UP Election 2022: क्या योगी आदित्यनाथ बचा पाएंगे अपना 'पूर्वांचल'?
UP Election 2022: पूर्वांचल की चुप्पी खुद में बहुत सवाल छुपाए हुए हैं। पिछली बार भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) के लिए मुफीद रहा पूर्वांचल इस बार बराबर की लड़ाई का केंद्र बनता दिख रहा है।
Lucknow: उत्तर प्रदेश की राजनीति (Uttar Pradesh Politics) में पूर्वांचल (Purvanchal) का इलाका इस बार थोड़ा शांत दिखाई पड़ रहा है। पश्चिम की राजनीति (West Uttar Pradesh Politics) ने इस बार उत्तर प्रदेश की राजनीति में केंद्र हासिल कर लिया है। लेकिन पूर्वांचल की चुप्पी खुद में बहुत सवाल छुपाए हुए हैं।
पिछली बार भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) के लिए मुफीद रहा पूर्वांचल इस बार बराबर की लड़ाई का केंद्र बनता दिख रहा है। राजनीतिक रूप से यह इलाका अभी इतना सशक्त है कि यहां के वाराणसी (Varanasi) से देश के प्रधानमंत्री, गोरखपुर (Gorakhpur) से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और मुख्य प्रतिद्वंदी अखिलेश यादव आजमगढ़ (Azamgarh) को प्रतिनिधित्व करते हैं।
पूर्वांचल में विधानसभा की कुल 103 सीटें बताई जाती हैं। छठवें और सातवें चरण में इन सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। भाजपा और योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के लिए पूर्वांचल इस बार प्रतिष्ठा की लड़ाई है तो वहीं अखिलेश यादव और उनके सहयोगी गठबंधन दलों के लिए इस इलाके में बढ़त हासिल करना ही सत्ता की कुंजी है। इसलिए पश्चिम की भीषण लड़ाई के बाद पूर्वांचल में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने वाली है।
2017 में पूर्वांचल के चुनावी परिणाम क्या थे?
2017 के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में भारतीय जनता पार्टी ने 70 सीटों पर जीत हासिल की थी। तो वहीं समाजवादी पार्टी ने 13, बसपा ने 8, कांग्रेस ने एक और अन्य के खाते में 11 सीटें गई थी। मसलन कई ऐसे जिले थे जहां भारतीय जनता पार्टी ने 90% सीटों पर विजय हासिल कर ली थी। उदाहरण के लिए देवरिया, गोरखपुर, वाराणसी, कुशीनगर, बलिया आदि वो जिले थे जहां भाजपा ने एकतरफा चुनाव जीता था। इसलिए इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता उसी को मिलेगी जो एक बार फिर पूर्वांचल जीत जाएगा।
पूर्वांचल के प्रमुख जिले कौन से है?
पूर्वांचल में मुख्य रूप से प्रतापगढ़, बस्ती, संतकबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, आजमगढ़, मऊ, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र आदि जिले आते हैं। इनमें से गोरखपुर की सीमा से लगने वाले जिलों में योगी आदित्यनाथ का स्पष्ट प्रभाव बताया जाता है तो वहीं आजमगढ़ के इर्द-गिर्द में लगने वाले जिलों में समाजवादी पार्टी की अच्छी पकड़ है। इसलिए पूर्वांचल वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में एकतरफा नहीं है।
पूर्वांचल का चुनावी मिजाज़ क्या है?
वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में पूर्वांचल के मिजाज को हाल ही में एक न्यूज़ एजेंसी के जरिए किए गए सर्वे के आधार पर समझा जा सकता है। इस न्यूज़ एजेंसी के अनुसार पूर्वांचल की मुख्य लड़ाई सपा बनाम भाजपा की है। इसकी माने तो भाजपा 66, समाजवादी पार्टी 51, बसपा 2 और कांग्रेस 3 सीटें जीत सकती है।
किस जिले में कौन मजबूत?
पूर्वांचल का चुनाव 2 लेयर में बंट चुका है। समाजवादी पार्टी गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, अंबेडकर नगर आदि इलाकों में मजबूत बताई जा रही है तो वहीं भाजपा गोरखपुर, देवरिया, वाराणसी, मिर्जापुर आदि इलाकों में मजबूत बताई जा रही है। इसलिए इस बार का चुनाव दिलचस्प हो गया है। समाजवादी पार्टी आजमगढ़ में मजबूत दिखाई पड़ती है तो वहीं भाजपा वाराणसी की सभी सीटों पर आगे दिखाई देती है। जौनपुर और गाजीपुर में समाजवादी पार्टी की हलचल बढ़ी है तो देवरिया और गोरखपुर में भाजपा बढ़त की तरफ है।
पूर्वांचल बचाने के लिए भाजपा की क्या रणनीति है?
राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुमत तय करने वाला पूर्वांचल भारतीय जनता पार्टी से कहीं ज्यादा योगी आदित्यनाथ के लिए साख का सवाल बन गया है। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से राजनीति करते रहें हैं और पूर्वांचल में अपने विशेष प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। इसलिए भाजपा को पिछली बार की तुलना में इस बार पूर्वांचल से अधिक उम्मीदें हैं।
यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर सदर से पर्चा भर दिया है। छठवें चरण में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से चुनाव लड़ रहे होंगे तो सातवें चरण में वाराणसी में चुनाव हो रहे होंगे। यानी कि भाजपा ने अपना केंद्र बिंदु तय कर दिया है। छठवें चरण में योगी आदित्यनाथ और गोरखपुर सीट होगी तो सातवें चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वाराणसी होगी।
कहीं अखिलेश पूर्वांचल में चूक तो नहीं गए?
शुरू में खबरें आई थी कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) आजमगढ़ जनपद की किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन उन्होंने मैनपुरी की करहल जैसी सुरक्षित सीट को चुन लिया। अखिलेश को अपने पिता मुलायम सिंह यादव से यह राजनीतिक तरकीब सीखनी चाहिए थी। 2014 में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से चुनाव इसलिए लड़े थे क्योंकि पूर्वांचल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से ताल ठोक दी थी।
यानी कि मुलायम पूर्वांचल की लड़ाई को सिर्फ एक बड़े नेता के इर्द-गिर्द नहीं रखना चाहते थे। अखिलेश अगर पूर्वांचल की किसी सीट से चुनाव लड़ते तो निश्चित तौर पर छठे और सातवें चरण में योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री के वाराणसी के साथ ही उनकी सीट भी चर्चा में रहती और इसका एक राजनीतिक प्रभाव पड़ सकता था।
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