इलाहाबाद विश्वविद्यालय का मामला पहुंचा अब राष्ट्रपति की चौखट पर
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मनमाने ढंग से मानद उपाधियां दिए जाने के प्रयास के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने इस संबंध में महामहिम को पत्र लिखकर हस्तक्षेप मांग की है।
लखनऊ : इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मनमाने ढंग से मानद उपाधियां दिए जाने के प्रयास के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने इस संबंध में महामहिम को पत्र लिखकर हस्तक्षेप मांग की है। प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री का कहना है कि विश्वविद्यालय में मानद उपाधियां प्रदान किए जाने में नियमों और प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जा रहा है। उन्होंने यह बात ऐसे समय पर उठाई है, जब 5 सितंबर को विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह होना प्रस्तावित है।
प्रोफेसर शास्त्री के अनुसार मानद उपाधियां प्रदान किए जाने के संदर्भ में कुलाधिपति से पूर्व अनुमति नहीं दी गई है और ना ही इसकी सूचना दी गई है। उनका कहना है की मानद उपाधियां प्रदान करने के समस्त निर्णय विद्वत परिषद एवं कार्य परिषद की आपात बैठक में लिए जा रहे हैं। जिससे भ्रष्टाचार और अवैध कार्यों में सहयोग करने वालों को अनुग्रहित किया जा सके।
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प्रोफेसर शास्त्री का कहना है जिस विश्वविद्यालय में माननीय पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर रिचर्ड रिचर्ड अर्नेस्ट जैसे वैज्ञानिकों को उपाधियां दी गई थी।
उसी विश्वविद्यालय में आज एक स्थानीय राजनेता और उत्तर प्रदेश के डीजीपी को मानद उपाधि प्रदान करने का निर्णय लिया जा रहा है। जोकि विश्वविद्यालय की स्थापित गरिमा के अनुकूल नहीं है।
प्रोफेसर शास्त्री का कहना है- विश्वविद्यालय के नेतृत्व की इसी गिरावट का परिणाम है, कि विश्वविद्यालय कतिपय वर्षों में देश के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों की सूची से बाहर हो गया है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की परंपरा रही है ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने वालों को ही मानद उपाधियां दी जाएं। विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद और कार्यपरिषद की सामान्य बैठकों में ही कारण सहित गंभीर विचार मंथन के पश्चात मानद उपाधियां दी जानी चाहिए। अतीत में इसी प्रकार से दी जाती रही हैं।
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प्रोफेसर शास्त्री ने कुलाधिपति महामहिम विजिटर इलाहाबाद विश्वविद्यालय राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली को आज लिखे पत्र में यह प्रार्थना की है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति को विश्वविद्यालय की स्थापित परंपरा और गरिमा को गिराने हेतु किए जा रहे निम्न स्तरीय निर्णय लेने से रोकने की कृपा करे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपने छात्रों, अध्यापकों एवं कर्मचारियों के सराहनीय प्रयास के आधार पर लम्बे समय तक देश के अग्रणी विश्वविद्यालय में से एक रहा है। जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने अप्रतिम योगदान के कारण इसे 'पूर्व का आक्सफोर्ड ' कहा जाता रहा है। परन्तु विगत कुछ वर्षों से विश्वविद्यालय के अदूरदर्शी और आत्मकेन्द्रित नीति के चलते इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भी स्थान नही प्राप्त कर सका।
इसका मुख्य कारण विश्वविद्यालय नेतृत्व को विश्वविद्यालय के भविष्य की चिन्ता कम है और अपने स्वार्थ तथा अस्तित्व की चिन्ता ज्यादा रही है। विश्वविद्यालय के अधिनियम/परिनियम/अध्यादेश एवं परम्पराओं की धज्जियां उड़ाते हुए आज विश्वविद्यालय को उस चौराहे पर खडा कर दिया गया है, जहां कुछ दिनों बाद वह अपनी पहचान भी खो देगा।
