UP Madarsa: यूपी में चलते रहेंगे मदरसा, HC के फैसले SC का बड़ा आदेश
UP Madarsa: उत्तर प्रदेश में मदरसा के संचालन पर लगाई गई रोक के आदेश को देश की शीर्ष अदालत पलट दिया है। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर रोक लगा दी है।
UP Madarsa: उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है। इस मामले में अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट जुलाई के दूसरे सप्ताह में करेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित किया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी है। यूपी मदरसा एक्ट रद्द करने के फैसले से मदरसा बोर्ड को बड़ी राहत मिली है।
सु्प्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के 25 हजार मदरसों के 17 लाख छात्रों को बड़ी राहत दी है। शीर्ष अदालत ने यूपी मदरसा एक्ट 2004 मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर अंतरिम रोक लगाई है जिसमें इस एक्ट को असंवैधानिक करार दिया गया था। साथ ही कोर्ट ने पक्षकारों यानी मदरसा बोर्ड, यूपी सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 30 जून 2024 तक जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट का फैसला सही नहींः सुप्रीम कोर्ट
फिलहाल 2004 के मदरसा बोर्ड कानून के तहत ही मदरसों में पढ़ाई-लिखाई चलती रहेगी। देश की शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला प्रथम दृष्टया सही नहीं है। क्योंकि हाईकोर्ट का यह कहना सही नहीं कि ये धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है। खुद यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में एक्ट का बचाव किया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिया था। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। यूपी मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई की। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि क्या हम यह मान लें कि राज्य ने हाईकोर्ट में कानून का बचाव किया है?
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एएसजी केएम नटराज ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में इसका बचाव किया था। लेकिन हाईकोर्ट के कानून को रद्द करने के बाद हमने फैसले को स्वीकार कर लिया है। जब राज्य ने फैसले को स्वीकार कर लिया है तो राज्य पर अब कानून का खर्च वहन करने का बोझ नहीं डाला जा सकता।
हाईकोर्ट का अधिकार नहीं बनताः सिंघवी
यूपी मदरसा बोर्ड की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट का अधिकार नहीं बनता कि वो इस एक्ट को रद्द करे। इस फैसले से राज्य में चल रहे करीब 25000 मदरसे में पढ़ने वाले 17 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं। 2018 में यूपी सरकार के आदेश के मुताबिक इन मदरसों में विज्ञान, पर्यावरण, मैथ यानी गणित जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। मदरसों की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यहां कुरान एक विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है। सीनियर एडवोकेट हुजैफा अहमदी ने कहा कि धार्मिक शिक्षा और धार्मिक विषय दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। इसलिए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगानी चाहिए। सिंघवी ने कहा कि अगर आप अधिनियम को निरस्त करते हैं तो आप मदरसों को अनियमित बना देते हैं। लेकिन 1987 के नियम को नहीं छुआ जाता। हाईकोर्ट का कहना है कि यदि आप धार्मिक विषय पढ़ाते हैं तो यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धार्मिक शिक्षा का अर्थ धार्मिक निर्देश नहीं है।
सिंघवी ने कहा कि आज कई गुरुकुल भी प्रसिद्ध हैं। वे अच्छा काम कर रहे हैं तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? क्या 100 साल पुरानी व्यवस्था को खत्म करने का ये आधार हो सकता है? कर्नाटक के शिमोगा जिले में एक ऐसा गांव है जहां पूरा गांव संस्कृत में ही बात करता है। वहां भी ऐसी संस्थाएं हैं। मुझे उम्मीद है कि इसके बारे मे कोर्ट को पता होगा।
धर्मनिरपेक्ष बने रहना होगा
उन्होंने आगे कहा, केवल इसलिए कि मैं हिंदू धर्म या इस्लाम आदि पढ़ाता हूं तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं धार्मिक शिक्षा देता हूं। इस मामले में अदालत को अरुणा रॉय फैसले पर गौर करना चाहिए। राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहना होगा। उसे सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। राज्य अपने कर्तव्यों का पालन करते समय किसी भी तरह से धर्मों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता। चूंकि शिक्षा प्रदान करना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक है, इसलिए उसे उक्त क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय धर्मनिरपेक्ष बने रहना होगा।
वह किसी विशेष धर्म की शिक्षा, प्रदान नहीं कर सकता या अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग शिक्षा प्रणाली नहीं बना सकता। मदरसों की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने भी कहा कि ये संस्थान विभिन्न विषय पढ़ाते हैं। कुछ सरकारी स्कूल हैं। कुछ निजी हैं। यहां आशय यह है कि यह पूरी तरह से राज्य द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल है। कोई धार्मिक शिक्षा नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में होगी।