। आहट पाकर उन सभी ने उसे घेरकर पकड़ लिया। अभियुक्तों की इस सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची तो पाया कि उसकी मौत हो चुकी है। तब पुलिस ने पंचनामा करके शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और बाद में उसका अंतिम संस्कार करा दिया था।
उधर चंद्रमौली की तलाशी के दौरान पुलिस ने मेराज लॉज में मृत पाए गए व्यक्ति की फोटो डॉ.चेतनारायण को दिखाई। मालूम हुआ कि फोटो में मृत व्यक्ति शिवाजी चंद्रमौली सिंह हैं।
इस पर 25 जुलाई, 2001 को डॉ.चेतनारायण ने मुल्जिमों के खिलाफ हत्या की तहरीर दी। विवेचना में सामने आया कि एक प्लाट के विवाद में मुल्जिमान शिवाजी चंद्रमौली को उनके छात्रावास से मेराज लॉज ले गए जहां उनकी हत्या कर दी।