Story of Transgender: एक ट्रांसजेंडर की आपबीती रौगटे खड़े कर देगी, अपनों ने ही किया पराया

Story of Transgender: लखनऊ (Lucknow) के पॉश इलाके की इस कोठी में वो सब कुछ है जो इसे आलिशान बनाता है । यहां हमारी मुलाकात हुई शालिनी से जो पहले शैलेश हुआ करता था ।

Written By :  Network
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-04-25 18:05 IST

अमेरिका में थम नहीं रहा ट्रांस जेंडर्स के साथ भेदभाव का सिलसिला: Photo - Social Media

Story of a transgender: शहर की आलिशान कोठी में बोले गए ये शब्द । पिघले शीशे कि तरह कान में पड़े । ये सिर्फ शब्द नहीं थे, बोलने वाले कि पूरी जिंदगी इसमें पीरोई हुई थी । नजर उठा के देखने पर कमरे में मौजूद रईसी दिखती है और सामने सोफे पर वो खुबसूरत लड़की बैठी है, जिसने ये कहा है । मायने समझ नहीं आये होंगे आपको? तो बता देते हैं हमारी आज कि मुलाकात एक ट्रांसजेंडर (transgender) के साथ है और हम उनके घर में बैठे हैं । लखनऊ (Lucknow) के पॉश इलाके की इस कोठी में वो सब कुछ है जो इसे आलिशान बनाता है । यहां हमारी मुलाकात हुई शालिनी से जो पहले शैलेश हुआ करता था ।

हमने बात करना शुरू किया तो शालिनी ने कहा आपको जो पूछना है, पूछ सकते हैं । लेकिन मेरी पहचान उजागर मत करिएगा । क्योंकि बहुत मुश्किल से मैंने अपने को पाया है । बदला है, और फिर से वहीँ सब नहीं झेलना चाहती, जो नासूर बना अभी भी जिस्म से चिपका है । हमने भी वादा किया कि पहचान उजागर नहीं होगी ।

आप भी जानिए शालिनी की कहानी उसी की जुबानी

मेरा जन्म 22 सितंबर 1980 को लखनऊ में हुआ । घर में काफी मन्नतों के बाद लड़के ने जन्म लिया था । डैड नामी बिजनेसमैन हैं । जश्न भी शानदार हुआ, गाँव तक से सभी आए थे आशीर्वाद देनें । आखिर कुलदीपक जो हुआ था । वंश को आगे बढ़ाने वाला ।

लाड प्यार के साथ मैं बड़ा हो रहा था । पढ़ाई के लिए मुझे शहर के नामी मिशनरी स्कुल में भेजा गया । पढ़ाई में अच्छा था । लेकिन क्लास 5 तक आते आते मुझे अपने में बदलाव नजर आने लगे । मुझे लड़कों के साथ खेलने में अच्छा नहीं लगता था । डैड के साथ बाहर जाता तो गुड्डे गुडिया और किचेन सेट लाता । घर पर सबको अजीब लगता लेकिन उन्हें लगता कि बच्चा है समय के साथ सब बदल जाएगा ।

जैसे जैसे समय बीत रहा था मुझे सजना-संवरना अच्छा लगने लगा । घर में चाचा की बेटी जो मुझसे १ साल छोटी है । मै उसके साथ ही खेलता था । उसकी फ्राक पहना अच्छा लगता था । परिवार के लड़कों से ज्यादा मेरा समय लड़कियों के साथ बीतने लगा । बड़ा हुआ तो लड़कों ने स्कूल में अपने गैंग में शामिल कर लिया । वो जब लड़कियों पर गंदे जोक्स मारते तो ऐसा लगता कि मुझे ही कह रहे हैं । दिल करता कि मुक्का मार दूँ । धीरे-धीरे लड़कों से कटने लगा था । घर में दादा जी मम्मी और डैड समझ नहीं पा रहे थे कि बेटे को आखिर हुआ क्या है । या फिर वो ये मानने को तैयार नहीं थे ।

