Mathura: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद, जानें पूरा इतिहास, कब क्या हुआ

Mathura: लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य वर्तमान कटरा केशवदेव में स्थित कंस के कारागार में लगभग 5247 वर्ष पूर्व हुआ था, श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने उसी कारागार स्थली पर भगवान श्रीकेशवदेव के प्रथम मन्दिर की स्थापना की।

Report :  Mathura Bharti
Update: 2022-12-24 11:45 GMT

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद। (Social Media)

Mathura: लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य वर्तमान कटरा केशवदेव में स्थित कंस के कारागार में लगभग 5247 वर्ष पूर्व हुआ था, श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने उसी कारागार स्थली पर भगवान श्रीकेशवदेव के प्रथम मन्दिर की स्थापना की, कालान्तर में इसी स्थल पर बार-बार भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। अन्तिम 250 फुट ऊंचा मन्दिर जहांगीर के शासन में ओरछा के राजा वीरसिंह देव ने बनाया, जिसे औरंगजेब ने अपनी कुटिलता के वशीभूत 1669 में ध्वस्त कर मन्दिर की सामग्री से मन्दिर के अग्रभाग पर ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया, जो विद्यमान है।

कटरा केशवदेव के सम्पूर्ण परिसर (13.37 एकड़) को धर्मानुरागी सेठ जुगलकिशोर बिरला ने महामना मदनमोहन मालवीय की प्रेरणा पर क्रय कर 1951 में श्रीकृष्ण-जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना कर सम्पूर्ण भूखण्ड ट्रस्ट को समर्पित कर दिया, तभी से सम्पूर्ण परिसर (ईदगाह सहित) का स्वामित्व श्रीकृष्ण-जन्मभूमि ट्रस्ट का है, जिसका दैनन्दिन प्रबंधन श्रीकृष्ण-जन्मस्थान सेवा-संस्थान द्वारा किया जा रहा है।

क्या है विवाद और कब कब न्यायालय की शरण मे पहुँचा मामला और क्या हुआ निर्णय

1815 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नजूल भूमि के रूप में कटरा केशवदेव को नीलाम किया जिसे सबसे ऊंची बोली लगाकर वाराणसी के राजा पटनी मल ने खरीदा, 1875 -1877 के मध्य राजा नृसिंह दास के पक्ष में 6 मुकदमे डिक्री हुए, 1920 में मुकदमा हुआ जो हिन्दू पक्ष में हुआ, 1921 में अपील की वह भी खारिज हो गई, 1928 में राय कृष्णदास ने मुस्लिमों के विरुद्ध मुकदमा किया जो उनके पक्ष में डिक्री हुआ, उसकी अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में मुस्लिमों ने की वह भी 1935 में खारिज हो गई। 08 फरवरी 1944 को मदनमोहन मालवीय, गोस्वामी गणेशदत्त व भीखनलाल आत्रेय के नाम जुगलकिशोर बिरला के आर्थिक सहयोग से कटरा केशवदेव की 13.37 एकड़ भूमि क्रय की गई, 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण-जन्मभूमि ट्रस्ट पंजीकृत हुआ और भूमि के तीनों स्वामियों ने भूमि ट्रस्ट को समर्पित कर दी।

21 जनवरी 1953 को सिविल मुकदमा 4/1946 खारिज हुआ जो मुस्लिम ने बेनाम निरस्ति के लिये किया था। 01 मई 1958 को ट्रस्ट ने प्रबंधन के लिए श्रीकृष्ण-जन्मस्थान सेवा-संघ नामक समिति पंजीकृत करायी। 1959 में पुनः मुस्लिम्स ने मुकदमा 361/1959 किया जो खारिज हुआ, 1967 में श्रीकृष्ण-जन्मस्थान ने मुस्लिमों को परिसर खाली करने व ढाँचा हटाने के लिए मुकदमा किया जो 12 अक्टूबर 1968 के समझौते के आधार पर 1974 में समाप्त हुआ। 07 मई 1993 को मनोहरलाल शर्मा एडवोकेट ने 12 अक्टूबर 1968 के समझौते को नियम विरुद्ध बताकर धारा 92 में संस्थान के विरुद्ध मुकदमा किया जो जनपद न्यायाधीश ने खारिज कर दिया। उसके बाद अब तक इस मामले हरिशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री व विष्णु जैन की ओर से श्रीकृष्ण विराजमान, अधिवक्ता महेंद्र प्रताप की ओर से वाद केशव देव व हिन्दू महासभा सहित आधा दर्जन से अधिक वाद विचाराधीन है।

