लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पानी को अपने एजेंडे पर ले लिया है। सरकार इस पर दो तरह से काम कर रही है। इसके तहत एक तो यूपी सरकार जल्द ही इंडिया मार्का-2 हैंडपंप को प्रतिबंधित करने की तरफ कदम बढ़ा सकती है और दूसरा पानी की समस्या सुलझाने के लिए अब जल्द ही ग्राम्य विकास विकास हर विधायक की विधायक निधि से 25 लाख रुपये हर साल पानी की व्यवस्था पर खर्च करने की बाध्यकारी व्यवस्था का भी प्रस्ताव देने जा रहा है। सूत्रों की माने तो ग्राम विकास विभाग इंडिया मार्का-2 हैंडपंप की उपयोगिता को लेकर संतुष्ट नहीं है। इसके लिए बाकायदा रिपोर्ट मंगाई गई है। माना जा रहा है रिपोर्ट आने के बाद प्रदेश सरकार इंडिया मार्का-2 हैंडपंप को पूरे प्रदेश में प्रतिबंधित कर सकती है।
प्रदेश में करीब दो लाख हैंडपंप, चौथाई खराब
प्रारंभिक रिपोर्ट में जलनिगम से मिले आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में हैंडपंपों की संख्या लगभग दो लाख है। इनमें से लगभग 50 हजार खराब हो चुके हैं। एक लाख रीबोर के योग्य हैं। मात्र 50 हजार ही शत प्रतिशत चालू हालात में हैं। इसके बाद विस्तृत रिपोर्ट का इंतजार है। यह रिपोर्ट सरकार के फैसले का आधार बन सकती है।
क्यों लटक रही है प्रतिबंध की तलवार
दरअसल प्रदेश में अब ज्यादातर जगहों पर जलस्तर लगातार घट रहा है। यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस साल में भारत में भूजल स्तर औसतन पैंसठ फीसद तक गिरा है। प्रदेश में नवासी फीसद कुओं का जलस्तर पिछले दस साल में लगातार घटा है। प्रदेश में नित नए डार्क जोन बन रहे हैं यानी ऐसी जगहें जहां से पानी निकाला ही नहीं जा सकता। ऐसे में सिर्फ 147 फीट अधिकतम तक पानी खींचने की क्षमता रखने वाले हैंडपंप बेकार साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने करीब डेढ़ साल पहले घोषणा की थी कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 47,900 नए इंडिया मार्का-२ हैंडपंप लगाए जाएंगे। इसके साथ ही पहले से स्थापित इंडिया मार्का-2 हैंडपंपों को चालू हालत में लाने के लिए री बोरिंग के आदेश भी दिए गए थे। ऐसे कुल हैंडपंपों की संख्या करीब 95 हजार 800 थी पर यह काम नहीं हुआ और अब हालत और बदतर हैं।
इसके अलावा इंडिया मार्का-2 पंप की सबसे बड़ी समस्या है कि यह बिना किसी सरकारी या एनजीओ की मदद के बनवाए ही नहीं जा सकते। ऐसे में अब नेक्स्ट जेनरेशन के पंप विलोम ( विलेज लेवल आपरेशन एंड मेंटेनेंस पंप) पर विचार किया जा रहा है जैसे-इंडिया मार्क 3, एफ्रीडेव, ब्लूपंप। जलस्तर नीचे जाने और मेंटेनेंस की जटिलता के चलते ही यूपी सरकार का ग्राम्य विकास विभाग इन हैंडपंपों की समीक्षा कर रहा है जिसके बाद इन्हें प्रतिबंधित किया जा सकता है।
इंडिया मार्का-2 का क्या होगा विकल्प
प्रदेश सरकार इंडिया मार्का-2 पंप के विकल्प के तौर पर सोलर चलित इंडिया मार्का-4 यानी सोलर पंप का इस्तेमाल कर सकती है। इन पंपों को सौर ऊर्जा से चलाया जाएगा जिसे ओवरहेड टैंक से जोड़ा जाएगा। ऐसे में यह पंप ओवरहेड टैंक से पानी देगा और इसका मेटेंनेंस भी सस्ता और आसान होगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार अब वर्षा जलसंचयन पर भी जोर देने जा रही है। गौरतलब है कि प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद सदन में कहा था कि मेरी सरकार अब रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देने जा रही है। योगी ने जलसंकट पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि प्रदेश में जल संचयन के लिए अभियान चलाया जाएगा और इसकी शुरुआत होने वाली है।
