Sonbhadra Holi 2024: अनोखी परंपरा के चलते सोनांचल में 4 दिन पूर्व मनाई गई होली

Sonbhadra News: सोनांचल के आदिवासी अंचल से जुड़े कई गांवों में चार दिन पूर्व ही होली पर्व मनाने की अनोखी परंपरा बृहस्पतिवार को उत्साह के साथ मनाई गई। लोगों ने झूमकर फाग गाए।

Update: 2024-03-21 12:37 GMT

सोनांचल में मनाई गई होली। (Pic: Newstrack)

Sonbhadra News: सोनांचल के आदिवासी अंचल से जुड़े कई गांवों में चार दिन पूर्व ही होली पर्व मनाने की अनोखी परंपरा बृहस्पतिवार को उत्साह के साथ मनाई गई। जहां एक तरफ झूमकर फाग गाए गए। वहीं, आदिवासी तबके में एक दूसरे पर जमकर टेसू के फूलों के रंग बरसाए गए। प्राकृतिक रंगों से सरोबार यह होली लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही। छत्तीसगढ़ और झारखंड से सटे इलाकों में मनाई गई इस होली, को देखने पहुंचे दूसरे गांवों के लोगों ने भी, रंगों की बरसात भरे नजारे का खासा लुत्फ उठाया।


यहां मनाई गई चार दिन पूर्व होली

म्योरपुर ब्लाक के ग्राम पंचायत कुदरी स्थित आदिवासी बहुल आलिया टोला और पश्चिमी देवहार ग्राम पंचायत के आजनगिरा में टोले में वर्षों से चली आ रही चार दिन पूर्व होली मनाने की परंपरा उत्साह के साथ मनाई गई। प्रधान राम दास, रोजगार सेवक दिनेश कुमार, कामता सिंह गोंड़, रामधनी, मोहन, गुड्डू आदि ग्रामीणों के मुताबिक मुहूर्त के मुताबिक बुधवार की रात, तय समय पर होलिका दहन किया गया और फाग गीत गाए गए। बृहस्पविार की सुबह सुबह लोकनृत्य करमा के साथ होलिका की धूल उड़ाने की परंपरा निभाई गई। वहीं, मानर की थाप पर युवाओं-किशोरी की टोली देर तक झूमती रही। तरह-तरह के पकवानों के साथ आदिवासियों ने इस पर्व का आनंद उठाया। विंढमगंज क्षेत्र के बैरखड ग्राम पंचायत में आदिवासियां ने जमकर होली का रंग उड़ाया। वर्षों पुरानी परंपरा निभाते हुए आदिवासी बृहस्पतिवार को पूरे दिन रंगों से सराबोर होते रहे। जगह-जगह फाग गाने, मस्ती में झूमने का लुत्फ उठाने का सिलसिला बना रहा। समूह में इकट्ठा होकर महिला-पुरूषों ने जहां वाद्ययंत्र मानर की थाप पर जमकर नृत्य किया। वहीं एक दूसरे को अबीर लगाकर होली की शुभकामनाएं दी।


बैगा तय करते हैं होलिका दहन-होली पर्व की तिथि

प्रधान उदय पाल, पूर्व प्रधान अमर सिंह, छोटेलाल सिंह ,रामकिशुन सिंह आदि ग्रामीणों के मुताबिक आदिवासी समुदाय में जिंदा होली मनाने की परंपरा वर्षों पुरानी है। इसके लिए प्रतिवर्ष गांव के बैगा (आदिवासी समुदाय के पुजारी) होलिका दहन और पर्व मनाए जाने की तिथि तय करते हैं। उनकी मौजूदगी होलिका का दहन भी किया जाता है। इसके अगले दिन होलिका की धूल उड़ाते हुए दिन भर होली खेलते हैं और अपने ईष्ट देव की आराधना करते हैं। इस होली के लिए महीने भर से ही टेसू यानी पलास के फूलों को चुनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और प्राकृतिक तरीके से इन फूलों का रंग उतारकर होली पर्व मनाया जाता है।

वर्षों पूर्व हुई अनहोनी से बचने के लिए मनाते हैं जिंदा होली

आदिवासियों के मुताबिक दुद्धी तहसील क्षेत्र के कई आदिवासी बहुल गांवों में वर्षों पूर्व होली के दिन बड़ी अनहोनी का सामना करना पड़ा था। उस दौरान आदिवासी समुदाय के बैगा-धर्माचार्यों ने सामान्यतया मनाई जाने वाली होली के चार-पांच दिन पूर्व ही होली मनाए जाने की सलाह दी थी। उसके बाद से ही चार-दिन पूर्व होलिका दहन का मुहुर्त निकलवाने और होली मनाने की पंरंपरा कायम हो गई।


शुक्रवार को भी आदिवासी क्षेत्र में बरसेंगे रंग

बताया जाता है कि दुद्धी तहसील क्षेत्र के कुछ गांवों में शुक्रवार को भी होली पर्व से पहले ही होली मनाए जाने की परंपरा निभाई जाएगी। बताया जा रहा है यह अनोखी होली शुक्रवार को तहसील क्षेत्र के चांगा और फरीपान गांव में देखने को मिलेगी।

Tags:    

Similar News