यूपी में थाने बिकते हैं, जाने कैसे? क्या सरकार लगा पाएगी रोक?

वर्दी की बोली सिर्फ योगी सरकार में ही नहीं बल्कि अखिलेश या मायावती सरकार में भी लगती रही। पुलिस भ्रष्टाचार हर सरकार के कार्यकाल में देखने को मिलता रहा है। 

Update:2020-09-13 22:32 IST

लखनऊ: कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक तरह योगी सरकार यूपी पुलिस को पावर दे रही हैं। खुले एनकाउंटर की छूट और वे सभी सुविधाएँ दी जा रहीं हैं, जो पुलिस कर्मियों और अपराधियों के बीच आने वाली हर रुकावट को रोक सके लेकिन इसके बाद भी समय समय पर पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार, बिके हुए थानों और अपराधियों को संरक्षण देने का मामले सामने आते रहते हैं। ये मामले मात्र आरोप या अफवाहें नहीं होती, इसका कई बार उदाहरण भी मिला। बात चाहे योगी सरकार की हो, अखिलेश सरकार या मायावती सरकार की पुलिस भ्रष्टाचार हर सरकार के कार्यकाल में देखने को मिल ही जाता है।

यूपी पुलिस में भ्रष्टाचार के ताजा केस

यूपी पुलिस में भ्रष्टाचार को लेकर अभी हालिया मामलों की बात करें तो महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार और प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित का नाम सामने आता है। आईपीएस मणिलाल पर एक कारोबारी से हर महीने 6 लाख रुपयों की घूस मांगने का आरोप है। आरोप है कि उन्होंने कारोबारी से पहली क़िस्त भी ले रखी थी। आईपीएस मणिलाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई तरह के आरोप लग चुके हैं।

वहीं प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित का नाम भ्रष्टाचार में आने पर हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सस्पेंड कर दिया। आरोप है कि इन्हे एसएसपी का चार्ज मिलने के बाद से ही वे जिले में वसूली करने लगे थे।

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दोनों आईपीएस अफसर फ़िलहाल सस्पेंड किये जा चुके हैं। दोनों पर लगे आरोपों की जांच हो रही हैं और अगर शिकायतें सही पाई गई तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

थानों से लेकर आईपीएस दफ्तर तक ऐसे होती है कमाई

वैसे यूपी में ये कोई पहला या सिर्फ दो आईपीएस अफसरों तक का मामला नहीं है। सबसे निचले स्तर यानी चौकी और थानों से ही कमाई और वर्दी की नीलामी होना शुरू हो जाती है। यूपी में थाने बिकते हैं। किसी बड़े जिले के एक- दो थाने नहीं, बल्कि ऐसे सैंकड़ों पुलिस स्टेशन हैं जो भ्रष्टाचार का खुला अड्डा बन गए हैं।

हर महीने यहां लाखों की कमाई होती है। पोस्टिंग होने के बाद से ही सिपाही से लेकर दारोगा और इंस्पेक्टर तक कमीशनखोरी चलती है। सबसे ज्यादा कमाई वाले थाने यूपी में नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि अन्य जिलों के थाने पाक साफ़ हैं।

थानों में कमाई का जरिया

अब ये जाने कि थानों में कमाई का जरीया क्या है? खाकीधारियों के पास कई तरीके हैं कमाई करने के।

-पहला, पुलिसकर्मी ऐसे मुकदमों में जानबूझ कर टांग अड़ाते हैं, जहां से मोटी पार्टी कानून से बचने के लिए वर्दी वालों की जेब भरने लगती है।

-दूसरा, पुलिस कर्मी गैरक़ानूनी या अवैध काम देख कर भी आंख मूंद लेते हैं। यानी अपराध हो रहा है लेकिन अनजान बन जाते हैं। इसे कहते हैं नॉन डिस्टर्बिंग अलांउस। इसके बदले में पुलिस वालों को हफ़्ता मिलता रहता है।

