सुलभ इलाज बना सपना: बीमार अस्पताल, कैसे हो इलाज

Update:2019-12-06 12:09 IST

संदीप अस्थाना

आजमगढ़: सर्वसुलभ इलाज आजमगढ़ में सपना ही बना हुआ है। यहां स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से बदहाल हैं। एक तरफ जहां सरकारी डाक्टर निजी प्रैक्टिस में मशगूल थे, वहीं अब जिला अस्पताल से एक साथ सौ से अधिक कर्मचारियों को हटाकर आमजन को थोड़ी-बहुत मिलने वाली सुविधाओं से भी वंचित कर दिया गया है। जिला अस्पताल एवं महापंडित राहुल सांकृत्यायन जिला महिला अस्पताल में मौजूद करोड़ों की मशीनें जंग खा रही हैं। इन मशीनों को चलाने के लिए टेक्निशियन ही नहीं है।

करोड़ों की लागत से बने सुपर फैसिलिटी अस्पताल कहने को पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। इसके शिलान्यास व लोकार्पण के मौके पर दावे किये गये थे कि इस अस्पताल से आजमगढ़ ही नहीं बल्कि आस-पास के जिलों की दिक्कतें दूर हो जायेंगी और किसी मरीज को लखनऊ के पीजीआई नहीं जाना पड़ेगा। बहरहाल, अस्पताल बढिय़ा बनाया भी गया और अत्याधुनिक मशीनें मुहैय्या करायी गयीं मगर विशेषज्ञों की तैनाती न हो सकी। ऐसी स्थिति में ये अस्पताल बेमतलब साबित होकर रह गया है।

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पहुंचना भी टेढ़ी खीर

आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर चक्रपानपुर जैसे वीराने में 114 एकड़ में बना यह सुपर फैसिलिटी हॉस्पिटल एंड मेडिकल कालेज किसी हाईवे के किनारे नहीं है। लिंक मार्ग पर होने की वजह से आवागमन के समुचित साधन उपलब्ध नहीं हैं। हाल ये है कि शाम के 6 बजे के बाद यहां आना-जाना मुश्किल हो जाता है। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल में वर्ष 2006 में इसका लोकार्पण हुआ था।

आलीशान बिल्डिंगें बनायी गयी और मंहगी अत्याधुनिक मशीनें भी लगायी गयी। दिक्कत बस यह हो गयी कि इस हास्पिटल एवं मेडिकल कालेज में सेवायें देने के लिए न तो अच्छे डाक्टर्स व प्रोफेसर्स आये और न ही मशीनों का संचालन करने वाले तकनीकी विशेषज्ञ। तकनीकी विशेषज्ञों के अभाव में एमआरआई, एक्स-रे, सिटी स्कैन, अल्ट्रासोनोग्राफी जैसी मामूली जांच भी यहां संभव नहीं हो पा रही है। पैथालॉजी का भी संचालन नहीं हो पा रहा।

जैसे-तैसे चल रही ओपीडी

विशेषज्ञ चिकित्सकों के न आने की वजह से शहर में निजी प्रैक्टिस करने वाले कुछ एमबीबीएस डाक्टरों को संविदा पर यहां तैनाती देकर किसी तरह से ओपीडी चलायी जा रही है। ओपीडी करने वाले यह चिकित्सक शहर स्थित अपनी क्लीनिक या अस्पताल पर मरीजों को आने के लिए प्रेरित करते हैं।

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दवाइयों की उपलब्धता के बावजूद कमीशन के चक्कर में ज्यादातर बाहर की ही दवाइयां लिख दी जाती हैं। चूंकि ओपीडी करने वाले डाक्टर रेगुलर नहीं हैं सो किसी भी डाक्टर की दो दिन से अधिक ड्यूटी नहीं होती है। ऐसे में भी मरीज शहर में उनकी प्रतिदिन उपलब्धता होने के कारण वहीं जाना बेहतर समझता है। यहां की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गंभीर मरीजों को जिला अस्पताल के लिए रेफर किया जाता है। इस अस्पताल के आसपास एक्सीडेंट या अन्य कोई हादसा होने पर लोग यहां ले जाकर समय बर्बाद करने की बजाय जिला अस्पताल ही जाना ज्यादा बेहतर समझते हैं।

