UP विधानसभा चुनाव 2022: 'सत्ता की चाबी' हैं ये छोटी जातियां

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अब कुछ ही दिन दूर रह गया है। सभी सियासी पार्टियां अपना-अपना जातिगत समीकरण ठीक करने में लगी हुई हैं क्योंकि हमेशा से ही उत्तर प्रदेश की सियासत में जातिगत समीकरण का सत्ता पर बहुत प्रभाव रहा है।

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Bishwajeet Kumar
Update: 2022-01-27 12:36 GMT

Y-Factor Yogesh Mishra: अगले साल 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में छोटी जातियों का वोट बड़ी पार्टियों का भाग्य तय करेगी। कहने को भले ही ये छोटी जातियां हैं। लेकिन चुनावी नतीजों के वक्त इनका बड़ा कद देखने को मिलता है। यही वजह है कि हर राजनेता की कोशिश रही है कि वह इन वोटों को ओबीसी के वोटों से अलग करके एक नया वोट बैंक बना सके। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह ने इसकी शुरुआत की। पर उनके कार्यकाल में अधिक समय शेष न रहने की वजह से इसे अमली जामा नहीं पहुँचा पाये। लेकिन बिहार में नीतीश कुमार ने बाँटो व राज करो कि इसी नीति को लागू करके अपना सिक्का जमा रखा है। यह राजनेताओें की कोशिशों का ही तक़ाज़ा कहा जायेगा कि अब मोस्ट ओबीसी का एक नया वोट ही बन गया है। मोटे तौर पर कहें तो, प्रभुत्वशाली और अधिक आबादी वाले जाति समूहों की राजनीति और उनकी निष्ठाएं काफी हद तक निश्चित हैं। इसका अर्थ है कि अत्यंत पिछड़ी जातियां (गैर-यादव) और गैर-जाटव दलित अक्सर सत्ता की कुंजी अपने पास रखते हैं।यही भरोसा सभी राजनीतिक दलों को हैं, तभी तो सभी पिछड़ा पिछड़ा खेल रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कानपुर की रैली में खुद का पिछड़े समाज का यूँ ही नहीं बताया था। भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग हों या छोटे दलों को साधने की सभी राजनेताओें की क़वायद सब में ओबीसी का महत्व समझ में आता है।

साल 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की 'सोशल इंजीनियरिंग' का नतीजा देखने के बाद सभी दलों की निगाह 2022 के चुनाव में इन्हीं छोटी जातियों पर है। इस बार कुर्मी, राजभर, निषाद, कोइरी, प्रजापति, अर्कवंशी, पाल, चौहान, बिंद, लोहार, पटेल, पटनवार, ठठेरा आदि जातियों के हाथ में ही 'सत्ता की चाबी' होगी। इनके महत्व को समझते हुए सभी प्रमुख राजनीतिक दल इन जातियों को साधने में जुट गए हैं।

'देखन में छोटन लगे...'  

सुनने में छोटी लगने वाली ये जातियां 15 प्रतिशत वोट पर कब्ज़ा रखती हैं। यही वजह है कि इन्हें साधने की होड़ लगी है। हालांकि, इन जातियों को साधने की रेस में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) अन्य दलों की तुलना में सबसे आगे है। बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में इनकी ताकत का एहसास कर चुकी है। जबकि समाजवादी पार्टी एक बार फिर इन्हें जोड़ने की कोशिशों में जुटी है।

किसी एक दल के साथ नहीं बंधे 

दरअसल, इन जातियों का इतिहास बताता है कि ये किसी एक दल के साथ कभी बंधकर नहीं रही हैं। हर बार चुनाव के दौरान इनकी पसंद बदलती रही है। अक्सर ये चुनाव के करीब आने पर लामबंद होकर वोट करते रहे हैं। मगर, यह भी सच्चाई है कि चुनाव में जिसकी तरफ इनका रुझान होता है, सत्ता में वही दल आता है। यही कारण है कि चाहे क्षेत्रीय क्षत्रप हों या बड़े राजनीतिक दल, इन्हें अपनी तरफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। 

