Sonbhadra News: UP-MP सीमा पर बालू साइट संचालन में बड़ा खेल, पर्यावरण क्लीयरेंस और पट्टे को एनजीटी में चुनौती

Sonbhadra News Today: बालू खनन को लेकर पर्यावरण क्लीयरेंस और पट्टा आवंटन दोनों पर सवाल उठाते हुए, मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई है।

Update:2022-11-02 20:12 IST

यूपी-एमपी सीमा पर बालू खनन 

Sonbhadra News Today: यूपी-एमपी सीमा (UP-MP Border) पर कुड़ारी के पास ठटरा में बालू खनन को लेकर दिए गए पट्टे को लेकर बड़ा खेल खेले जाने का आरोप लगाया गया है। यहां पर्यावरण क्लीयरेंस और पट्टा आवंटन दोनों पर सवाल उठाते हुए, मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चुनौती दी गई है। एनजीटी की तरफ से गठित हाईपावर कमेटी की जांच और इसको लेकर गत 31 अक्टूबर को दाखिल की गई रिपोर्ट में, पर्यावरण क्लीयरेंस में गलत तथ्य दर्शाए जाने का मामला भी सामने आया है। हालांकि इसे लिपिकीय त्रुटि बताते हुए, संशोधित एनओसी को लेकर प्रक्रिया अपनाए जाने की जानकारी दी गई है। प्रकरण में 22 नवंबर को सुनवाई की तिथि मुकर्रर की गई है।

''बालू खनन पट्टा दिए जाने का लंबे समय से चर्चा में बना हुआ''

बताते चलें कि यूपी की सीमा से बिल्कुल सटे सोन नदी में एमपी के ठटरा ग्राम पंचायत की एरिया में बालू खनन पट्टा दिए जाने का लंबे समय से चर्चा में बना हुआ है। खनन एमपी में और परिवहन यूपी में, वन विभाग की एरिया से होते हुए होने की बात भी कई बार सुर्खियों में आ चुकी है। इसको लेकर वन विभाग की तरफ से एक-दो बार रास्ते को लेकर एक्शन भी लिया गया लेकिन बाद में मामला ठंडा पड़ गया और एमपी के सिंगरौली जिले से खनन अनुज्ञा होने की बात कहते हुए यहां खनन जारी रहा। पहले यहां ग्राम पंचायत ठटरा की तरफ से अनुज्ञा देकर 26 मई 2018 से 29 फरवरी 2020 तक बालू खनन का संचालन कराया गया। इसके बाद सिंगरौली जिले के रेत खदानों की बोली कराकर कोरबा, छत्तीसगढ के आरके ट्रांसपोर्ट एंड कंस्ट्रक्शन को ठटरा में बालू खनन का ठेका दे दिया गया। 30 जून 2023 तक के लिए आवंटित इस खदान के लिए अनुबंध 13 जनवरी 2021 को कराया गया है।


एनजीटी में इन मसलों को लेकर दी गई है चुनौती

दाखिल याचिका में कहा गया है कि बगैर नीलामी के यहां पट्टा दिया गया है और पर्यावरण क्लीयरेंस भी गलत तरीके से देकर खनन कराया जा रहा है। 2016 और 2020 में जारी हुई अधिसूचना का उल्लंघन बताते हुए, खनन कार्य रोकने की याचना की गई है। इसको गंभीरता से लेते हुए एनजीटी की तरफ से राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला मजिस्ट्रेट सिंगरौली, मुख्य वन्य जीव वार्डन एमपी को मामले की जांच कर रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए गए।


जांच में सामने आई गड़बड़ी को लेकर खनन अधिकारी ने किया लिपिकीय त्रुटि का दावा

जंच के दौरान पर्यावरण मानकों को लेकर मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र संचालक संजय टाइगर रिजर्व ने उप संचालक हरिओम से इस बारे में जानकारी मांगी तो पता चला कि बालू खनन के लिए जो पर्यावरण एनओसी/कार्यालयीय एकल प्रमाणपत्र जारी किया गया है कि उसमें 10 किमी की परिधि में कोई भी नेशनल पार्क/अभयारण्य/इको सेंसिटिव जोन न होने की बात उल्लिखित करते हुए, प्रमाण पत्र जारी किया गया है। जबकि सोन घड़ियाल वन्य जीव का विस्तार वहां से महज एक किमी पहले तक है। अब इसको लेकर प्रभारी खनिज अधिकारी सिंगरौली की तरफ से लिपिकीय त्रुटि बताते हुए, सिया भोपाल के सदस्य सचिव से संशोधित एनओसी जारी करने का अनुरोध किया गया है। दावा किया गया है कि इको सेंसिटिव जोन, खनन स्थल से एक किमी से अधिक दूर होने के कारण, लिपिकीय त्रुटि के बाद भी पर्यावरण अनुमति प्राप्त करने में नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है। अब इस मामले में एनजीटी का क्या निर्णय आता है, इस पर सोनभद्र और सिंगरौली दोनों जिलों के लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं। 

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