लखनऊ: यूपी के सबसे खराब सूचना आयुक्तों के सर्वे में निकले नतीजों पर उप्र राज्य सूचना आयोग कोई कार्रवाई नहीं करेगा। इस बारे में मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी का कहना है कि सर्वे कराने वाली संस्था कोई सर्टिफाइड सर्वेयर संस्था नहीं है। इसकी कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है। इसके नतीजों पर हम कोई कार्रवाई नहीं करेंगे।
कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं
उस्मानी का कहना है, 'इस तरह कोई भी आदमी आए और कहे कि हमने सर्वे कराया है। फिर कहे कि इस पर कार्रवाई करें। इसका कोई औचित्य नहीं है।'
पक्ष तब रखा जाता है, जब विश्वसनीयता हो
यह पूछे जाने पर यदि इस सर्वे के नतीजों पर आयोग अपना कोई पक्ष नहीं रखता है तो यह माना जाएगा कि सर्वे के नतीजे सही हैं। इस पर जावेद उस्मानी ने कहा कि पक्ष तब रखा जाता है, जब इसकी कोई विश्वसनीयता हो।
संस्था पर नहीं होगी कार्रवाई, करेंगे इग्नोर
फिर यदि सर्वे सही नहीं है तो क्या आयोग संस्था पर कोई कार्रवाई करेगा। यह पूछे जाने पर मुख्य सूचना आयुक्त ने कहा कि क्या उन्होंने कोई अवैध काम किया है ? कोई जुर्म किया है? हम उन्हें इग्नोर करेंगे।
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मुलायम के समधी सबसे खराब सूचना आयुक्त
यूपी के सूचना आयुक्तों की कार्यप्रणाली और आरटीआई कानून की जानकारी पर सामाजिक संस्था 'ऐश्वर्याज सेवा संस्थान' की ओर से एक सर्वे कराया गया था। इसमें सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के समधी अरविंद सिंह बिष्ट सबसे खराब सूचना आयुक्त साबित हुए थे। सर्वे में ये बात भी साबित हुई कि बिष्ट को आरटीआई एक्ट का ज्ञान नहीं है। यूपी के सभी जिलों के लोगों से इस बारे में सुझाव मांगे गए थे।
संदीप पांडेय
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित समाजसेवी संदीप पांडेय ने सभी सूचना आयुक्तों के कार्य व्यवहार को गलत बताया और कहा कि वे समय से जानकारी नहीं देते या फिर देते ही नहीं। सभी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां काबिलियत के आधार पर न होकर राजनैतिक कारणों से की गई हैं।
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नीरज कुमार
लखनऊ यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर और विख्यात आरटीआई विशेषज्ञ नीरज कुमार सभी सूचना आयुक्तों के पास आरटीआई एक्ट का कोई भी ज्ञान न होने की बात कहने से अपने आप को रोक नहीं पाए। उन्होंने कहा कि सीएम अखिलेश यादव ने काम के प्रति लापरवाही के कारण जावेद उस्मानी को मुख्य सचिव के पद से हटाया था। ऐसे लोगों से मुख्य सूचना आयुक्त की जिम्मेदारी निभाने की बात सोचना भी बेकार है।
मनोज कुमार
उत्तराखंड के हरिद्वार से आए मनोज कुमार ने मुख्य सूचना आयुक्त से सवाल किया कि अगर वे ईमानदार हैं तो सुनवाई की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग क्यों नहीं करवाते। उन्होंने कहा कि लंबी अवधि की तारीखें देकर अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिवादी को बचाने की कोशिश की जाती है।
सर्वे में साबित हुए थे सबसे खराब सूचना आयुक्त
1. अरविंद सिंह बिष्ट (17 फीसदी वोट)
2. जावेद उस्मानी (13.8 फीसदी वोट)
3. गजेंद्र यादव (11.6 फीसदी वोट)
4. हाफिज उस्मान (9.4 फीसदी वोट)
5. स्वदेश कुमार (9.1 फीसदी वोट)
6. पारसनाथ गुप्ता (8.4 फीसदी वोट)
7. खदीजतुल कुबरा (8.1 फीसदी वोट)
8. राजकेश्वर सिंह (7.9 फीसदी वोट)
9. हैदर अब्बास रिजवी (7.2 फीसदी वोट)
10. विजय शंकर शर्मा (7.2 फीसदी वोट)