Meerut: 2024 से पहले यूपी का सेमीफाइनल, निकाय चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां हुई तेज

Meerut News Today: 2017 के बाद से लगातार चुनाव हार रहे अखिलेश यादव भी नगर निकाय चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।

Report :  Sushil Kumar
Update:2022-08-29 16:08 IST

UP local body elections 2022 (photo: social media )

Meerut News Today: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। सरकार से लेकर चुनाव आयोग तक अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। माना जा रहा है कि नवंबर में नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका के अध्यक्ष और वार्ड के पार्षदों के चुनाव की घोषणा हो सकती है। शहरी क्षेत्र के निकाय चुनाव को 2024 का सेमीफाइल भी माना जा रहा है, क्योंकि इसके बाद सीधे लोकसभा का चुनाव होना है। ऐसे में ऐसे में सत्ताधारी बीजेपी से लेकर विपक्षी दलों सपा, बसपा,आप और कांग्रेस ने भी 2024 में जीत सुनिश्चित करने के लिए अभी से रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इसी रणनीति के तहत उप्र में पहली बार नगर निकाय चुनाव में सत्ताधारी भाजपा समेत तमाम विपक्षी दलों द्वारा पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरने की तैयारियां शुरु कर दी है।

लोकसभा चुनाव में 2014 की तुलना में 2019 में पश्चिम उप्र की कुल 14 सीटों में से सात पर करारी चोट खाने वाली भारतीय जनता पार्टी फिलहाल निकाय चुनाव की तैयारी में सबसे आगे दिख रही है जो कि प्रदेश से लेकर बूथ स्तर तक मीटिंग कर मजबूती से लड़ने का रोडमैप बना चुकी है। पश्चिम उप्र के 25 जिलों का प्रभार अपने पास रखने वाले मुख्यमंत्री योगी खुद चुनावी तैयारियों में जुटे हैं। पश्चिम का राजनीतिक रुतबा बढ़ाने के लिए दस दिन के अंदर दो बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस क्षेत्र में पहुंच चुके हैं। हाल ही में मेरठ पहुंचे मुख्यमंत्री योगी ने बार-बार, नगरीय सुविधाओं पर अपने भाषण का फोकस रख यह जता दिया वह नवंबर में संभावित निकाय चुनाव को लिटमस टेस्ट के रूप में ले रहे हैं। भाजपा के पश्चिमी यूपी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष चौधरी ब्रह्मपाल सिंह कहते हैं,केन्द्र और प्रदेश भाजपा सरकारों के काम और संगठन की मेहनत के कारण प्रदेश की जनता का जुड़ाव भाजपा से बना हुआ है। ऐसे में निकाय चुनाव के सेमीफाइनल में फतह करना भाजपा के कोई मुश्किल काम नही है।

अखिलेश यादव भी नगर निकाय चुनाव की तैयारी में

2017 के बाद से लगातार चुनाव हार रहे अखिलेश यादव भी नगर निकाय चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। हालांकि पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपना परचम जरूर लहराया है। लेकिन विधानसभा चुनाव में वह सत्ता में वापसी नहीं कर सके। लोकसभा उपचुनाव में भी उन्हें हार मिली। अब उनकी नजर 2024 के चुनावों पर है। बहरहाल,पार्टी इस बार पूरी मजबूती से निकाय चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गई है। इसके लिए उसने निकाय चुनाव के लिए वोटरों को साधने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। समाजवादी पार्टी सदस्यता अभियान चलाकर लोगों को जोड़ रही है। कहा गया है कि जो जितने अधिक सदस्यता बनाएगा उसको निकाय चुनाव में टिकट में वरीयता मिलेगी। पार्टी ने अपने दिग्गज नेताओं को जिलों में निकाय चुनाव प्रभारी बनाया है। सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने पिछले दिनों एक पत्र जारी किया है। इसमें कहा गया है कि पार्टी के सभी पर्यवेक्षक विस्तारित व नवगठित नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत में वार्ड के निर्धारण व परसीमन के काम को दुरुस्त कराएंगे। पिछड़ी जाति की गणना के लिए रैपिड सर्वे के कार्य में हो रही गड़बड़ी को ठीक कराएंगे।