श्रीराम जन्मभूमि शिलान्यास समारोह कराने वाले आचार्य गंगाधर पाठक भी कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान का मुद्दा भी हल होना चाहिए। श्रीकृष्ण हमारे आराध्य हैं। आज यहां जो स्थिति है उससे संस्कार तथा हम सनातनधर्मियों की बहुत क्षति हो रही है। जन्मस्थान श्रीकृष्ण का है उस पर अतिक्रमण हुआ है। ये सर्वविदित है। जो वाद दायर हुआ है वह सही है।

मुस्लिम पक्ष का क्या है कहना

उधर, वाद दायर के बाद शाही ईदगाह के अध्यक्ष प्रो.जेड हसन ने अपनी चुप्पी तोडी और मीडिया से बात करते हुए कहा कि जिस तरह से कृष्ण की नगरी का प्रेम सौहार्द्र बना हुआ है उसको बनाये रखा जाना चाहिए। प्रो.जेड हसन ने यह भी कहा कि सन 1968 में एक समझौता हुआ था जिसमें श्री कृष्ण जन्मभूमि को काफी जमीन दे दी गई थी जिस पर विशाल मंदिर बना हुआ है और मस्जिद भी मुस्लिम भाईयों के लिए है। जिस पर ईद की नमाज आज भी मुस्लिम भाई पढ़ते हैं और नीचे आने पर हिन्दू भाई गले मिलकर उनको ईद की मुबारक बाद देते है और हिन्दू भाई केक लेकर आते है जिस पर कृष्ण की बांसुरी व मोरपंखी बनी होती है यही इस नगरी का प्रेम है जिसको कायम रखना चाहिए। एक तरफ मंदिर और एक तरफ मस्जिद इस बात की मिसाल है कि हम सब एक है और हम सब हिंदुस्तानी है। प्रो.जेड हसन ने उन हिन्दू साधु संतों को भी बाल कृष्ण भट्ट के लेख कहा विष्णु घट गयो जो भिरगू मारी लात के माध्यम से अपील की की संतो की सहिष्णुता का परिचय देना चाहिए।

श्रीराम मंदिर फैसले का क्या है पैरा 117

तीन लोक से न्यारी कही जाने वाली श्रीकृष्ण जन्म और क्रीड़ा स्थली मथुरा नगरी में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण प्रारंभ होने के बाद यकायक यहां दोनों पक्षों के लोग पुराने मामले को अपनी-अपनी दलीलों से गरमाने लगे हैं। बताते हैं मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में दायर 57 पेज के दावे में श्रीकृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह का मामला उठाने से पहले अतीत से लेकर वर्तमान तक का समग्र अध्ययन किया गया है। एक पक्ष के लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम मंदिर के पक्ष में दिए फैसले के पैरा 117 में संकल्प अमर रहने का स्पष्ट उल्लेख किया है। यह वाक्य इस मामले में भी नजीर बन सकता है। श्रीकृष्ण विराजमान व लखनऊ की महिला अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री अन्य पक्षकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन व उनके पुत्र विष्णु शंकर जैन ने वाद दायर किया है।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन (Supreme Court Advocate Vishnu Shankar Jain) बताते हैं कि कोर्ट में सुनवाई होने पर सभी साक्ष्यों को रखा जाएगा। राम मंदिर के फैसले (Ram Mandir verdict) में सुप्रीम कोर्ट यह स्पष्ट कर चुका है कि संकल्प अमर रहता है। मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है। वहां मंदिर संकल्प के साथ बनवाया गया है। लिहाजा यहां मस्जिद को भूमि देने का सवाल ही नहीं होता। इस केस में भी सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मददगार साबित होगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता जैन (Supreme Court Advocate Vishnu Shankar Jain) बताते हैं कि अनक पुस्तकों से जानकारी मिली है कि राजावीर सिंह बुंदेला ने 1618 में 33 लाख रूपये की लागत से श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मंदिर का दोबारा निर्माण कराया था। इसके बाद 1670 में औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर मंदिर को ध्वस्त करा मूर्तियों को वहां से हटवा दिया था। मुगल शासन पर कई पुस्तक लिखने वाले यदुनाथ सरकार की एनिट डॉट्स ऑफ औरंगजेब पुस्तक में भी फरमान की कॉपी है। लेखक यात्री निकोलम मनूची ने भी अपनी किताब इंस्टोरिया डो मोगर में इसका जिक्र किया है। मराठाओं ने मुगल शासकों को परास्त कर अपनी जीत के बाद पांच अप्रैल 1770 की गोवर्धन की जंग में पुन: मंदिर बनवाया। इसके बाद 1803 में अंग्रेजी शासन में अंग्रेज आए, उन्होंने 1815 में कटरा केशवदेव मंदिर की 13.37 एकड़ भूमि की नीलामी कराई थी उस बोली में बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा था।

