विधानसभा चुनाव 2022: मुस्लिम वोटों पर सबकी नजर, 'रहनुमा' बदलने की कशमकश तो नहीं
देश के सभी राज्यों के सियासत में जाति और धर्म फैक्टर जीत का एक बड़ा ही अहम फैक्टर होता है लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसकी महत्वता और भी ज्यादा बढ़ जाती है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर सभी दलों ने छोटी-बड़ी जातियों से लेकर विभिन्न धर्मों के वोट बैंक सहेजने शुरू कर दिए हैं। इसी वोट बैंक राजनीति में सबकी नजर 20 फीसदी मत प्रतिशत वाले मुस्लिम आबादी पर है। प्रदेश में अब तक कांग्रेस (Congress) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ही इसकी रहनुमा के तौर पर उभरी थी, लेकिन इस बार इस फलक पर एक और सितारा असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के रूप में उभरा है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा (UP Assembly) की कुल 403 सीटें हैं, जिसमें 125 से 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाता अपनी पैठ रखते हैं। इनमें से करीब 70 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 25 से 30 फीसदी के करीब है, जबकि शेष पर मुसलमान आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है। प्रदेश में तक़रीबन 35-36 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम प्रत्याशी अपने बूते जीत दर्ज करने में सफल रहता है। जबकि, शेष 100 से अधिक सीटों पर यह अल्पसंख्यक आबादी उलटफेर करने की क्षमता रखता है।
मुसलमानों का भरोसा सपा पर!
प्रदेश में तमाम जाति समीकरण एक तरफ और मुस्लिम वोट की सियासत दूसरी तरफ। मुस्लिम वोट की राजनीति को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस आमने-सामने है। दोनों ही पार्टियों की दिली ख्वाहिश है कि मुस्लिम वोट उनके खाते में आए। इसी वजह से कांग्रेस और सपा कई बार खुद को मुसलमानों का ज्यादा बड़ा रहनुमा दिखाने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन ये भी सच है कि बीते कई सालों से सूबे का मुसलमान समाजवादी पार्टी पर ही भरोसा जताता आया है।
सपा-बसपा-कांग्रेस को ओवैसी का 'चैलेंज'
हालांकि, 2022 चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी मैदान में है। जाहिर है देश के इस सबसे बड़े राज्य में जहां मुसलमानों की इतनी आबादी रहती है वहां ओवैसी की पार्टी के लिए वातावरण अनुकूल है। ऐसे में समाजवादी पार्टी को उसके पाले से परंपरागत मुस्लिम वोट छिटकने का भी सता रहा होगा। ओवैसी ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है वहां करीब 35 से 40 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। ऐसे में अब चुनौती समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के साथ है। भारतीय जनता पार्टी वैसे भी मुस्लिम वोटों के लिए कभी जोर-आजमाइश करती नजर भी नहीं आती है।
मुसलमानों के वही मुद्दे जो पहले थे
अब सवाल उठता है कि मुसलमानों के मुद्दे क्या हैं जो वो राजनीतिक पार्टियों से सत्ता में आने के बाद पूरी करने की उनसे उम्मीद करते हैं। इस समाज के मुद्दे अब भी वही हैं जो दो दशक पहले थे। मसलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक न्याय आदि। इन्हीं मुद्दों पर मुस्लिम समाज बंटता और एकजुट होता है।
मौजूदा सदन में सिर्फ 24 मुस्लिम विधायक
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सबसे कम सिर्फ 24 मुस्लिम विधायक जीतकर पहुंचे थे। गौरतलब है, कि मुस्लिम विधायकों की यह हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से भी कम है, जबकि प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 20 फीसदी है। आबादी के लिहाज से और सदन में नुमाइंदगी के नजरिए से ये संख्या बल काफी कम है। इसलिए सूबे के मुसलमान भरोसेमंद विकल्पों की तलाश में हैं।
एक नजर इन आंकड़ों पर भी
साल 2002 में मुस्लिम प्रभावित 143 सीटों में से सपा को 37 प्रतिशत, बसपा को 16 फीसदी, कांग्रेस को छह और अन्य को 18 फीसदी सीटें मिली थी। तब बीजेपी को 23 प्रतिशत सीटों में सफलता हासिल हुई थी, जो मायावती और कांग्रेस की मिलाकर सफलता से भी ज्यादा है। इसी तरह वर्ष 2007 में इन्हीं 143 सीटों में सपा को 26 प्रतिशत, बसपा को 44 प्रतिशत, कांग्रेस को तीन तथा अन्य को 8 प्रतिशत सीटों पर सफलता हासिल हुई थी। तब भी बीजेपी को इन सीटों में से 19 पर जीत मिली थी। 2012 विधानसभा चुनाव में इन 143 सीटों में से सपा ने 48 फीसदी सीटें जीती थी। बसपा को 18 और कांग्रेस को 8 प्रतिशत सीटों पर जीत मिली थी। तब बीजेपी 23 प्रतिशत सीटों पर जीतने में कामयाब रही थी।
मुस्लिमों में कौन, किस पार्टी को वोट करता है?
-सपा और कांग्रेस पार्टी को खान, शेख पठान, सिद्दीकी और सईद जैसे उंची जाति के मुस्लिम वोट देते रहे हैं।
-बसपा के हिस्से पसमांदा मुस्लिम वोट करती रही है। इसमें अंसारी, मसूंरी जैसे वर्ग आते हैं।
-बीजेपी के लिए शिया और सुन्नियों का बहुत छोटा वर्ग रुझान दिखाता रहा है।
जिलावार समझें मुस्लिम वोटों के गणित को:
मुरादाबाद में 50.80 प्रतिशत
रामपुर में 50.57 प्रतिशत
बिजनौर में 43.04 प्रतिशत
सहारनपुर में 41.97 प्रतिशत
शामली में 41.73 प्रतिशत
मुजफ्फरनगर में 41.11 प्रतिशत
अमरोहा में 40.78 प्रतिशत
बलरामपुर में 37.51 प्रतिशत
मेरठ में 34.43 प्रतिशत
बरेली में 34.54 प्रतिशत
बहराइच में 33.53 प्रतिशत
हापुड़ में 32.39 प्रतिशत
संभल में 32.88 प्रतिशत
श्रावस्ती में 30.79 फीसदी
सिद्धार्थनगर में 29.23 प्रतिशत
बागपत में 27.98 प्रतिशत
अलीगढ़ में 19.85 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। इन जिलों में प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला मुस्लिम मतदाताओं के हाथ में ही होता है।
लखीमपुर खीरी में 20.08 फीसदी
अमेठी में 20.06 प्रतिशत
गोंडा में 19.76 प्रतिशत
लखनऊ में 21.46 प्रतिशत
मुऊ में 19.46 फीसदी
महाराजगंज में 17.46 प्रतिशत
पीलीभीत में 24.11 फीसदी
संत कबीर नगर में 23.58 प्रतिशत
सीतापुर में 19.93 फीसदी
वाराणसी में 14.88 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। इसके अलावा अन्य जिलों में यह आबादी 10 से 15 प्रतिशत के बीच है।