Sonbhadra News: कई राज्यों में फैला है 'सीकेडी' का सिंडीकेट, जांच में कर्मियों की भूमिका आएगी सामने
Sonbhadra News: गाहे-बगाहे जिले में तैनात रहे कर्मियों के अलावा, इस धंधे को दूसरे जनपदों में स्थानांतरित कर्मियों की तरफ से भी संरक्षण दिए जाने की बात सुनने को मिलती रहती है।;
राज्यों-जनपदों में फैला है 'सीकेडी' का सिंडीकेट
sonbhadra News: शक्तिनगर थाने को लेकर वायरल हुई कथित वसूली लिस्ट के बाद कथित 'सीकेडी' सिंडीकेट को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। एनसीएल के जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू होने के बाद लिस्ट सामने आई है, लेकिन सूची में जिस कोयला, कबाड, डीजल यानी सीकेडी सिंडीकेट का जिक्र किया गया है उस सिंडीकेट के तार और तस्करी का जाल वाराणसी के विभिन्न जनपदों के साथ यूपी के अलावा दूसरे राज्यों में पाए गए हैं। चर्चाओं की मानें तो इस धंधे में होने वाली कमाई, सफेदपोशों के साथ ही पुलिसकर्मियों के आकर्षण का केंद्र रही है।
गाहे-बगाहे जिले में तैनात रहे कर्मियों के अलावा, इस धंधे को दूसरे जनपदों में स्थानांतरित कर्मियों की तरफ से भी संरक्षण दिए जाने की बात सुनने को मिलती रहती है। कहा जा रहा है कि अगर इस सिंडीकेट और वायरल की गई सूची के पीछे के चेहरों की भूमिका को लेकर गहनता से जांच की जाए तो जिले में तैनात कुछ कर्मियों के साथ ही, यहां से स्थानांतरित हो चुके कर्मियों की भी भूमिका सामने आ सकती है।
सोनभद्र में पोस्टिंग पाने वाला हर कर्मी शक्तिनगर के लिए रहता है लालायित, कारखासी के लिए होती है मारामारीःl
शक्तिनगर और अनपरा थाना क्षेत्र से सटी मध्यप्रदेश की सीमा वर्षो से कोयला, कबाड़ और डीजल तस्करों की पहली पसंद रही है। एमपी में सख्ती पर यूपी और यूपी में सख्ती पर एमपी के नेटवर्क के जरिए इनका तस्करी का खेल चलता रहता है। यहां तैनात होने वाला पुलिसकर्मी चाहे वह बड़े स्तर पर हो या छोटे स्तर पर, कबाड, कोयला, डीजल माफियाओं से थोड़ी सी नजदीकी एक अच्छी आय का स्रोत बन जाती है।
यहीं कारण है जिले में पोस्टिंग पाने वाले ज्यादातर कर्मी चाहे वह कांस्टेबल हो या इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, सबकी चाहत एक बार शक्तिनगर थाने पर तैनाती को लेकर बनी रहती है। इसी तरह उर्जांचल परिक्षेत्र के अनपरा थाने, शक्तिनगर की पुलिस चौकी बीना और अनपरा की पुलिस चौकी रेणुसागर के लिए भी जुगाड़ बनाने की होड़ मची रहती है।
सिपाही के रूप में भी तैनाती मिलती है तो कारखासी यानी थाने के इंचार्ज का सबसे खास सिपाही बनने को लेकर भी मारामारी मचने लगती है। बताते हैं कि इस तैनाती के लिए भी जुगाड़, जिले में नहीं राजधानी में तलाशा जाता है। माना जाता है किसी मंत्री या सत्ता पक्ष के किसी ओहदेदार की नजर-ए-इनायत हो जाए तो शक्तिनगर में तैनाती की गारंटी मिल जाती है। यहीं कारण है कि जब कोई थानेदार या दरोगा इस धंधे में दखल देता है, या फिर उससे इस धंधे से जुड़ें किसी व्यक्ति का हित प्रभावित होता है तो लामबंदी का खेल शुरू हो जाता है।
तस्करी का यह है तरीका, इस तरह खपाया जाता है माल
