Swami Prasad Maurya: क्या खुद को पार्टी से मजबूत समझते हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, बीते सालों में इन-इन दलों को छोड़ा

Swami Prasad Maurya: एक वक्त में मायावती के सबसे करीबी कहे जाने वाले और यूपी में पिछड़ी जाति से बड़ा नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य अपने राजनीतिक इतिहास में हमेशा पार्टियों से ऊपर नजर आते हैं।

Newstrack :  Bishwajeet Kumar
Update:2022-01-12 15:30 IST

Swami Prasad Maurya (Photo - Twitter)

Swami Prasad Maurya: चुनावी माहौल के बीच कल से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नाम खूब चर्चा का विषय बना हुआ है। वह नाम है योगी आदित्यनाथ सरकार में श्रम मंत्री रह चुके उत्तर प्रदेश के पिछड़ी जाति का बड़ा चेहरा माने जाने वाले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कल ही मंत्रिमंडल से इस्तीफा (Swami Prasad Maurya Istifa) देते हुए भारतीय जनता पार्टी से भी नाता तोड़ लिया है। ऐसे चुनावी माहौल में जब पहले चरण के चुनाव में महज एक महीने का वक़्त बाकी हो। पार्टी से किसी मंत्री का इस्तीफा देना बीजेपी के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।

स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा भारतीय जनता पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है जैसा बात इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश में वह पिछड़ी जाति के वोटरों के एक कद्दावर नेता माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश में वोटरों के जातिगत आंकड़ों को देखें तो इसमें सबसे ज्यादा वोटर पिछड़ी जाति से ही आते हैं उसके बाद दलित तथा तीसरे नंबर पर सवर्ण वोटर आते हैं। उत्तर प्रदेश में कुल वोटरों में 40 फ़ीसदी से अधिक वोटर पिछड़ी जाति से आते हैं। वही प्रदेश में दलित वोटरों की संख्या 30 फ़ीसदी के आसपास है तो स्वर्ण वोटरों की संख्या 20 फ़ीसदी से भी नीचे है।

स्वामी प्रसाद मौर्या का राजनीतिक सफर (Swami Prasad Maurya Political Career)

अब तक के अगर इतिहास को देखें तो स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब से राजनीति में कदम रखा है तब से उन्होंने ज्यादातर जीत का ही स्वाद चखा है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में जन्म लिए स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1980 में राजनीति में अपना पहला कदम रखा उस वक्त मौर्या इलाहाबाद युवा लोकदल में कार्यसमिति के सदस्य पद पर थे।

आगे के 8 साल यानी 1981-89 तकवा इलाहाबाद युवा लोकदल में महामंत्री के पद पर कार्यरत थे। बाद में 1989 में उन्हें यूपी लोक दल के मुख्य सचिव के रूप में काम करने का मौका मिला इस पद पर वह 1991 तक रहे। इसके बाद मौर्य ने यूपी जनता दल में महासचिव के पद पर 1995 तक काम किया।

उत्तर प्रदेश जनता दल को छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1996 में बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें महासचिव का पद दिया और रायबरेली के डलमऊ विधानसभा सीट से उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला। वहां से मौर्य चार बार विधायक चुने गए। मई 2009 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने पूर्वांचल की राजनीति में कदम रखा और 2009 के विधानसभा उपचुनाव में कुशीनगर के पडरौना विधानसभा सीट से उन्होंने चुनाव लड़ें। उस वक्त मौर्या ने आरपीएससी सिंह की मां को हराकर उपचुनाव में जीत हासिल किया।

स्वामी प्रसाद मौर्या का नाम उत्तर प्रदेश में तब और बड़ा हुआ जब 2008 में बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया। मगर 2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी हार गई। जिसके बाद उन्हें बसपा प्रदेश अध्यक्ष पद को छोड़कर नेता प्रतिपक्ष बनना पड़ा।

2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 8 अगस्त 2016 को स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती पर पैसा लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाते हुए उन्होंने बहुजन समाज पार्टी को बाय-बाय कह दिया और भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था। जिसके बाद उन्होंने 2017 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और भारतीय जनता पार्टी के सरकार में उन्हें श्रम मंत्रालय से मंत्री पद का जिम्मा दिया गया। इन 5 सालों में स्वामी प्रसाद मौर्या का नाम प्रदेश में और बड़ा हुआ जिसमें मौर्या तथा अन्य पिछड़ी जातियों के साथ इनका संपर्क दलित वोटरों के साथ भी खूब अच्छा हुआ।

वही अब जब विधानसभा चुनाव 2022 शुरू होने में 1 महीने से भी कम का वक्त रह गया है ऐसे में इन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ने का फैसला किया है राज्यपाल को दिए अपने इस्तीफे में स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा की इस सरकार में दलितों, पिछड़ों तथा छोटे व्यापारियों की उपेक्षा की जा रही है इसी कारण से वह मंत्री पद तथा पार्टी को छोड़ रहे हैं।

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