एमबीबीएस की 100 सीटें

इस मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की 100 सीटें हैं। योग्य प्रोफेसर्स की तैनाती न होने की वजह से कम योग्यता वाले लोग यहां तक कि सिम्पल एमबीबीएस डाक्टर ही शिक्षण कार्य करते हैं। यहां पढने वालों को एमबीबीएस की डिग्री भले ही मिल जाये मगर वह कितने योग्य डाक्टर बनेंगे, इसकी कल्पना की जा सकती है। सुपर फैसिलिटी हॉस्पिटल एण्ड मेडिकल कालेज की दशा सुधारने की बजाए अब इसके विस्तार और पैरामेडिकल कालेज खोलने के लिए कई एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली गयी है।

मरीज प्राइवेट अस्पतालों के भरोसे

जिला अस्पताल, महिला चिकित्सालय, संयुक्त चिकित्सालय अतरौलिया को लेकर जनपद में कुल 105 अस्पताल, 22 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 90 अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र व 594 एएनएम सेन्टर हैंं। इनमें 45 अस्पतालों पर डाक्टर नहीं है। इनको आयुश चिकित्सक व फार्मासिस्ट चला रहे हैं। जिला अस्पताल में 32 और महिला अस्पताल में सात चिकित्सक तैनात हैं। कुल मिलाकर यहां भी डाक्टरों की कमी हैं। सरकारी अस्पतालों पर जांच के लिए मारामारी की स्थिति रहती है। जांच के झंझट व तमाम दिक्कतों को दरकिनार कर यह लोग प्राइवेट में इलाज कराना ही उचित समझते हैं। तमाम ऐसे सरकारी अस्पताल हैं जहां संबंधित रोगों के विशेषज्ञ डाक्टर ही नहीं हैं। इसकी वजह से मरीजों को प्राइवेट का ही सहारा लेना पड़ता है। सरकारी डाक्टर भी किसी न किसी प्राइवेट अस्पताल से जुड़े हुए हैं। इसकी वजह से सरकारी व्यवस्था की पूरी गाड़ी प्राइवेट अस्पतालों के टोचन पर जुड़ी है।

जिला अस्पताल से एक साथ हटाये गये 105 कर्मचारी

आजमगढ़ जिला अस्पताल से एक साथ 105 कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गयी है। इसके पहले अगस्त में भी 11 कर्मचारियों को सेवामुक्त कर दिया गया था। एक साथ इतने कर्मचारी हटा दिये जाने से जिला अस्पताल में पूरी तरह से अव्यवस्था फैल गयी है। जो 105 कर्मचारी सेवामुक्त किये गये हैं उनमें 50 स्टाफ नर्स, 25 वार्डब्वाय, एक इलेक्ट्रिशियन, 3 फार्मासिस्ट, एक सीएसएसडी टेक्रिीशियन, एक ईसीजी टेक्रिीशियन, 7 क्लर्क, दो स्टोर कीपर, दो एमआरडी, चार लैब टेक्रिीशियन, चार ओटी टेक्रिीशियन, तीन एक्स-रे टेक्रिीशियन व एक आप्टोमेट्रिस्ट शामिल है। इसके अलावा ईएमओ डा.राघवेंद्र विक्रम बहादुर सिंह व एनस्थेसिस्ट डा.सादिया जिया उस्मानी को भी सेवामुक्त किया गया था मगर इन दोनों को बाद में समायोजित कर लिया गया। हटाये गये सभी 105 कर्मचारी टीएनएम संस्था के जरिए वर्ष 2015 से आउटसोर्सिंग से कार्यरत थे। जानकारों का कहना है कि जब तक दूसरी कम्पनी को ठेका नहीं दिया जायेगा और वह इंटरव्यू लेकर नयी तैनाती नहीं करेगी तब तक इस तरह की स्थितियां बनी ही रहेंगी। इसके पहले अगस्त में 11 कर्मचारी हटाए गए थे जो आउट सोर्सिंग पर सिल्वर कंपनी के जरिए तैनात थे और जिला अस्पताल में डाटा इंट्री का काम देख रहे थे। 219 बेड के जिला अस्पताल में अब महज 51 नर्सें रह गयी हैं।

निजी प्रैक्टिस में मशगूल सरकारी डाक्टर

जिले में कमोबेश हर सरकारी डाक्टर निजी प्रैक्टिस में मशगूल है। कईयों ने अपना निजी अस्पताल तक बनवा लिया है। ये डॉक्टर सरकारी अस्पतालों की दवा और जांच की बजाए कमीशन के चक्कर में बाहर की जांच और दवा लिखते हैं। कई डॉक्टर ऐसे हैं जो अपने चेम्बर में कभी मिलते ही नहीं हैं। जबकि निजी अस्पतालों में उनकी सेवा कभी भी ली जा सकती है।

