UP Election 2022: यूपी में हमेशा फेल हुई है गठबन्धन की राजनीति

UP Election 2022: यूपी की राजनीति में गठबन्धन की राजनीति साठ के दशक में तब शुरू हुई, जब देश में कांग्रेस की सरकारों को दौर था।

Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2022-02-09 06:08 GMT

गठबंधन की राजनीति (फोटो-सोशल मीडिया)

UP Election 2022: देश के अन्य राज्यों में भले ही गठबन्धन की राजनीति के दम पर सरकारे बनती रही हों पर यूपी में गठबन्धन की राजनीति कभी सफल नहीं हो सकी है। चुनाव के पहले बने हुए राजनीतिक दलों के गठबन्धन चुनाव के बाद टूटते ही रहे हैं। इसके लिए कई बार कोशिशें हुई पर हर बार पर गठबन्धन सफल नहीं हो पाए।

यूपी की राजनीति में गठबन्धन की राजनीति साठ के दशक में तब शुरू हुई, जब देश में कांग्रेस की सरकारों को दौर था। तब 1967 में कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल बनाकर प्रदेश में सरकार बनाने का काम किया। इस सरकार में उनके साथ कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ भी शामिल हुए लेकिन आपसी टकराव के चलते यह सरकार एक साल भी नहीं चल पाई।

सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल सकी

इसके कुछ दिनों बाद एक बार फिर चौ चरण सिंह ने 1970 में सरकार बनाने का काम किया। तब चौ. चरण सिंह का साथ दिया। जब कांग्रेस के साथ एक और नेता टीएन सिंह भी शामिल हुए। फिर एक बार प्रयोग हुआ। इसमें जनसंघ ने फिर साथ दिया। टीएन सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए। पर यह सरकार भी एक साल का कार्यकाल पूरा नहीं हो सकी।

इसके बाद जब 25 जून 1975 को देश में आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए तो लोकदल सोशलिस्ट पार्टी जनसंघ संगठन कांग्रेस समेत कई अन्य दलों ने मिलकर जनता पार्टी का निर्माण किया। रामनरेश यादव के मुख्यमंत्रित्व में यह सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल सकी। वर्ष 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में वापस आ गई।

इसी तरह का एक प्रयोग 1989 में तब हुआ जब बोफोर्स कांड के बाद कांग्रेस के खिलाफ बने जनता दल और भाजपा की गठबन्धन सरकार टूट गयी।

इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का साथ देने कांग्रेस और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) के समर्थन में बनी सरकार नहीं चल सकी और 1991 मध्यावधि चुनाव कराने पडे़।

कल्याण सिंह के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान ही छह दिसम्बर 1992 को बाबरी ढांचा विध्वंस हुआ जिसके कारण यूपी की भाजपा सरकार को केन्द्र की नरसिम्हा राव सरकार ने बर्खास्त कर दिया।  

इसके बाद सपा और बसपा ने विधानसभा चुनाव लडा। चुनाव में इस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला। मुलायम सिंह यादव 5 दिसंबर 1993 को दूसरी बार सूबे के मुख्यमंत्री बने, पर दोनों दलों के अंतर्विरोध और अहम का टकराव भारी पड़ा।

यह सरकार भी 3 जून 1995 को गेस्ट हाऊस कांड के चलते बसपा के सपा से नाता तोड़ने के चलते गिर गई। तब भाजपा, बसपा के समर्थन में खड़ी हो गई। मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं, पर यह भी भाजपा व बसपा के बीच टकराव के चलते टिकाऊ नहीं रह पाई।

कल्याण सिंह को सत्ता सौंपने से इन्कार 

वर्ष 1996 में फिर हुए चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। इस चुनाव में कांग्रेस और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। पर यह गठबन्धन पूरी तरह से असफल साबित हुआ। इसके बाद भाजपा व बसपा के बीच समझौते के तहत छह-छह महीने के मुख्यमंत्री पर सहमति बनी। मायावती 21 मार्च 1997 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। सरकार में भाजपा भी शामिल हुई, पर छह महीने बाद मायावती ने कल्याण सिंह को सत्ता सौंपने से इन्कार कर दिया।

इसके बाद जब प्रदेश की विधानसभा छह महीने तक निलम्बित रही तो भाजपा ने बसपा के विधायकों सहित उसके कुछ समर्थक दलों को तोड़कर कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। यह सरकार 2002 तक चली। इसके बाद वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। भाजपा और बसपा ने पुरानी कटुता भूलकर तीसरी बार फिर दोस्ती से सरकार बनाने का फैसला किया। लेकिन यह सरकार भी नहीं चल सकी। और  29 अगस्त 2003 को यह सरकार भी चली गई।

भाजपा ने दावा किया कि उसने तो बरखास्तगी की सिफारिश से पहले ही अपना समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल को सौंप दिया है। विधानसभा तो नहीं भंग हुई लेकिन भाजपा व बसपा सरकार से बाहर हो गए। भाजपा के समर्थकों और बसपा के लोगों को तोड़कर मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी।

इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ। मिलकर चुनाव लड़े पर परिणाम अपेक्षित सफलता नही मिली। अखिलेश की सरकार गई साथ ही गठबंधन भी टूट गया। इसके 26 साल बाद ऐतहासिक सपा बसपा का गठबंधन हुआ। बसपा शून्य से छह  सदस्यों पर आ गई  उसने सपा पर आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ लिया। अब इस विधानसभा चुनाव में भी भाजपा अपना दल और निषाद पार्टी एक तरफ हैं जबकि सपा रालोद और सुहेलदेव समाज पार्टी समेत कुछ छोटे दल एक तरफ मिलकर चुनाव मैदान में हैं।

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