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उदाहरण के तौर पर खादानों वाले जिले, या अवैध भूमाफियाओं से कब्जे वाले क्षेत्र। यहां अवैध खनन होता है, पुलिस हस्तक्षेप नहीं करती और इसकी बदली उनके थानों में पैसा पहुँच जाया करता है।

थानों में कमाई इतनी आसानी से हो जाती है, इसके पीछे आईपीएस या जिले के कप्तान की निष्क्रियता वजह हो सकती है या फिर खुद एसपी/एसएसपी के कमाऊ होने की आशंका होती है। अगर किसी जिले में कोई ईमानदार पुलिस कप्तान पहुँच गया तो थानों की कमाई कुछ हद तक नियंत्रण में रह सकती है। लेकिन कमाने खाने वाला आईपीएस पहुंचा तो उस जिले की जनता तो राम भरोसे ही है।

पुलिस कप्तान और आलाधिकारियों की कमाई का जरिया:

थाने तो छोटे स्तर की कमाई करते हैं लेकिन आलाधिकारियों के तो अलग ही तौर तरीके होते हैं। उनकी कमाई के तीन जरिये हैं। नज़राना, शुक्राना और जबराना।

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नज़राना- ये सबसे आसान तरीका होता है। बैठे बिठाई कमाई होती रहती है। ये थानों की हफ्ता वसूली जैसा ही है। किसी जिले का एसपी, जिसके अधिकार क्षेत्र में 15 -16 या जितने भी पुलिस थाने आते हो, वहां के थानेदारों से हर महीने एक निश्चित राशि कप्तान तक पहुंचाई जाती है। थाने वसूली से कमाते हैं और कप्तान तक कमीशन भेज देते हैं। सभी थानों का अलग अलग रेट होता है। पुलिस कप्तान भी थानेदारों की कमाई में शामिल रहते हैं।

हाल में कानपुर गोलीकांड में एसएसपी अनंत देव पर आरोप लगा था कि विनय तिवारी के भ्रष्टाचार की उन्हें जानकारी थी लेकिन वे आरोपी पुलिसकर्मी को संरक्षण देते रहे। हालाँकि इस मामले में अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है।

शुक्राना - कारोबारी या किसी भी मालदार पार्टी का पुलिस काम करवाती है। वो चाहे किसी को फंसाना हो या अपराधी की मदद करना, इसके बदले में उन्हें शुक्राना दिया जाता है। विकास दुबे काण्ड में कई पुलिसकर्मी हिस्ट्रीशीटर के खिलाफ थे लेकिन थाने में उनके वर्दी वाले मुखबीर भी मौजद थे। ऐसे वर्दी वाले मुखबीरों की जेबें अपराधी भरते रहते हैं।

जबराना- सबसे खतरनाक जबराना होता है। इसमें पुलिसवाले किसी न किसी मामले में जबरन फंसा देते हैं और फिर ब्लैकमेल कर के पैसे ऐंठने का काम करते हैं। ये कारनामा दारोगा से लेकर आईपीएस रैंक के अधिकारी करते रहते हैं।

योगी सरकार ने यूपी पुलिस को दी इतनी पावर

योगी सरकार कानून व्यवस्था को मजबूत करने को लेकर पीछे नहीं हैं। समय समय पर ऐसे कई फैसले किये गए जो पुलिस डिपार्टमेंट को अपराधियों के खिलाफ खड़े होने की भरपूर छूट देते हैं। जैसे पुलिस अफसरों को एनकाउंटर की छूट।

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-सरकार ने एनकाउंटर, ऑपरेशन लंगड़ा आदि की खुली छूट दे रखी है।

- नोएडा और लखनऊ में कमिश्नर सिस्टम लागू किया। कानपुर और वाराणसी में भी पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू करने का वादा किया है।

-समय समय पर तबादले किये जा रहे हैं।

-आज तो बिना वारंट गिरफ्तारी और तलाशी की भी छूट दे दी।

- अपराधियों -गैंगेस्टरों की सम्पत्ति कुर्क करने और हर तरीके से अपराधियों को रोकने की छूट है।

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