UP Election 2022: कांग्रेस ने दलित वोटों पर किया फोकस, विरोधियों की बढ़ाई चिंता
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में दलित वोटरों की बड़ी भूमिका
UP Election: कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के होने वाले विधानसभा चुनावों (vidhan sabha election 2022) के लिए रणनीति तय कर ली है। पार्टी ने इस बार दलित वोटों पर ध्यान देने का फैसला कर लिया है। हाल ही में कांग्रेस (Congress Today News) के कई फैसलों से यह साफ होता है। पंजाब में अनुसूचित जाति के चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को सीएम बनाने से जो शुरुआत हुई वह उत्तराखंड में कद्दावर नेता और बीजेपी सरकार (BJP Sarkar) में मंत्री यशपाल आर्य (Yashpal Arya) और उनके बेटे संजीव आर्य को शामिल कराने तक जारी है। इसी के साथ उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) का कई बार झाड़ू लगाना भी इसी मुहिम का हिस्सा है।
उत्तर प्रदेश-उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति (Uttar Pradesh Scheduled Castes) और जनजाति की आबादी करीब 22 फीसदी है। यही आबादी यहां की राजनीति की दशा और दिशा तय करती है। देश के सबसे बड़े सूबे में बीते करीब 31 साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। लगभग इतने ही समय से दलित वोटर भी कांग्रेस से दूर हैं। बहुजन समाज पार्टी के उदय से पहले उत्तर प्रदेश में दलित (Daliton Per Rajniti) पारंपरिक रूप से कांग्रेस के समर्पित वोटर होते थे। कांशीराम और मायावती (kashiram and mayawati) के प्रादुर्भाव के बाद दलितों ने कांग्रेस के मुंह मोड़ लिया। अब कांग्रेस की निगाह अपने इसी परंपरागत वोटर पर है। बीते कुछ समय से बीएसपी के कमजोर होने से कांग्रेस को दलितों को अपने साथ जोड़ने का मौका मिल रहा है। यही वजह है कि प्रियंका गांधी लगातार यूपी में दलितों की आवाज उठा रही हैं। हाल ही में प्रियंका (Priyanka Gandhi Vadra News) जिस तरह से लखीमपुर और लखनऊ में लगातार झाड़ू लगाई तो इसे भी प्रतीकात्मक रूप से दलित राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीएसपी के कमजोर होने से दलित राजनीति (dalit politics in UP) में जो जगह खाली हुई है उसे भरने के लिए बीजेपी, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और कांग्रेस (Cngress News) तीनों में प्रतियोगिता है। बीजेपी अपनी सरकार की कई योजनाओं को गिना रही है तो समाजवादी पार्टी बीएसपी के नेताओं को तोड़कर दलितों तक अपनी पहुंच बनाने का प्रयास कर ही है।
उत्तराखंड- उत्तर प्रदेश (uttarakhand uttar pradesh) से अलग होकर बने इस पर्वतीय प्रदेश में दलित 19 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों की संख्या करीब तीन फीसदी है। दोनों को मिलाकर करीब 22 फीसदी। इनके अलावा यहां क्षत्रियों और ब्राह्मणों की जनसंसख्या सबसे अधिक है। राज्य की राजनीति इन्हीं दो सवर्ण जातियों के इर्द गिर्द रहती है। लेकिन यह भी हकीकत कि दलित वोटर जिसके साथ जुड़ जाते हैं। उसकी सरकार बनने की संभावना बढ़ जाती है। अपने दलित जोड़ो अभियान के तहत कांग्रेस ने दिग्गज नेता यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य को बीजेपी से तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली है। यशपाल आर्य कांग्रेस से ही बीजेपी में गए थे। वह बीजेपी सरकार में परिवहन मंत्री थे । उनके पास 6 विभाग उनके पास थे। आर्य छह बार से विधायक हैं। इनके बेटे संजीव आर्य भी विधायक हैं। इन दोनों के कांग्रेस में शामिल होने से राज्य में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। अब देखने की बात यह है कि बीजेपी इस घाटे को कैसे पूरा करेगी। उत्तराखंड में एक खास बात यह है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस की ही सरकारें रही हैं। एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी।
पंजाब- पंजाब में दलित आबादी देश में सर्वाधिक है-लगभग 32 फीसदी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जिस तरह से कांग्रेस ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया, वह एक तरह से पार्टी का विगत दिनों में सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक है। चन्नी को लगातार कांग्रेस प्रमोट कर रही है। चुनाव के दौरान अन्य राज्यों में भी उनका इस्तेमाल किया जाएगा। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में किसानों की मौत के बाद वे जिस तरह से राहुल गांधी के साथ लखनऊ आए फिर लखीमपुर गए, उससे इसका पता चल जाता है।
कुल मिलाकर कांग्रेस में विभिन्न पृष्ठभूमि के युवा नेताओं के शामिल होने का असर पार्टी की रणनीति पर दिखने लगा है। चुनावों में पार्टी कैसा प्रदर्शन करेगी यह अभी से कहना मुश्किल है । लेकिन उसकी बदली रणनीति ने विरोधियों की चिंताएं तो बढा ही दी हैं।