क्या है इस विवाद का कथित समझौता

वर्ष 1968 में तत्कालीन डीएम व एसपी के सुझाव पर लिखित समझौता हुआ था। करीब तीन दशक तक श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह का विवाद चला था। विवाद में दोनों पक्षों से अनेक शिकायत एवं मुकदमेंबाजी भी हुई थी बाद में तत्कालीन जिलाधिकारी श्री गोयल एवं एसपी गिरीश बिहारी ने दोनों पक्षों को आपसी रजामंदी से समझौता करा दिया था। यह समझौता ढाई रूपये के स्टांप पेपर पर किया गया था। इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने दस प्रमुख बिन्दुओं पर समझौता किया था। जिस समझौते को अवैध करार देते हुए कोर्ट में दाखिल दावे में मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। उस समझौते का विरोध भी सेवा संघ को पत्र लिखकर किया गया था।

इस समझौते का उल्लेख कई पुस्तकों में दर्ज भी है, जिनमें न्यायिक स्थिति श्रीकृष्ण जन्मस्थान नामक पुस्तक में इस समझौते का उल्लेख है। यह समझौता वर्ष 1968 के 10 अगस्त को हुआ था उस समय तत्कालीन जिलाधिकारी आरके गोयल और एसपी गिरीश बिहारी भी उपस्थित थे। दोनों के सुझाव पर दोनों पक्षों के आपसी रजामंदी पर वे समझौता हुआ था। तब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की ओर से समझौते पर हस्ताक्षर सह सचिव देवधर शर्मा, उनके सहयोगी फूलचंद्र गुप्ता ने किए थे। मामले में अधिवक्ता अब्दुल गफ्फार थे।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (Shri Krishna Janmasthan Seva Sangh) के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी (Member Gopeshwar Nath Chaturvedi) बताते हैं कि शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी की ओर से समझौते में शाहमर मलीह, डा.शाहबुद्दी साकिब, आबिदुल्ला खां,मौहम्मद आकूब आलूवाला के हस्ताक्षर थे, जबकि अधिवक्ता रज्जक हुसैन थे।

समझौते का हुआ था विरोध

विश्व हिन्दू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) के तत्कालीन जिलाध्यक्ष डा. रमनदास पंडया और चंद्रभानु ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ को इस समझौते को न करने की सलाह देते हुए एक लिखित पत्र देकर विरोध जताया था। जिस धार्मिक स्थल का उत्थान हो रहा है उसी के एक हिस्से को मुसलमानों के लिए ये देना गलत कार्य है। उन्होंने पत्र में सेवा संघ के ट्रस्ट्रियों से फैसले पर पुनर्विचार करने और धार्मिक स्थान का अंगभंग न करने की बात उठाई थी।

समझौते में प्रमुख मुद्दे जो तय हुए थे

श्रीकृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह से जुड़े पक्षों में जो समझौता हुआ था उसमें निम्नलिखित प्रमुख मुद्दे तय हुए थे। मस्जिद निर्माण समिति दो दीवारों का निर्माण की जिम्मेदारी दी थी जिसमें ईदगाह के ऊपर के चबूतरे की उत्तर व दक्षिण दीवारों को पूरब की ओर रेलवे लाइन तक बढ़ाकर उपरोक्त दोनों दीवारों को बनाएगी। साथ ही यह भी तय हुआ था कि मस्जिद कमेटी मुस्लिम आबादी को खाली कराकर संघ को सौंपेगी, साथ ही यह भी तय हुआ था कि एक अक्टूबर 1968 तक दक्षिण की ओर जीने का मलबा मस्जिद कमेटी उठा लेगी। समझौते में यह भी था कि मुस्लिम आबादी में जिन मकानों का बैनामा उत्तर और दक्षिण वाली दीवारों के बाहर अपने हक में जो कराया है उसे संघ को दे देगी। साथ ही जन्मस्थान की ओर आ रहे ईदगाह के पनाले ईदगाह की कच्ची सड़क कर्सी की ओर मोड़ा जाएगा। इसका खर्च जन्मस्थान संघ वहन करेगा। साथ ही पश्चिम उत्तरी कोने में जो भूखंड संघ का है ऊसमें कमेटी अपनी कच्ची कुर्सी को चौकोर करेगा और वह उसी की मिल्कियत मानी जाएगी तथा रेलवे लाइन के लिए जो भूमि संघ अधिग्रहित करा रहा है, जो भूमि ईदगाह के सामने दीवारों के भीतर आएगी उसे कमेटी को दे देगा। ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मस्थान से जुड़े दोनों पक्षों की ओर से सभी शर्ते पूरी होने पर जो मुकदमें चल रहे हैं, उसमें राजीनामा दाखिल होगा और सभी मुकदमें आपसी सहयोग और सहमति से वापस होंगे।

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