बड़ा होने लगा तो छातियों में उभार आने लगा । पहले सबको लगा कि ये आम बात है । लेकिन जब ये नहीं रुका तो मम्मी ने इसे छिपाने के लिए ढीले कपड़े पहनने को देना शुरू कर दिया । उन्हें लगा कुछ दिन में सब सही हो जाना है ।

सीनियर स्कूल में एडमिशन हुआ, वहां मैं लड़का ही था । दिल करता था कि लड़कियों के साथ रहूँ । लेकिन रह नहीं सकता था । ये वो समय था जब मुझे अपने अन्दर एक लड़की महसूस होने लगी थी । स्कूल में सबसे अलग थलग रहने लगा कि कहीं भेद ना खुल जाए । रात में मेरे अन्दर कि लड़की जाग जाती और मैं अपनी बहन के कपड़े पहनती । वही एक थी जिसे पता था कि मेरे अन्दर एक लड़की है । धीरे धीरे मैं अपने लिए लड़कियों वाले कपडे लाने लगी । उन्हें छुपा के रखती कि किसी कि नजर न पड़े । मेकप का सामान भी ले आई थी । रात में मेकप करती अपने को आईने में देखती और वापस सब पोछ के सो जाती । पूरा दिन लड़का बन के रहती ।

एक दिन मै अपनी बहन के साथ बात कर रही थी ड्रेस और मेकप के बारे में । मम्मी काफी देर से हमारी बात सुन रही थी उन्होंने पूछा तुझे ये सब जान के क्या करना है लड़के ऐसी बातें नहीं करते हैं ।

कब तक छुपा के रखती अपने को

मैं रात में अपने रूम में होती तो पूरी लड़की बन जाती सुबह फिर वापस लड़का बन जाती । मम्मी और पापा सोशल वर्क और बिजनेस में इतना बिजी रहते थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि उनका बेटा नहीं बल्कि बेटी है । किसी को शक न हो इसलिए गर्ल फ्रेंड भी बनाई । एक दिन वो घर आई थी मम्मी ने उससे मेरे बारे में पूछा, उसने कहा ये हमेशा लड़कियों जैसे बात करता है । उनके जैसे सोचता है । लिपस्टिक और मेकप कि बात करता है । हावभाव भी लड़कियों जैसे हैं । अभी तक मम्मी को जो शक था वो यकीन में बदल गया कि मै एक लड़की हूं और ये उनके बर्दास्त के बाहर था । रसूखदार परिवार से था एकलौता बेटा ऐसे कैसे ट्रांसजेंडर हो सकता है ।

जादू टोना लेकिन काम न आया

मम्मी और डैड मुझे मुंबई लेकर गए वहां काफी समय तक ट्रीटमेंट चला । मनोविज्ञानी, बाबा, ओझा, जादू, टोना सब किया गया की लड़की की आत्मा लड़के को छोड़ दे । लेकिन सब बेकार था । जब ऊपर वाले ने लड़की कि आत्मा दी तो कोई क्या कर सकता था । कोई दवा कोई थेरेपी काम न आई । मम्मी और डैड मुझे चाचा के पास ही छोड़ के वापस लखनऊ चले गए । महीनों बीत गए लेकिन न मम्मी न डैड किसी ने बात नहीं की । उनके लिए मै नासूर बन चुकी थी । इसी बीच दादा जी का देहांत हुआ । मुझे भी बुलाया गया हिदायत के साथ कि लड़के कि तरह ही आना है । उस दिन ऐसा लगा कि मै मर ही जाती घर आई तो किसी ने सीधे मुह बात भी नहीं की । मै तड़प रही थी कि कोई गले लगा के मेरा हाल पूछ ले ।

