Shamli: बरसात में भीगता रहा शव, ग्रामीण शव को बचाने की करते रहे जद्दोजहद

Shamli: शामली में शव का अंतिम संस्कार करने में जद्दोजहद करते हुए ग्रामीणों का वीडियो सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है।

Report :  Pankaj Prajapati
Update: 2022-05-22 07:44 GMT

Shamli: यूपी के शामली में शव का अंतिम संस्कार करने में जद्दोजहद करते हुए ग्रामीणों का वीडियो सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो सरकार की व्यवस्थाओं को लेकर चर्चा का विषय बना है। वही जिस गांव की है वीडियो वायरल हुई है यह बीजेपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा का क्षेत्र कहलाता है।

शामली जनपद के थाना भवन क्षेत्र में सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। जिसमें खुले आसमान के नीचे बरसात से बचने के लिए कुछ लोग एक पन्नी की एक बड़ी तिरपाल के नीचे खड़े नजर आ रहे हैं।

जानकारी के अनुसार मामला थानाभवन क्षेत्र के गांव भैसानी इस्लामपुर का (Bhasani of Islampur) है। गांव भैसानी इस्लामपुर में 80 वर्षीय अनुसूचित जाति के नत्थन की बीमारी के चलते मौत हो गई थी। वही जब ग्रामीण नत्थन के शव को लेकर श्मशान में पहुंचे तभी बारिश शुरू हो गई।

वही श्मशान में अंतिम संस्कार करने के लिए छत की कोई व्यवस्था ना होने के कारण लोगों ने जैसे तैसे जुगाड़ कर गांव से पन्नी का एक बड़ा तिरपाल मंगा कर शव को भीगने से बचाया साथ ही अंतिम संस्कार के लिए इंधन को भी भीगने से बचाते रहे। जब तक बरसात चली तब तक लोग इसी जद्दोजहद में रहे।


बरसात बंद होने के बाद बमुश्किल गीले सूखे ईंधन से नत्थन का अंतिम संस्कार किया गया। ग्रामीणों ने इस वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर किया है। अब वायरल वीडियो चर्चा का विषय बना है। एक तरफ गांव-गांव में शहर जैसा विकास किए जाने के दावे किए जाते हैं और दूसरी तरफ ऐसी तस्वीरें सामने आती है तो सरकारी दावों पर व्यवस्थाओं की पोल खोलती हुई वीडियो मायने तो रखती है।

अगर हम बात करें गांव भैसानी इस्लामपुर की, तो गांव भैसानी इस्लामपुर 11,000 से ज्यादा मतदाताओं के निवास वाला मुस्लिम बहुल गांव है। इस पूरे गांव में मात्र 300 मतदाता अनुसूचित जाति के हैं।

ग्रामीणों के अनुसार, गांव में 4 बीघा जमीन शमशान की है, लेकिन आज तक ना तो किसी ने शमशान में अंतिम संस्कार के लिए किसी छत की व्यवस्था की है और ना ही शमशान की कोई बाउंड्री वाल की गई है। जब ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं तो विकास को लेकर किए जाने वाला भेदभाव का दोहरा मापदंड भी सामने आ ही जाता है।

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