पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: वायु प्रदूषण के कारण जहां सांस लेना भी दूभर हो गया हो वहां धूप, पानी और हवा ही दवा बन जाए तो सकून मिलेगा ही। बिगड़ रही आबोहवा के बीच गोरखपुर का आरोग्य मंदिर प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज कर देश-दुनिया को संदेश दे रहा है। वर्ल्ड नेचुरोपैथी डे (18 नवंबर) को एक दिन में सर्वाधिक मिट्टी लेपन करके आरोग्य मंदिर ने एशियाई रिकार्ड बनाया है और अपने स्वर्णिम अतीत में एक और सुनहरे पन्ने को जोड़ लिया है। 18 नवम्बर को एक साथ 508 लोगों ने शरीर पर मिट्टी का लेपन किया था।
अरोग्य मंदिर पिछले 80 वर्षों में पूरी दुनिया को संदेश देता आ रहा है कि प्रकृति में सभी रोगों का इलाज संभव है। हम जितना ही प्रकृति के करीब जाते हैं, उतना ही निरोगी होते हैं। इसी संदेश को पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए आरोग्य मंदिर में सैकड़ों लोग वर्ल्ड नेचुरोपैथी डे पर शरीर पर मिट्टी लेपन के अनोखे रिकार्ड का गवाह बने।
हालांकि यह प्रयास गांधी जयंती से ही शुरू हो गया था। प्रत्येक रविवार को लोग मिट्टी लेपन विधि का लाभ लेने पहुँच रहे थे। बीते 7 नवंबर से 17 नवंबर तक प्रतिदिन मिट्टी लेपन के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान 1500 से अधिक लोगों ने प्रकृति से इलाज लिया। मिट्टी को जीवनदायिनी मानने वाली इस चिकित्सा पद्धति में शरीर पर लेपन के जरिए बीमारियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
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80 साल पुराना संस्थान
गोरखपुर में आरोग्य मंदिर की स्थापना वर्ष 1940 में डॉ. विट्ठलदास मोदी द्वारा की गयी थी। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे। उन्हीं की प्रेरणा से आरोग्य मंदिर की स्थापना हुई थी। 140 शैयाओं वाला यह प्राकृतिक चिकित्सालय प्राकृतिक परिवेश में स्थित है। इसके आस-पास युक्लिप्टस और अशोक के अनेकों पेड़ और आम का बाग है।
भवन के सामने सुन्दर, सुगन्धित पुष्पों का उद्यान है। यहां नेचुरोपैथी के कोर्स संचालित होते हैं। साल में एक बार कैंप का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में विदेशी भी इलाज कराने पहुंचते हैं। अमेरिका में रहने वाले डॉ. इंद्र यहां इलाज करा चुके हैं। उनका कहना है कि एलोपैथी में मर्ज से तत्काल लाभ मिलता है, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा से असाध्य रोगों को जड़ से खत्म किया जा सकता है।
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बर्लिन (जर्मनी) की इंजीनियर जेनेलिया ने पिछले दिनों सवा महीने रहकर आरोग्य मंदिर में प्राकृतिक चिकित्सा विधि से इलाज कराया था। वह खून में टॉक्सिन की मात्रा बढऩे के कारण त्वचा के सूखने की बीमारी से जूझ रही थीं। इससे उन्हें लिवर संक्रमण भी हो गया। जेलेनिया को फास्ट-फूड का शौक था और साथ ही सिगरेट और शराब के सेवन के कारण उसके खून में टॉक्सिन बढ़ गए थे। इसने उन्हें अंदर से खोखला करना शुरू किया। शरीर की त्वचा सूखने लगी। 28 साल की अवस्था में ही उसके चेहरे पर झुर्रियां आ गई। चेहरे पर फोड़े व मुहांसे निकलने लगे। लिवर इंफेक्शन हो गया।
जेलेनिया ने बताया कि बीते पांच साल से जर्मनी में इलाज करा रही हैं। मंहगी दवाओं और लंबे इलाज से कोई खास फायदा नहीं हुआ। चेहरे की त्वचा का सूखना बदस्तूर जारी रहा। तबीयत खराब होने से नौकरी तक छोडऩी पड़ी। जेनेलिया बताती हैं कि इस केन्द्र में इलाज के लिए मिट्टी, पानी, हवा और धूप का प्रयोग किया जाता है। आरोग्य मंदिर के कड़े नियमों का पालन करना पड़ा। पहले हफ्ते सिर्फ रोटी और उबली हुई सब्जी दी गई। इसके बाद दो हफ्ते तक खाने को कुछ भी नहीं मिला। सिर्फ पानी पीने की अनुमति थी। यह जीवन का सबसे कष्टप्रद समय रहा। चौथे हफ्ते से जूस मिलना शुरू हुआ। तब जाकर जान में जान आई। इस दौरान भाप से स्नान, मिट्टी स्नान, मालिश रोजाना होती रही। इससे उन्हें काफी फायदा मिला है।
मिट्टी में चमत्कारी गुण
आरोग्य मंदिर के प्रमुख डा.विमल मोदी ने बताया कि पूरी शरीर पर मिट्टी लेपन का रिकार्ड पिछले साल दिल्ली में बनाया गया था जब 302 लोगों ने एक साथ शरीर पर मिट्टी का लेप लगाया था। आरोग्य मंदिर में इस बार रिकार्ड बनाने के कार्यक्रम के पर्यवेक्षक के रूप में डा.विश्वस्वरूप रॉय चौधरी और वियतनाम से डॉ.जूलिया मौजूद रहीं। नोएडा में मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले प्रत्यूष कहते हैं कि मिट्टी लेपन में शामिल लोगों ने इस आयोजन में काफी आनंद लिया। डा.विमल मोदी का दावा है कि मिट्टी से त्वचा के विभिन्न रोग आसानी से ठीक हो जाते हैं। मिट्टी में सब्जियों और अनाज के बीज लगाने पर ये चीजें उगती हैं।
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यह गुणकारी है। इसमें जीवन है। यह मिट्टी जब त्वचा पर लगती है तब सकारात्मक बैक्टीरिया त्वचा पर आकर सकारात्मक गुण पैदा करते हैं। शरीर बीमारी से लडऩे लायक होता है। डॉ. मोदी बताते हैं कि शरीर पर लेपन के लिए मिट्टी तीन फिट नीचे से ली जाती है। इस मिट्टी में कीड़ों और कीटनाशकों का प्रभाव नहीं रहता है। शरीर पर लेपन के लिए चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को रात भर भिगोकर छोड़ दिया जाता है। सुबह इसका लेपन किया जाता है। डॉ. विमल मोदी ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा शरीर से गंदगी निकालने का काम करती है। जिस तरह हम अपने वाहन की सर्विसिंग कराते हैं, उसी प्रकार शरीर की भी सर्विसिंग होनी चाहिए। हवा, पानी और मिट्टी से मानसिक तनाव, बेचैनी, घबराहट, त्वचा रोगों का इलाज संभव है। प्रकृति के शरण मे जाकर असाध्य रोगों को दूर किया जाता है। 90 साल के विश्वनाथ त्वचा रोग से पीडि़त है। अपने अनुभवों को साझा करने हुए वह कहते हैं कि शरीर पर कुछ समय मिट्टी का लेपन करने से जिस सुकून का अनुभव होता है वह दवाओं के लंबे कोर्स से भी नहीं मिलता है।