क्या है इंडिया मार्का-2 हैंडपंप
इंडिया मार्का-2 हैंडपंप 1970 के दशक में भारत सरकार, यूनीसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साझा तौर पर विकसित किया था। इसे शोलापुर में एक स्वप्रशिक्षित भारतीय मैकेनिक ने बनाया था। इसके बाद के 20 साल में करीब 10 लाख हैंडपंप पूरी दुनिया में लग चुके हैं। भारत और अफ्रीकी देशों के साथ लैटिन अमेरिका व यूरोप में इंडिया मार्का-2 पंप की इतनी धूम मची कि अब यह दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला पंप बन गया। इस पंप की खासियत है कि यह पीवीसी पाइप पर आधारित है जिससे यह पानी से खराब नहीं होता है।
बहुत विकट हो चुकी है समस्या
अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ‘वाटर एड’ का कहना है कि दुनिया का हर दसवां प्यासा व्यक्ति ग्रामीण भारत में रहता है। पीने के साफ पानी की कमी की समस्या भले ही वैश्विक स्तर पर हो, लेकिन भारत के लिए यह संकट कितना भयावह है इसे सिर्फ एक आंकड़े से समझा जा सकता है। यह वही उत्तर प्रदेश है जहां के लोकगीतों में कुआं, नदी और तालाब के बगैर जीवन के संस्कार कभी पूरे नहीं होते थे। बुंदेलखंड के जिले महोबा में तालाबों पर कई अच्छी पुस्तकें लिखी गईं। पीलीभीत से लेकर गोरखपुर तक के तराई क्षेत्र में मिट्टी कभी सूखती नहीं थी।
अतल, वितल, नितल, गभस्तिमान, महातल, सुतल और पाताल- सात स्तर पर जल के बड़े भंडार वाले इस इलाके में भी गंगा किनारे के बदायूं, एटा व फर्रुखाबाद जैसे इलाकों में पानी चेतावनी स्तर से नीचे तक उतर चुका है। इलाहाबाद, कानपुर, बनारस जैसे शहर भी आबादी के दबाव में हैं। बुंदेलखंड पहले ही बेहाल है। हाथरस, फिरोजाबाद, बरेली, बागपत, सहारनपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली के कुछ इलाकों में स्थितियां बहुत गंभीर हो चुकी हैं। गंगा में प्रदूषण का प्रमुख जोन उत्तर प्रदेश में ही है। बिजनौर से नरोरा और फिर कन्नौज से वाराणसी तक।
देश की सड़सठ फीसद आबादी गांवों में रहती है, यानी 83 करोड़ 80 लाख लोग ग्रामीण भारत का हिस्सा हैं। इनमें से छह करोड़ तीस लाख लोगों को पानी मयस्सर नहीं है। इन प्यासे लोगों की संख्या ब्रिटेन की कुल आबादी के बराबर है। इन लोगों को अगर एक लाइन में खड़ा कर दिया जाए तो न्यूयार्क से सिडनी और फिर सिडनी से न्यूयार्क तक दो लाइनें बन सकती हैं।
पानी के लिए हर विधायक को मिलेंगे 25 लाख
इसके अलावा ग्राम्य विकास विभाग जल्द ही विधायक निधि को लेकर एक प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास भेजने वाला है। अपना भारत को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के लिए ग्राम्य विकास विभाग अभी एक रिपोर्ट बना रहा है। इस रिपोर्ट के आने के बाद प्रदेश के हर विधायक को अपनी विधायक निधि से 25 लाख रुपये पेयजल और जलसंचयन पर खर्च करने होंगे।
मंत्री ने मांगा सभी से सहयोग
महेंद्र सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), ग्राम्य विकास एवं समग्र ग्राम विकास ने कहा हम सभी जलसंकट से त्रस्त हैं और यूपी को जलसंकट से निकालने के लिए हमें पार्टी के स्तर से आगे निकलकर सोचना होगा। बिना राजनीति हम अपने विधायकों से 25 लाख रुपये अपनी निधि से पानी पर खर्च करने का आग्रह करेंगे। इसमें सत्ताधारी दल के साथ विपक्ष का सहयोग चाहिए। यह मिला तो हम इस जलसंकट से जूझ रहे अपने प्रदेश की शक्ल बदल सकते हैं।