यूपी अध्यक्ष की तलाश में बीजेपी

डाॅ महेन्द्र नाथ पाण्डेय के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होते ही यूपी भाजपा में नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गयी है। हाईकमान ने इस बात पर मंथन शुरू कर दिया है डाॅ महेन्द्र नाथ पाण्डेय की जगह किसे प्रदेश की कमान सौंपी जाए।

Update: 2019-05-31 11:13 GMT

लखनऊ: डाॅ महेन्द्र नाथ पाण्डेय के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होते ही यूपी भाजपा में नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गयी है। हाईकमान ने इस बात पर मंथन शुरू कर दिया है डाॅ महेन्द्र नाथ पाण्डेय की जगह किसे प्रदेश की कमान सौंपी जाए। हालांकि अभी तक डा पाण्डेय ने अपना इस्तीफा नहीं दिया है लेकिन इतना तो तय है कि जब हाईकान उनके विकल्प की तलाश कर लेगा उसके बाद ही इस्तीफा लिया जाएगा।

लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से खुश भाजपा हाईकमान प्रदेश की कमान किसी नेता को सौंपेगा जिसमें सांगठनिक क्षमता हो साथ ही वह जातीय आंकडे में फिट बैठता हो। डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय के पहले जब केशव प्रसाद मौर्या को प्रदेश की कमान सौंपी गयी थी उसके पीछे भी पार्टी की यही रणनीति थी कि कैसे बसपा के परम्परागत वोट बैंक पर सेंध लगाई जाए। इस लिहाज से केशव मौर्य के अध्यक्ष बनाने का पार्टी ने लाभ उठाया और 2017 के चुनाव में भाजपा को यूपी से बडी सफलता मिली।

यह भी पढ़ें...एक ट्वीट पर मदद पहुंचाने वाली सुषमा स्वराज की कमी क्या पूरी हो पाएगी?

लेकिन भाजपा रणनीतिकारों को जब लगा कि 2017 में मिली सफलता में यदि पिछडा वोट बैंक के जुडने का पार्टी को लाभ मिला है और प्रदेश के मुख्यंमत्री पद पर क्षत्रिय को बैठाया गया है तो कहीं ऐसा न हो कि ब्राम्हण वोट बैक उससे छिटक जाए इसलिए तुरन्त ही अगस्त 2017 में डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय को केन्द्र सरकार से इस्तीफा दिलवाकर प्रदेश की कमान सौपी गयी। पार्टी की इस रणनीति का परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद साफ दिखाई दिया। अब जब एक बार फिर डा महेन्द्र नाथ पाण्डेय को मोदी सरकार में मंत्री पद से नवाजा जा चुका है तो हाईकमान के सामने नए अध्यक्ष को लेकर एक बडी चुनौती फिर खडी हो चुकी है कि कमान ब्राम्हण को सौंपी जाए अथवा पिछडी जाति के किसी नेता को।

यह भी पढ़ें...बसपा का एक और पूर्व विधायक हुआ मायावती की नाराजगी का शिकार

कोशिश ये होगी कि संगठन में क्षेत्रीय संतुलन के साथ ही साथ जातीय समीकरण साधने पर भी जोर दिया जाए। पार्टी हाईकमान यदि किसी ब्राम्हण को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाता है तो शिवप्रताप शुक्ला विजय बहादुर पाठक और गोबिन्द शुक्ला का नाम आता है। इसके अलावा वैश्य जाति से प्रदेश महामंत्री सलिल विश्नोई को भी यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। उन्होंने इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के क्षेत्र में काम किया। जबकि एक और महामंत्री अशोक कटारिया भी सांगठनिक स्तर पर काम करने वालों में एक बड़ा नाम है।

यह भी पढ़ें...बड़े इमामबाड़े और टीले वाली मज्जिद पर अलविदा की नमाज अता करते शिया-सुन्नी समुदाय के लोग

क्षत्रिय जाति के जेपीएस राठौर को भी प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है। इस समय वह प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और लोकसभा चुनाव प्रबन्धन के प्रभारी बनाए गए थें। हाईकमान यदि अनुसचित जाति के किसी नेता को प्रदेश की कमान सौपता है तो प्रदेश महामंत्री विद्यासागर सोनकर का नाम मजबूत है। पिछडी जाति के स्वतंत्र देव सिंह का लम्बा सागठिनिक अनुभव है। वह बुंदेलखण्ड से आते है। और 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने संगठन के लिए जमकर पसीना बहाया था। बुंदेलखण्ड के ही पिछडी जाति के नेता के तौर पर बाबूराम निषाद का नाम भी सशक्त दावेदारों में से एक है।

Tags:    

Similar News