राजभर किधर, किसी को नहीं खबर  

2017 विधानसभा चुनाव के समय सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) बीजेपी के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरे थे। तब राजभर समाज का वोट बीजेपी के साथ जुड़ा था। मगर 2019 लोकसभा चुनाव आते-आते बीजेपी और सुभासपा की राहें जुदा हो गईं। नतीजा, इस चुनाव में राजभर बिरादरी का वोट कुछ हद तक बीजेपी से अलग हुआ। लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ओम प्रकाश राजभर सपा के साथ पारी खेलने वाले हैं।पर कभी वो एआईएमआईएम (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के साथ गले मिलते दिखे थे तो कभी बचते नजर आये थे। ओमप्रकाश राजभर ने 10 छोटे दलों को जोड़कर 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' बनाया था। पर अंतत: वह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर बैठे।

इन्हीं की बदौलत बीजेपी को मिला था प्रचंड बहुमत 

वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) के दौरान कुर्मी, कोइरी, प्रजापति, राजभर, लोहार, निषाद आदि जातियां भारतीय जनता पार्टी के साथ थीं। जिसकी बदौलत बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई। गौरतलब है, कि ये वही जातियां हैं जिनके खिसकने से पहले बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) और फिर समाजवादी पार्टी राज्य की सत्ता से बेदखल हो गई थी। मझवारा बिरादरी के साथ डॉ. संजय निषाद (Sanjay Nishad) बीच-बीच में रूठते-मनाते फिलहाल बीजेपी के साथ खड़े हैं। उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय का बड़ा चेहरा बन चुकीं अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) की पार्टी अपना दल (एस) (Apna Dal) भी बीजेपी के साथ है। बीजेपी को अगर सत्ता में दोबारा आना है तो अन्य छोटी जातियों को भी समय रहते साधना होगा। 

ये उपजातियां भी कर सकती हैं खेल 

ओबीसी में ही शामिल नट, बंजारा, बियार, बारी, कुंजड़ा, नायक, कहार, गोंड, धीवर, सविता आदि जैसी छोटी जातियां आबादी के लिहाज से काफी कम हैं, लेकिन इनकी गोलबंदी चुनावी नतीजों को प्रभावित करने का माद्दा रखती हैं। बताते चलें, कि ये वह जातियां हैं जिन्हें पिछड़ों में कुछ बड़ी आबादी वाली जातियां अपनी 'उपजातियां' बताती रही हैं। इनकी आबादी करीब आधा प्रतिशत से डेढ़ प्रतिशत के बीच है। 

जब गए जिनके साथ, तब-तब बनी सरकार  

साल 2007 में जब मायावती (Mayawati) बहुमत के साथ राज्य की सत्ता में आई थीं तब बाबू सिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर, पटेल, चौहान सहित अन्य बिरादरियों के कई मजबूत नेता उनके साथ थे। उस वर्ष मायावती के सोशल इंजीनियरिंग में ब्राह्मण और ठाकुर समाज के भी बड़े नेता हिस्सेदार बने थे। वैसे ही 2012 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव जब प्रदेश की सत्ता में आए तब उनके साथ भी इन बिरादरियों के तमाम बड़े नेता जुड़े थे। ऐसा ही कुछ 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ रहा। अर्थात यह कह सकते हैं कि इन छोटी जातियों का जिन्हें समर्थन जब-जब मिला वो सत्ता के शिखर तक पहुंचे। अब देखना होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में यह ऊंट किस करवट बैठता है।

जातियों के नाम    ओबीसी में प्रतिशत 

कुर्मी                      3.9%

लोध                       2.62%

जाट                       1.96%

गुज्जर                     1.63 %

सोनार                     0.29%

गड़रिया/पाल            2.4%

मल्लाह (निषाद)        2.34%

तेली/साहू                 1.94%

कुम्हार/प्रजापति        1.74%

कहार/कश्यप           1.8%

कुशवाहा/शाक्य        1.67%

नाई                        1.24%

राजभर                   2.36%

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