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विश्वविद्यालय में दीक्षान्त समारोह होने जा रहा है, जिसमें मानद उपाधियाँ प्रदान करने की भी स्वस्थ परम्परा रही है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुराछात्रों की साहित्य, विज्ञान, न्याय, राजनीति और प्रशासन के क्षेत्र में एक समृद्ध परम्परा रही है। जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, कैबिनेट सेकेटरी, मुख्य सचिव, डी०जी०पी० स्तर के अधिकारियों की संख्या अनगिनत रही है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डा० आफ लाज की डिग्री “आनरिस कौसा” (मानद उपाधि) देने के लिए इस समृद्ध परम्परा पर विचार किया जाना चाहिए था। विश्वविद्यालय को चाहिए था कि राजनीति के क्षेत्र में यदि मानद उपाधियाँ देनी ही थीं तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाने के शिल्पकार प्रो० मुरलीमनोहर जोशी, देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री श्री अमित शाह, रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह और मानव संसाधन मंत्री श्री रमेशचन्द्र पोखरियाल निशंक और मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ के नामों पर विचार करते तो सम्भवतः न केवल ज्यादा उपयुक्त होता अपितु विश्वविद्यालय का भी कुछ भला होता।
प्रशासन के क्षेत्र में श्री नृपेन्द्र मिश्र, श्री योगेन्द्र नारायण, श्री सुभाष कश्यप जैसे अनेक महनीय व्यक्तित्व मानद उपाधि के सर्वथा योग्य हैं। न्याय के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालय के कई पुरा छात्र उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश एवं उच्चन्यायालयों में भी मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश रह चुके हैं और हैं भी।
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पुलिस प्रशासन के क्षेत्र में भी उत्तर प्रदेश के डी०जी०पी० श्री प्रकाश सिंह, बी०एस०एफ० के महानिदेशक रह चुके श्री अजयराज शर्मा एवं विभूति नारायण राय और उत्तर प्रदेश के डी०जी०पी० रह चुके श्री विक्रम सिंह, श्री ए०सी० शमो जैसे अनेक प्रशासक अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते रहे हैं।
किन्तु आज विश्वविद्यालय प्रो० रतनलाल हांगल के नेतत्व में मानसिक विकलांगता की पराकाष्ठा को प्राप्त कर चुका है। क्योंकि उसे अत्यन्त प्रयास करने पर मानद उपाधि देने के लिए प्रदेश के वर्तमान डी०जी०पी० श्री ओ०पी० सिंह ही सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति मिले हैं। जिनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था अराजकता का पर्याय हो गयी है।
जिसके ज्वलन्त उदाहरण सोनभद्र नरसंहार और उन्नाव जैसे रेपकाण्ड ही नही है अपितु प्रदेश में प्रतिदिन हो रही हत्याओं और बलात्कारों की गिनती करना भी असम्भव हैं।
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वस्तुतः वर्तमान कुलपति ने अपने कार्यकाल में ऐसे अनेक नियम विरुद्ध कार्य किये हैं जिनमें इनके खिलाफ संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज होने की सम्भावना है। शायद उसी से बचने के लिए डी०जी०पी० श्री ओ०पी०सिंह को अनुगृहीत करने का विश्वविद्यालय द्वारा कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।
यही नहीं, इसके पीछे पुलिस के समर्थन से विश्वविद्यालय के भ्रष्ट्राचार विरोधी छात्र संघ की आवाज को दबाने की भी मंशा है। विश्वविद्यालय अध्यादेश में विहित मानद उपाधि दिये जाने की प्रक्रिया का भी उल्लंघन विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किया जा रहा है।
किसी व्यक्ति को मानद उपाधि देने के लिए कुलाधिपति की पूर्व अनुमति आवश्यक है, जो विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नही ली गयी है। और न ही अभी तक अध्यादेश के अनुसार विजिटर को कोई सूचना ही गयी है।