शिया व सुन्नी की जगह मुस्लिम वक्फ बोर्ड बनाने की मांग पर सरकारें करें विचार: HC
हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को आदेश दिया है कि प्रदेश में शियाओं व सुन्नियों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्डों के बजाय मुस्लिम वक्फ बोर्ड के नाम से एक ही बोर्ड बनाने की मांग केा लेकर एक याची की ओर से प्रेषित प्रत्यावेदन पर वक्फ अधिनियम 1995 के तहत विचार कर निर्णय लिया जाये।
लखनऊ: हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को आदेश दिया है कि प्रदेश में शियाओं व सुन्नियों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्डों के बजाय मुस्लिम वक्फ बोर्ड के नाम से एक ही बोर्ड बनाने की मांग केा लेकर एक याची की ओर से प्रेषित प्रत्यावेदन पर वक्फ अधिनियम 1995 के तहत विचार कर निर्णय लिया जाये। अपने आदेश में बेंच ने स्पष्ट किया कि वह याचिकाकर्ता की मांग पर अपनी ओर से याचिका के गुण देाष के बावत कोई टिप्पड़ी या आदेश नहीं कर रही है।
यह आदेश जस्टिस पंकज जायसवाल व जस्टिस आलोक माथुर की बेचं ने मसर्रत हुसैन की आरे से दायर एक जनहित याचिका पर दिया। याचिका में शिया व सुन्नी वक्फ बोर्डों को समाप्त कर एक मुलिस्म वक्फ बोर्ड बनाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार आदेश देने की मांग की गई थी।
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याची की ओर से दलील दी गई कि वक्फ अधिनियम की धारा 13(2) के मुताबिक राज्य सरकार चाहे तो शिया व सुन्नी वक्फ बोर्डों की अलग-अलग स्थापना कर सकती है लेकिन ऐसा तभी सम्भव है जबकि प्रदेश में शिया वक्फ की संख्या कुल वक्फों से कम से कम 15 फीसदी हो अथवा वक्फों की सम्पत्तियों से शिया वक्फों की कुल आय 15 फीसदी हो।
याची का कहना था कि प्रदेश में न तो शिया वक्फ की सम्पत्तियां 15 फीसदी हैं और न ही इन सम्पत्तियों से इतनी आय है लिहाजा अधिनियम की धारा 13(2) के अनुसार प्रदेश में शिया व सुन्नी अलग-अलग वक्फ बोर्ड की स्थापना विधि सम्मत नहीं है।
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याची की ओर से कहा गया कि इस आशय का एक प्रत्यावेदन 24 सितम्बर 2019 को सरकार को दिया गया था जिस पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। इस पर केार्ट ने उक्त प्रत्यावेदन पर वक्फ अधिनियम के आलोक में विचार कर निर्णय लेने का आदेश केंद्र व राज्य सरकार को दिया है। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है।
आवासीय इलाकों में व्यवसायिक गतिविधियां जारी रहने पर हाईकोर्ट सख्त
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आवासीय इलाकों में व्यवसायिक गतिविधियां जारी रहने पर सचिव, शहरी विकास प्राधिकरण व वीसी, लखनऊ विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि इस सम्बंध में उनकी ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी दी जाए अथवा दोनों अधिकारी 2 दिसम्बर को कोर्ट के समक्ष उपस्थित हों।
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यह आदेश जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल व जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने निशातगंज रेजीडेंट्स वेलफेयर सोसायटी की ओर से 2001 में दाखिल की गयी एक जनहित याचिका पर पारित किया। कोर्ट ने पहले भी इस याचिका पर कई महत्वपूर्ण आदेश जारी किये थे।
कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई पर राज्य सरकार व एलडीए से पूछा था कि आवासीय इलाकों में बैंक, नर्सिंग होम्स या अन्य प्रकार की कामर्शियल गतिविधियां रोकने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं। लेकिन समय देने के बावजूद केाई जवाब नही आया।
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कोर्ट के सामने शुक्रवार को सुनवायी के समय फिर यह बात आयी कि अभी केाई जवाब नहीं आया है तो इस सपर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए, दोनों अधिकारियों को जवाब देने अथवा हाजिर होने का आदेश दिया।
मामले में याची की ओर से कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने 5 दिसम्बर 2011 को आरके मित्तल के मामले में स्पष्ट किया था कि रेजिडेंशियल इलाकों में बैंक, नर्सिंग होम्स या अन्य किसी प्रकार की कामर्शियल गतिविधियां नहीं चलाई जा सकती हैं लेकिन राजधानी लखनऊ में आवासीय इलाकों में ये गतिविधियां चल रही हैं।