परियोजनाओं को आपूर्ति के नाम पर कोयला निकालकर उसे चंधासी मंडी पहुंचाने का खेल तो हाल के दिनों में सामनें आ ही चुका है। डीजल तस्करी के भी यहां वर्तमान में तीन ग्रुप सक्रिय बताए जा रहे हैं। एक ग्रुप चंदौली के अलीनगर डिपो या बीच में किसी पेट्रोल पंपों से रेलवे और एनसीएल की परियोजनाओं में स्थित कंज्यूमर पंपों के लिए जाने वाले टैंकर से डीजल कटिंग करता है। दूसरा ग्रुप एनसीएल में संचालित होने वाले वाहनों से डीजल उड़ाकर विभिन्न ट्रांसपोर्टरों आदि के यहां डीजल की खपत करता है। चर्चाओं पर यकीं करें तो एनसीएल की दस कोल परियोजनाओं से रोजाना लगभग बीस हजार डीजल की चोरी होती है। यहां जब-तब यह खेल सामने आता रहता है।
तीसरा ग्रुप इन दिनों एमपी के मुकाबले यूपी में डीजल सस्ता होने का फायदा उठाकर मोटा मुनाफा कमाने में लगा हुआ है। चर्चा है कि सीमा क्षेत्र स्थित कुछ पेट्रोल पंप संचालकों-मैनेजरों की सांठगांठ से, पंप से वितरण के लिए आना वाला डीजल मिनी टैंकर के जरिए मध्यप्रदेश के बड़े ग्राहकों-फर्मों-कंपनियों के पास पहुंच जाता है। तस्करी का यह खेल भी सामने आ चुका है, लेकिन इसकी जड़ में कौन-कौन शामिल हैं, यह अब तक सार्वजनिक नहीं हो सका है।
कबाड़ के धंधे के पीछे एनसीएल और आस-पास स्थित परियोजनाओं से उड़ाए जाने वाले मशीनों के कीमती पार्ट्स और केबल को कबाड़ तस्करी का बड़ा आधार माना जाता है। कानपुर से इसके सीधे जुड़ाव की भी बात कई बार सामने आ चुकी है। यहीं कारण है कि कानपुर से वायरल हुई वसूली लिस्ट ने एक बार फिर से इस कथित नेटवर्क को लेकर चर्चा छेड़ दी है।
कोल प्रबंधन भी मानता है सीकेडी को बड़ी चुनौती
कोयला, कबाड़, तस्करी का यह जाल सिर्फ कानून व्यवस्था के लिए चुनौती, अवैध धंधे को बढ़ावा देने का ही माध्यम नहीं है, बल्कि इसके जरिए एनसीएल के हर माह लगने वाली करोड़ों की चपत की चर्चा कोल इंडिया मुख्यालय तक होती रहती है। एनसीएल के सुरक्षाकर्मियों और तस्करी से जुड़े लोेगों से सीधी मुठभेड़ की भी बात जब-तब सुनने को मिलती रहती है। एनसीएल संपत्ति की सुरक्षा में तैनात प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोगों की भूमिका पर भी सवाल उठते रहे हैं। कई बार एनसीएल के शीर्ष अधिकारी पत्रकारों के सामने, इस चुनौती को स्वीकार कर चुके हैं।
इस पर रोक के लिए सभी कोल परियोजनाओं में सीआईएसएफ की तैनाती के लिए पिछले कई साल से प्रयास भी किए जा रहे हैं लेकिन जैसे ही मसला ठंडा होता है, कवायद ठंडी पड़ जाती है। कई बार पुलिस कप्तान स्तर से भी इस सिंडीकेट का नेटवर्क तोड़ने के लिए साझा अभियान की रणनीति बनाई गई लेकिन उनके तबादले के साथ ही, चीजें ठंडी पड़ती गईं।
कर्मियों पर बनता है दबाव, एक ग्रुप हो जाता है सक्रिय
चर्चाओं की मानें तो जिले में तैनात और यहां से स्थानांतरित हो चुके ऐसे कर्मी, जिनका किसी न किसी रूप में सीकेडी सिंडीकेट से जुड़ाव बना हुआ है, उन लोगों पर सोशल साइट्स पर ग्रुप भी बनाया हुआ है। जैसे ही उनके नेटवर्क के किसी व्यक्ति पर दबाव या कार्रवाई की स्थिति बनती है, वैसे ही किसी न किसी रूप में मसला उछलने लगता है।