कुलगुरु की बेतुकी बात

हमारे कुलगुरु थे । सभी उनकी बात मानते थे । मैंने एक दिन उनको अपनी सारी बात बता कर उनसे मदद मांगी इस उम्मीद में कि वो मदद करेंगे । लेकिन उन्होंने साफ़ कह दिया रहना है तो लड़का बन के रहो मैं तुम्हे लड़की बन के रहने कि परमिशन नहीं दिला सकता । डैड से उन्होंने कहा इसकी शादी करा दो पत्नी आ जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा । सब मुझे मनोरोगी समझ रहे थे । जबकि ट्रांसजेंडर थी । मैं किसी लड़की की जिंदगी ख़राब नहीं करना चाहती थी । इसलिए बिना बताए मुंबई चली गई । चाचा के पास । उन्होंने मेरा पूरा सपोर्ट किया ।

हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी शुरू हुई (hormone replacement therapy)

लगभग 6 महीने ये थेरेपी चली । इसके बाद जिस्म में बदलाव आने लगा । मै नारी बनने लगी थी । सिर के बाल लंबे होने लगे और चेहरे के बाल घटने लगे थे । स्पीच थेरेपी भी ली ताकि मर्दाना पुट कम हो । थोडा समय लगा लेकिन मैंने पूर्ण नारीत्व पा लिया ।

बदल लिया नाम और परिवार को भी मनाया

वकील की हेल्प से मैं शालिनी बन गई। अपनी पसंद के कपड़े पहनती मेकप करती । इस सब में लगभग २ साल लगे । मम्मी और डैड कभी कभी ही बात करते थे । लेकिन मुझे जाना था उनके पास । उनको समझाना था कि मै उनके लिए नासूर नहीं हूं । उनकी बेटी हूं । मैंने लखनऊ जाने का सोच लिया और एक दिन घर पहुंच गई । ड्राइंग रूम में मम्मी और डैडी ब्रेकफास्ट कर रहे थे ।

मुझे सामने देख उन्होंने पूछा किस से मिलना है बेटा आपको? मैंने जब कहा ये मै हूं आपकी बेटी । ये सुनकर उन्हें झटका लगा । काफी दिन लगे दोनों को समझाने में । लेकिन उन्होंने कहा एक शर्त पर यहाँ रह सकती हो किसी को बताओगी नहीं कि तुम कौन हो । हम देख लेंगे किसे क्या बताना है । मेरे लिए यही ख़ुशी की बात थी कि मै अपने परिवार के साथ तो रह सकती हूं । और आज मै अपनी ही बहन बन के रह रही हूं । लेकिन यकीन है एक दिन आयेगा जब मेरे अपने मुझे मेरी पहचान के साथ अपना लेंगे ।

तो ये थी शालिनी कि कहानी और आपको भी समझ आ गया होगा कि क्यों उसने अपनी पहचान छुपाने को कहा । एक रसूखदार परिवार नहीं चाहता कि किसी को पता चले कि उनका बेटा असल में बेटा नहीं बेटी है । हम कब समझेंगे कि ट्रांसजेंडर कोई हमसे अलग नहीं हैं । लगता है इनको भी दोस्त चाहिए अपनों का प्यार चाहिए।

ट्रांसजेंडर की गणना 

शालिनी की आपबीती आप तक लाने का उद्देश्य ये है कि ट्रांसजेंडर को भी समाज में सम्मान और अपनापन मिले । इनमें भी वो काबिलियत है कि ये परिवार देश और समाज का नाम रौशन कर सकते हैं । इन्हें सिर्फ एक मौका चाहिए । यूपी सरकार ट्रांसजेंडर की गिनती कराने वाली है । अच्छी बात है लेकिन इसका फायदा कितना होगा ये तो समय ही बताएगा ।

newstrack की सलाह है कि सरकार को एक जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए ट्रांसजेंडर को लेकर इन्हें अछूत न माना जाए इन्हें भी बराबरी का मौका मिले कंधे से कंधा मिलाकर ये भी चल सकते हैं ।शालिनी जैसे खुशकिस्मत कम ही होते हैं । वरना ट्रांसजेंडर को उनका परिवार ही नहीं अपनाता और उनकी जिंदगी नाचने गाने और भीख मांगने में बीत जाती है।


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