अयोध्या केस: रिव्यू पिटीशन पर 26 नवंबर को सुन्नी वक्फ बोर्ड लेगा फैसला
वहीं अब खबर आ रही है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस पर 26 नवंबर को आखिरी फैसला देने के लिए कहा है। साथ ही ये भी कहा है कि सरकार द्वारा दी गई जमीन को मुस्लिम पक्ष नहीं लेगा।
लखनऊ: अयोध्या मामले पर 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाये गए एतिहासिक फैसले में अब एक नया पेंच फंस गया है। कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों ने रविवार को रिव्यू पिटिशन दाखिल करने का फैसला लिया है। यह फैसला लखनऊ स्थित मुमताज कॉलेज में हुई बैठक में लिया गया।
वहीं अब खबर आ रही है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस पर 26 नवंबर को आखिरी फैसला देने के लिए कहा है। साथ ही ये भी कहा है कि सरकार द्वारा दी गई जमीन को मुस्लिम पक्ष नहीं लेगा।
इकबाल अंसारी ने टिप्पणी करने से किया इनकार
अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है
राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि
बता दें कि रविवार को हुई AIMPLB की बैठक के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हम फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन (पुनर्विचार या समीक्षा याचिका) दायर करेंगे।
साथ ही उन्होंने कहा कि हमें मालूम है रिव्यू पिटीशन का हाल क्या होना है, लेकिन फिर भी हमारा यह हक है। उन्होंने आगे कहा कि बोर्ड की बैठक में क्या फैसला हुआ यह प्रेस कॉन्फ्रेंस में पता चलेगा। अरशद मदनी ने कहा कि हम न मस्जिद को दे सकते हैं और न ही उसकी जगह कोई जमीन ले सकते हैं। मुकदमे में हमें हमारा हक नहीं दिया गया। मामले में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं: जिलानी
बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने बताया कि मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं है। इसमें हमारे साथ इंसाफ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि हम अयोध्या में नई मस्जिद के लिए नहीं गए थे। वहां पहले से 27 मस्जिद हैं। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद पर अपने हक के लिए मुकदमा दायर किया था।
जीलानी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की ऐवज में पांच एकड़ जमीन हम नहीं ले सकते। इस्लामी शरीयत भी हमें इजाजत नहीं देती कि हम मस्जिद के बदले में जमीन या कुछ भी लें। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता राजीव धवन के मुताबिक हम 30 दिन के अंदर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। इस मामले के सभी पक्षकारों के पास यह अधिकार है।
देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रही AIMPLB: मोहसिन रजा
यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा ने इस बैठक पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह संस्था देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि अगर AIMPLB को मीटिंग करनी ही थी तो हैदराबाद या दिल्ली में कर लेते। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट का आखिरी फैसला मुस्लिम समाज मंजूर कर चुका है तो उत्तर प्रदेश में इस मीटिंग को करने का क्या औचित्य है। मोहसिन रजा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड माहौल खराब करना चाहता है।
ये भी देखें : 50 लाख लगाइए 2000 करोड़ की संपत्ति बनाइए: बीजेपी
इन्होनें किया किया किनारा
हालांकि, इकबाल अंसारी और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बैठक से खुद को किनारा कर लिया है। बाबरी मस्जिद मामले में 4 वादी मुलाकात में मौजूद रहेंगे। हालांकि, फिरंगी महली,कल्वे जव्वाद और इकबाल अंसारी सरीखे नेता नहीं चाहते कि फैसले पर पुर्नविचार अर्जी दाखिल की जाए।
ये भी देखें : ट्रेनी महिला सिपाहियों की बर्खास्तगी रद्द, यह था आरोप
जमीयत का कहना है कि मस्जिद का दूसरा विकल्प स्वीकार नहीं
बता दें कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रस्तावित रविवार की बैठक से 2 दिन पहले जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेयूएच) ने फैसला किया था कि वे मस्जिद के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि स्वीकार नहीं करेंगे।
ज्ञात हो कि जेयूएच अयोध्या मामले में एक प्रमुख मुस्लिम वादी रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेयूएच) की कार्यकारी समिति की गुरुवार को दिल्ली में हुई बैठक के दौरान संस्था ने कहा कि मस्जिद के लिए दी गई वैकल्पिक भूमि किसी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है, चाहे पैसा हो, या भूमि हो।
जेयूएच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर समीक्षा याचिका डालने की संभावना से इंकार नहीं किया। जेयूएच के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा कि पांच सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति मामले पर कानूनी राय लेगी।
उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अशद रशीदी ने कहा है कि कार्यकारी समिति की बैठक में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। एक मस्जिद के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि से संबंधित था और दूसरा एक समीक्षा याचिका दायर करने की संभावना को लेकर था।
ये भी देखें : दिल्ली में लगेगी राज्य के हस्तशिल्पियों के उत्पादों की प्रदर्शनी
मस्जिद की ‘बदल’ (वैकल्पिक) नहीं हो सकती, चाहे वह पैसा हो या जमीन
उन्होंने आगे कहा है कि कार्यकारी समिति ने सर्वसम्मति से फैसला लिया है कि दुनिया की किसी भी चीज से मस्जिद की ‘बदल’ (वैकल्पिक) नहीं हो सकती है, चाहे वह पैसा हो या जमीन।’
बता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद की स्थापना 1919 में हुई थी। यह प्रभावशाली और आर्थिक रूप से मजबूत मुस्लिम संगठनों में से एक है। संगठन ने खिलाफत आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई थी। वहीं संगठन ने विभाजन का भी विरोध किया था।