UP Election 2022: राजभर वोटों के लिए इस विधानसभा चुनाव में दिखेगी जंग, इनके बीच कड़ी टक्कर

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार अन्य पिछड़ी जातियों के अलावा विशेष तौर पर राजभर वोटों को लेकर जंग दिखेगी।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Divyanshu Rao
Update:2021-08-30 15:42 IST

राजनैतिक दलों के नेताओं की तस्वीर (डिजाइन फोटो:न्यूज़ट्रैक)

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार अन्य पिछड़ी जातियों के अलावा विशेष तौर पर राजभर वोटों को लेकर जंग दिखेगी। पूर्वांचल में इस बडे़ वोट बैंक को हासिल करने के लिए भाजपा सपा और अन्य दल इसके लिए अभी से जोर आजमाइश करने में लग गए हैं।

राजभर वोट बैंक के सबसे बडे़ अगुवाकार सुहेलदेव समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर को माना जाता है। इसलिए उनके दरवाजे पर राजनीतिक दलों के नेताओं की दस्तक देने की होड़ है। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में शामिल होने वाले ओमप्रकाश राजभर की भाजपा से राहे जुदा होने के बाद भाजपा ने कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर समेत अन्य नेताओं को पिछड़ा वोटे बैंक वोट हथियाने के लिए आगे किया है।

ओमप्रकाश राजभर का दावा पूर्वांचल में राजभर आबादी का 18 प्रतिशत वोट है 

सुहेलदेव समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर का दावा है कि पूर्वाचल में राजभरों की आबादी का प्रतिशत लगभग 18 प्रतिशत है। जबकि पूरे प्रदेश में इनकी आबादी तीन प्रतिशत है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब अमित शाह भाजपा के प्रदेश प्रभारी थे। तो उस समय उन्होंने गैर यादव और गैर जाटव को पार्टी से जोडने का काम किया। जिसका पार्टी को लाभ भी मिला। इसके बाद पार्टी ने 2017 में ओमप्रकाश राजभर से गठबन्धन कर प्रदेश में 325 हासिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का काम किया। 

ओम प्रकाश राजभर की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

इस चुनाव में लगभग 20 सीटों पर भाजपा को पहली बार लाभ मिला। राजभर को भी पहली बार चार सीटें मिलने के बाद सत्ता का सुख मिला पर अपनी उपेक्षा को लेकर जब राजभर ने भाजपा पर आरोप लगाने शुरू किए तो दोनों दलों की राहें अलग हो गयी। पर 2019 के लोकसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर के दल ने 19 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा पर उनको एक सीट पर भी सफलता नहीं मिल सकी। वोट प्रतिशत भी एक दशमलव चार प्रतिशत ही रहा। सभी प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गयी।

इस बीच भाजपा ने कुर्मी बिन्द निषाद लोधी भुर्जी समाज, निषाद, कश्यप, बिंद (मल्लाह), मोदनवाल (हलवाई) कुर्मी, पटेल, वर्मा, गंगवार गिरी गोस्वामी यादव समाज के साथ ही ओबीसी की अन्य कई जातियों तेली, साहू समाज, नाई, राठौर, विश्वकर्मा समाज सहित बघेल-पाल समाज को साधने का काम किया है।

अब जल्द ही भाजपा पिछडों के सम्मेलन करने जा रही है। पूर्वांचल के छोटे सियासी दलों के मन में चिंता इस बात की है कि कहीं उनके दल के वोट छिटककर भाजपा के पालें में न चले जाए।

विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही पिछड़े वोट बैंक पर भाजपा की नजर

अब जब एक बार फिर विधानसभा चुनाव नजदीक है। भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी भी इस वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए लालयित है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और बसपा विधायक सुखदेव राजभर से नजदीकियां बढाने में लगे हैं। वह जल्द ही उनके पुत्र को अपनी पार्टी में लेकर अगले विधानसभा चुनाव में उनको उतारने की तैयारी में हैं।

राजभर दलित, मुस्लिम से गठजोड़ करने को तैयार

जबकि ओमप्रकाश राजभर पिछड़ा दलित मुस्लिम गठजोड बनाने के लिए तैयार हैं। हाल ही में उन्होंने एआईएमआईएम के चीफ असदुदीन औवेसी तथा दलितों के उभरते नेता और भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर उर्फ रावण से मुलाकात कर एक नया गठबन्धन तैयार होने के संकेत दिए हैं। अगर यह गठबन्धन बनता है तो इससे मायावती के साथ ही समाजवादी पार्टी और भाजपा को नुकसान हो सकता है।

सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के अनुसार वोट प्रतिशत

राजनाथ सिंह सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश सरकार की सामाजिक न्याय समिति-2001 की रिपोर्ट के अनुसार बनाये गये पिछड़ों के तीन वर्गों के अनुसार यादव अहीर-10.48 प्रतिशत, अतिपिछड़ा वर्ग (लोधी, कुर्मी, सोनार, कलवार, गोसाई, जाट, गूजर, अर्कवंषी)-10.22 प्रतिशत और सर्वाधिक पिछड़े वर्ग की संख्या-33.34 प्रतिशत से अधिक है। जिसमें 70 परम्परागत पेशेवर जातियां शामिल हैं।

सर्वाधिक पिछड़े वर्ग में शामिल निशाद, मल्लाह, केवट, कश्यप, कहार, पाल, गड़ेरिया, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य मुरांव, काछी, विश्वकर्मा, साहू, प्रजापति प्रदेश के हर क्षेत्र में पायी जाने वाली जातियां हैं। चौहान, राजभर, पूर्वांचल की बलिया, चन्दौली, वाराणसी, देवरिया, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, अम्बेडकर नगर, बस्ती की 45-50 विधान सभा क्षेत्रों में प्रभावी हैं। गोरखपुर, फैजाबाद, बस्ती, वाराणसी, मिर्जापुर, इलाहाबाद, देवापाटन, कानपुर, झांसी, चित्रकूट, लखनऊ, आजमगढ़, आगरा मण्डल की 200 से अधिक विधान सभा क्षेत्रों में प्रभावी निशाद केवट, मल्लाह हैं तो वहीं वाराणसी, झांसी, आगरा, बरेली, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, मिर्जापुर, इलाहाबाद मण्डल की 60-70 विधान सभा क्षेत्रों में में मौर्य कुशवाहा, शाक्य कोयरी, मुरांव जाति की संख्या ठीक-ठाक है। बृज, कानपुर, बुन्देलखण्ड, रूहेलखण्ड, अवध क्षेत्र की 60-70 विधान सभा क्षेत्रों में लोधी, किसान काफी प्रभावी संख्या में हैं।

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