मायावती को नहीं भाया मंत्रिमंडल विस्तार, कहा पिछड़ा व दलित वर्ग के साथ धोखा

बसपा अध्यक्ष मायावती ने आज सुबह ट्वीट के माध्यम से ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भाजपा ने रविवार को जातिगत आधार पर वोटों को साधने के लिए जिनको भी मंत्री बनाया है।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Divyanshu Rao
Update: 2021-09-27 09:35 GMT

बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की तस्वीर (डिजाइन फोटो: न्यूज़ट्रैक)

लखनऊ। विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की तरफ से किए गए मंत्रिमंडल विस्तार को बसपा सुप्रीमों मायावती बेहतर कदम नहीं मान रहीं हैं। मायावती का मानना है कि जिस समाज के लोगों को अधिकतर मंत्री बनाया गया है, उस समाज के लोगों का साढे चार साल में कुछ भी विकास नहीं हो पाया। अब जब चुनाव का बहुत कम समय बचा है। ये मंत्री अपने विभाग को समझेगें तब तक चुनाव का समय आ जाएगा।

बसपा अध्यक्ष मायावती ने आज सुबह ट्वीट के माध्यम से ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भाजपा ने रविवार को जातिगत आधार पर वोटों को साधने के लिए जिनको भी मंत्री बनाया है, बेहतर होता कि ये लोग इसे स्वीकार न करते, क्योंकि जब तक वे अपने मंत्रालय को समझकर कुछ करना भी चाहेगें। तब तक यहां चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी।

अपने दूसरे ट्वीट में मायावती ने यह भी कहा जब इन नये बनाये गये मंत्रियों के समाज के विकास व उत्थान के लिए अभी तक वर्तमान भाजपा सरकार ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है। बल्कि इनके हितों में बसपा की रही सरकार ने जो भी कार्य शुरू किए थें, उन्हे भी अधिकांश बंद कर दिया गया है। इनके इस दोहरे चाल चरित्र को नए मंत्रियों को समझने की जरूरत है।

बसपा सुप्रीमो मायावती की तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

उल्लेखनीय है कि रविवार को हुए मंत्रिमंडल विस्तार में एक ब्राह्मण जितिन प्रसाद (शाहजहांपुर)  को छोड़कर अन्य सभी मंत्री पिछडे व दलित समुदाय से हैं । इनमें संगीता बलवंत बिंद (ग़ाज़ीपुर)  (मल्लाह ओबीसी), धर्मवीर प्रजापति (आगरा) (कुम्हार - ओबीसी),पलटूराम (बलरामपुर)  (अनुसूचित जाति),छत्रपाल गंगवार (बरेली)  (कुर्मी  ओबीसी,दिनेश खटिक (मेरठ) (दलित - एससी) तथा संजय गोंड (सोनभद्र)  (अनुसूचित जनजाति - एसटी) से हैं। बसपा की स्थापना से अब तक पिछड़ा और दलित पार्टी का परम्परागत वोट बैंक रहा है। मायावती को डर है कि यह वोट बैंक कहीं छिटककर भाजपा के पास न चला जाए।  

उधर भाजपा लगातार पिछड़ा और दलित वोट बैंक को साधने के प्रयास में है

2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की सफलता का इस वर्ग से मिले समर्थन का बडा योगदान रहा था। पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 325 सीटें जीती थीं। इसलिए पार्टी एक बार फिर इस वर्ग को लुभाने के प्रयास में है।

यूपी में दलित वर्ग कुल आबादी का करीब 21 प्रतिशत  है। इस लिहाज से ये भी सियासत में काफी मायने रखते हैं। पिछले चुनाव में दलितों ने भाजपा का साथ दिया था। इस बार भी भाजपा इन्हें नाराज नहीं करना चाहती। इसलिए भाजपा ने चुनाव के छह महीने पहले यह बड़ा दांव खेला है।

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