UP Politics: सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे ओवैसी, मुस्लिम बहुल सीटों पर बिगाड़ेंगे समीकरण

UP Politics : ओवैसी ने रविवार को ऐलान किया है कि वे उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे। ओवैसी की इस घोषणा को सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।

Written By :  Shivani
Published By :  Shivani
Update: 2021-06-28 04:08 GMT

असदुद्दीन ओवैसी(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

UP Politics: प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी सियासी दलों में कमर कसनी शुरू कर दी है। उत्तर प्रदेश पर कब्जा बनाए रखने के लिए भाजपा का केंद्रीय और प्रांतीय नेतृत्व पूरी तरह से हरकत में आ चुका है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने भी अपनी चुनावी संभावनाओं को मजबूत बनाने के लिए सक्रियता बढ़ा दी है। ऐसे में एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ी घोषणा करके सभी सियासी दलों का चुनावी समीकरण बिगाड़ने का संकेत दे दिया है।

ओवैसी ने रविवार को ऐलान किया है कि वे उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि वे ओमप्रकाश राजभर के मोर्चे के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरेंगे। ओवैसी की इस घोषणा को सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। ओवैसी के उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से मुस्लिम मतों का बंटवारा होना तय है और ऐसे में सपा, बसपा और कांग्रेस को झटका लग सकता है।

राजभर के साथ उतरेंगे चुनावी मैदान में

ओवैसी का कहना है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए एआईएमआईएम के उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। ओवैसी ने अपने ट्वीट में कहा कि उम्मीदवारों के लिए आवेदन पत्र जारी कर दिए गए हैं और हम ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ ही चुनाव मैदान में उतरेंगे। उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि हमारी किसी और पार्टी से चुनाव या गठबंधन के सिलसिले में कोई भी बातचीत नहीं हुई है।

बसपा के साथ नहीं होगा गठबंधन
सियासी जानकारों का कहना है कि ओवैसी ने राजभर के साथ गठबंधन की बात इसलिए साफ कर दी है क्योंकि कुछ मीडिया खबरों में उनके बसपा के साथ मोर्चा बनाने की बात कही जा रही थी। अब ओवैसी ने यूपी चुनावों को लेकर अपना रुख पूरी तरह साफ कर दिया है।
इससे पहले बसपा प्रमुख मायावती ने भी ओवैसी के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन की संभावना से इनकार किया था। उन्होंने ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना को गलत, तथ्यहीन और भ्रामक बताया था। मायावती ने यह भी साफ किया था कि पंजाब को छोड़कर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बसपा किसी के साथ गठबंधन न करके अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरेगी।

ओवैसी ने पिछले साल ही दे दिया था संकेत

ओवैसी ने पिछले दिसंबर महीने में यूपी के दौरे के दौरान लखनऊ में ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात की थी और उनसे प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चा की थी। उन्होंने उसी समय संकेत किया था कि वे राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ चुनाव मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने राजभर के साथ मिलकर यूपी की सियासत को बदलने का बड़ा सियासी ऐलान भी किया था।


पिछड़ों और मुस्लिम मतों की होगी गोलबंदी

राजभर ने पिछड़े समुदाय से जुड़े आठ दलों को मिलाकर भाजपा के खिलाफ भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है और अब ओवैसी के साथ जुड़ने के बाद यह मोर्चा भी दूसरे सियासी दलों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
इस मोर्चे में राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अलावा बाबू सिंह कुशवाहा की अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल का अपना दल (के), प्रेमचंद प्रजापति की भारतीय वंचित समाज पार्टी, अनिल चौहान की जनता पार्टी (आर) और बाबूराम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी शामिल हैं। मोर्चे में ओवैसी के साथ आने से पिछड़ों और मुस्लिम मतों की गोलबंदी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

मुस्लिम मतों के बंटवारे से भाजपा को फायदा

उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों को 19 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता काफी हद तक प्रभावित करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। शहरों में करीब 32 फ़ीसदी जबकि ग्रामीण इलाकों में करीब 16 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता है।
मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा, बसपा और कांग्रेस की ओर दिखता रहा है। खास तौर पर सपा मुस्लिम मतों का बड़ा हिस्सा पाने में कामयाब होती रही है। अगले विधानसभा चुनाव में भी सपा, बसपा और कांग्रेस की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर लगी हुई है। ओवैसी के चुनाव मैदान में उतरने से अब मुस्लिम मतों का बंटवारा तय माना जा रहा है और इसका सीधा सियासी फायदा भाजपा को हो सकता है।

इन जिलों की सीटों पर ओवैसी की नजर

ओवैसी की नजर खासतौर पर उन सीटों पर लगी हुई है जिन पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है। प्रदेश में मुरादाबाद और रामपुर ऐसे जिले हैं जहां मुस्लिम आबादी 50 फ़ीसदी से भी ज्यादा है जबकि अमरोहा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली और बिजनौर में मुस्लिमों की संख्या 40 फ़ीसदी से ज्यादा है।

बलरामपुर, बरेली, मेरठ, बहराइच, संभल, हापुड़ और श्रावस्ती ऐसे जिले हैं जहां मुस्लिमों की आबादी 30 फ़ीसदी से ज्यादा है। सिद्धार्थनगर में मुस्लिमों की आबादी 29 फ़ीसदी से ज्यादा है जबकि खीरी, लखनऊ, गाजियाबाद, बाराबंकी और बदायूं में उनकी संख्या 20 फ़ीसदी से भी अधिक है।

बिहार की तरह ताकत दिखाने का सपना

सियासी जानकारों का मानना है कि इन जिलों में ओवैसी प्रतिद्वंद्वी सियासी दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।
बिहार में ओवैसी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और वे सीमांचल के जिलों में पांच विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब हुए थे। बिहार के बाद अब ओवैसी की नजर उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है और माना जा रहा है कि 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने के बाद वे सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगे।
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