बाहर से MBBS करने वाले छात्रों को प्रदेश में PG में दाखिला नहीं

हालांकि सरकार की ओर से कहा गया कि उक्त व्यवस्था में प्रदेश के डोमिसाइल छात्रों को कोई तरजीह नहीं दी जा रही है और न ही यह किसी प्रकार का आरक्षण है। कहा गया कि इससे याचियों का हित नहीं प्रभावित हो रहा।

Update: 2019-04-02 15:46 GMT

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनउ खंडपीठ ने राज्य सरकार के उस शासनादेश केा खारिज कर दिया है जिसमें प्रदेश के बाहर से एमबीबीएस करने वाले उन छात्रों को नीट-पीजी 2019 में प्रवेश के लिये अर्ह माना गया था जो मूलतः उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। केार्ट ने राज्य सरकार के उक्त 9 मार्च 2019 के शासनादेश के सम्बंधित प्रावधान को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।

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यह आदेश जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने डॉ जितेंद्र गुप्ता व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर दिया। याचीगण एमबीबीएस की डिग्री किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से प्राप्त कर चुके हैं व नीट- 2019 की ऑनलाइन लिखित परीक्षा भी पास कर चुके हैं।

प्रदेश के मूल निवासी छात्रों को तरजीह देने वाला सरकार का निर्णय खारिज

उन्होंने 9 मार्च 2019 के शासनादेश के उस प्रावधान को चुनौती दी थी, जिसके तहत प्रदेश के डोमिसाइल उन छात्रों को जिन्होंने 15 प्रतिशत आल इंडिया कोटा से प्रदेश के बाहर के मेडिकल कॉलेज या संस्थान में दाखिला लिया तथा प्रदेश के बाहर के विश्वविद्यालय से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की, उन्हें नीट-पीजी 2019 में स्टेट कोटा के पीजी सीटों पर प्रवेश के लिये अर्ह माना गया।

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हालांकि सरकार की ओर से कहा गया कि उक्त व्यवस्था में प्रदेश के डोमिसाइल छात्रों को कोई तरजीह नहीं दी जा रही है और न ही यह किसी प्रकार का आरक्षण है। कहा गया कि इससे याचियों का हित नहीं प्रभावित हो रहा।

याचिका को मंजूर करते हुए केार्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि शासनासेश के उक्त प्रावधान में प्रदेश के बाहर के विश्वविद्यालयों से डिग्री प्राप्त करने वाले, मात्र प्रदेश के डोमिसाइल (मूल निवासी) छात्रों को तरजीह दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णयों के रेाशनी में उक्त प्रावधान स्थानीयता के आधार पर तरजीह देने वाला है। कोर्ट ने इसे मौलिक अधिकार का उल्लंघन मानते हुए, निरस्त करने का आदेश दिया।

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