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वकील राजेश यादव का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में डाक्टर मिलते ही नहीं हैं। ऐसे में वह जहां निजी प्रैक्टिस करते हैं वहीं पर दिखाया जाता है। इसके साथ ही एक अंतर यह भी होता है कि सरकारी अस्पताल में वह केवल कोरम पूरा करते हैं जबकि जहां निजी प्रैक्टिस करते हैं वहां अच्छे से देखते हैं। इनसे इतर महापंडित राहुल सांकृत्यायन जिला महिला अस्पताल में तैनात डा. नीरज शर्मा सप्ताह में एक दिन अपने पैतृक गांव मऊ जिले के सूरजपुर में नि:शुल्क मरीज देखते हैं। वर्ष में एक बार स्वास्थ्य मेला लगवाते हैं जहां मरीजों के नि:शुल्क जांच के साथ ही उन्हें फ्री दवा उपलब्ध करायी जाती है।

जिला अस्पताल में तैनात डा. रफी परवेज ने कहा कि वह कहीं पर कोई निजी प्रैक्टिस करते ही नहीं हैं।

जिला अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. विमलेश ने कहा कि वह समय गुजारने के लिए शाम को रैदोपुर अपने एक मित्र के यहां बैठते हैं और वहां कोई मरीज होता है तो नैतिकता के नाते देख भी लेते हैं, मगर कोई फीस नहीं लेते। आजमगढ़ के लोगों को उनकी सेवा पसंद नहीं आयेगी तो वह ऐसा नहीं करेंगे।

जिला अस्पताल में तैनात स्किन स्पेशलिस्ट डा. पूनम कुमारी कहती हैं कि डाक्टर का काम मरीज देखना ही तो होता है। एक सरकारी चिकित्सक अपने तैनातीस्थल से हटकर कोई मरीज सेवाभाव से भी देख लेता है तो उसे निजी प्रैक्टिस का नाम दे दिया जाता है। ऐसी नकारात्मक सोच समाज में नहीं होनी चाहिए।

निजी चिकित्सक भी सरकारी डाक्टरों के साथ

सरकारी डाक्टरों के निजी प्रैक्टिस के मुद्दे पर निजी चिकित्सक भी हमेशा सरकारी डाक्टरों के साथ खड़े नजर आते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डा. निर्मल श्रीवास्तव का कहना है कि इस जिले के किसी सरकारी डाक्टर के निजी प्रैक्टिस का मामला उनके संज्ञान में नहीं है। आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डा. डीपी राय का कहना है कि डाक्टर सरकारी हो या प्राइवेट, यह उसका दायित्व है कि वह जहां भी हो वहां कोई मरीज देखे तो वहीं उसका उपचार करे। यदि कोई सरकारी डाक्टर सेवा भाव से अपनी तैनातीस्थल से इतर कहीं पर कोई मरीज देख ले तो उसकी सेवा पर सवाल नहीं खड़ा करना चाहिए। शहर के प्रतिष्ठित निजी चिकित्सक डा. एके राय का कहना है कि जिले के सरकारी डाक्टर अगर बाहर कोई मरीज देखते हैं तो उनका भाव सेवा का होता है। वह उसके एवज में कोई फीस नहीं लेते हैं। ऐसे में वह कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं।

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सरकारी डाक्टरों के संगठन पीएमएस के अध्यक्ष डा. विनय सिंह यादव का कहना है कि सरकारी डाक्टरों के निजी प्रैक्टिस का कोई मुद्दा ही नहीं है। यूपी में मरीजों के अनुपात में डाक्टरों की संख्या काफी कम है। एक डाक्टर 24 घंटे अपनी सेवायें देकर मानवता का काम कर रहा है। यदि किसी निजी अस्पताल पर कोई मरीज मर रहा है और उस अस्पताल का संचालक सरकारी डाक्टर को ही उसकी जीवन रक्षा के लिए उपयुक्त मानकर उसे बुला रहा है तो किसी के जीवन रक्षा के लिए वहां पहुंचना सरकारी डाक्टर का दायित्व बन जाता है। इसे गलत ठहराना मानवता की खिलाफत करना है। डा.यादव का कहना है कि सरकार सरकारी डाक्टरों की निजी प्रैक्टिस को रोकना चाहती है तो उसे पर्याप्त संख्या में डाक्टरों की तैनाती करनी होगी। ऐसा होने पर खुद-ब-खुद निजी प्रैक्टिस बन्द हो जायेगी। उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी नये विशेषज्ञ डाक्टर नहीं आ रहे हैं। सरकार ऐसी पालिसी लाये कि विशेषज्ञ ज्वाइन करे। यह सब कुछ होने पर ही समस्या का समाधान होगा।

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