राष्ट्रीय लोकदल का तस्वीर अभी साफ नहीं है कि वह सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी या नहीं, लेकिन रालोद ने हर जिले में निकाय चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन का काम शुरू कर दिया हैं। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि निकाय चुनाव लड़ने से पूरे प्रदेश में संगठन खड़ा हो जाएगा और इसका लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा। इसके लिए पार्टी के आलाकमान ने अभी से स्थानीय स्तर पर नेताओं से सक्रियता बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। रालोद के राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व केबिनेट मंत्री मंत्री डॉ.मैराजउद्दीन अहमद ने न्यूज ट्रैक से बातचीत करते हुए कहा कि हमारा मुख्य लक्ष्य 2024 में देश की सत्ता में परिवर्तन करने का है। इसके लिए जमीनी स्तर पर आने वाले निकाय चुनाव से पार्टी अपना कदम बढ़ा रही है। डॉ.मैराजुऊद्दीन अहमद आगे कहते हैं,हमारी पार्टी पश्चिम में पहले से ही नगर निकाय चुनाव में उतरती रही है। इस बार आने वाले निकाय चुनाव में प्रदेश के हर जिले में उतरने की तैयारी है।

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद को एक सीट भी नहीं मिली

उल्लेखनीय है कि रालोद को पिछले कई चुनावों से अपेक्षित सफलताएं नहीं मिल पा रही थीं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद को एक सीट भी नहीं मिली। 2017 के विधान सभा चुनाव में भी पार्टी शून्य पर आ गयी थी। इसके बाद पार्टी सुप्रीमो जयंत चौधरी और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मिलकर मोर्चा खड़ा किया। 2022 के विधान सभा चुनाव में जयंत अपने आठ विधायक जिताने में सफल रहे। इस जीत के बाद पार्टी नेतृत्व उत्साहित है। आगे के लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। निकाय चुनाव में उतरने का निर्णय इसी रणनीति का हिस्सा है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अब कांग्रेस पार्टी ने निकाय चुनाव में लोगों को जोड़ने के लिए सिंबल पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। कांग्रेस हर जिले में चुनाव को लेकर मंथन कर रही है, रणनीति बना रही है। पहली बार पार्टी ने दावेदारों से आवेदन के साथ समर्थक और कार्यकर्ताओं की सूची और सामाजिक और राजनीतिक लोगों का भी ब्यौररा लिया है। कांग्रेस का मानना है कि इस चुनाव से आमजन से जुड़ना आसान रहेगा। इसलिए दावेदारों और ओहदेदारों को लोगों के बीच जाने को कहा गया है।

हाल में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगभग सियासी वजूद खो चुकी बहुजन समाज पार्टी की चाह अब निकाय चुनाव (नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत) में दलितों से फिर मजबूत साथ की दरकार है। नगर निकाय चुनाव में दमखम के साथ उतरने की तैयारी कर रही बहुजन समाज पार्टी ने इसी बहाने अपने बिखरे हुए वोट को समेटने की कोशिश शुरू की है। बहुजन समाज पार्टी की निकाय चुनाव में अपने कैडर के कार्यकर्ताओं को प्रत्याशी बनाने की रणनीति है। एक दशक से बसपा सत्ता से दूर है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। साल 2017 में 19 विधानसभा की सीटें सीटें मिली थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा संग मिलकर जरूर सीटों का आंकड़ा बढ़ा था। वहीं साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली।

प्रदेश में अपने पैर जमाने की कोशिशों में जुटी आम आदमी पार्टी (आप) पानी, बिजली, सड़क आदि आमजन की समस्याओं को लेकर आये दिन सड़क पर उतर रही है। पार्टी का मानना है कि निकाय चुनाव जीतने के लिए जनता से सीधे जुड़े मुद्दों को सड़कों पर उठा कर ही जनता से खुद को जोड़ा जा सकता है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने अपने संगठन को वार्ड स्तर तक मजबूत करना शुरू कर दिया है। इसके लिए मुख्य संगठन के साथ फ्रंटल संगठनों के विस्तार में नए लोगों को जोड़ा जा रहा है। पद दिए जा रहे हैं ताकि वे निकाय चुनाव में काम कर सकें।

बता दें कि प्रदेश में पिछले निकाय चुनाव में प्रदेश के 16 नगर निगमों में से 14 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थीं। वहीं, दो नगर निगमों अलीगढ़ व मेरठ में पहली बार चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरी बसपा ने परचम लहराया।

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