UP Politics: यूपी की सियासत में भूचाल के संकेत, जयंत चौधरी के इस कदम से हर कोई हैरान, अखिलेश को दे सकते हैं बड़ा झटका

UP Politics: राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी ने सोमवार को ऐसा कदम उठाया जो सभी को हैरान करने वाला है। राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल पर वोटिंग के दौरान जयंत चौधरी सदन में मौजूद ही नहीं थे।

Update:2023-08-08 14:08 IST
अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ( सोशल मीडिया)

UP Politics: राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी ने सोमवार को ऐसा कदम उठाया जो सभी को हैरान करने वाला है। राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल पर वोटिंग के दौरान जयंत चौधरी सदन में मौजूद ही नहीं थे। विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की ओर से राज्यसभा में एक-एक वोट के लिए कड़ी मशक्कत की गई थी। गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन भी वोटिंग के दौरान सदन में मौजूद थे मगर जयंत चौधरी की नामौजूदगी सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गई है।
जयंत चौधरी की ओर से उठाए गए इस कदम को उत्तर प्रदेश में बड़े सियासी भूचाल का संकेत माना जा रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि जयंत चौधरी के इस कदम से साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में वे उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया और खास तौर पर सपा मुखिया अखिलेश यादव को बड़ा झटका दे सकते हैं। जयंत चौधरी के जल्द ही भाजपा से हाथ मिलाने की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं।

विपक्षी एकता को लगा बड़ा झटका

राज्यसभा में सोमवार को दिल्ली सेवा बिल पर चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर वार और पलटवार का दौर चला। विपक्षी खेमे की ओर से वक्ताओं ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए जबकि सत्ता पक्ष की ओर से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभालते हुए आम आदमी पार्टी से लेकर विधेयक का विरोध करने वाली कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को घेरा।

बाद में दिल्ली से का विधेयक पर राज्यसभा में वोटिंग कराई गई और राज्यसभा ने इसे 102 के मुकाबले 131 मतों से पारित कर दिया। इससे विपक्षी एकता को करारा झटका लगा है। लोकसभा में इस विधेयक को पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है। उच्च सदन में अल्पमत में होने के बावजूद भाजपा बीजू जनता दल, वाईएसआरसीपी और टीडीपी की मदद से बड़े अंतर से विधेयक को पारित कराने में कामयाब रही।

जयंत चौधरी की नामौजूदगी पर उठे सवाल

राज्यसभा में अपनी ताकत दिखाने के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की ओर से काफी मेहनत की गई थी। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की ओर से व्हिप जारी करते हुए सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने का निर्देश दिया गया था। अन्य विपक्षी दलों ने भी अपने सांसदों की सदन में मौजूदगी की मुकम्मल व्यवस्था की थी। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के बावजूद वोटिंग के लिए सदन में मौजूद थे जिसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा हमला भी बोला।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन भी इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं मगर इसके बावजूद वे बिल के खिलाफ वोटिंग के लिए सदन में मौजूद थे। ऐसे में जयंत चौधरी की बिल पर वोटिंग के दौरान सदन में नामौजूदगी को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं।

नामौजूदगी के पीछे जरूरी काम का बहाना

अभी तक जयंत चौधरी का इस मुद्दे पर कोई बयान सामने नहीं आया है मगर उनके एक करीबी का कहना है कि कुछ जरूरी काम होने के कारण जयंत चौधरी दिल्ली सेवा विधेयक पर वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सके। हालांकि जयंत चौधरी के करीबी का यह तर्क किसी के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। जब विपक्षी दलों का गठबंधन एक-एक वोट के लिए जूझ रहा था तो जयंत चौधरी को इससे जरूरी काम और दूसरा क्या काम हो सकता था। यही कारण है कि जयंत चौधरी के भावी सियासी कदम को लेकर भी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।

भाजपा के साथ हाथ मिलाने की चर्चाएं

रालोद मुखिया जयंत चौधरी का यह कदम उत्तर प्रदेश की सियासत में भूचाल का बड़ा संकेत माना जा रहा है। जानकार सूत्रों का कहना है कि जयंत चौधरी की भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है। उनकी ओर से उत्तर प्रदेश में पांच लोकसभा सीटों की मांग की गई है जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें तीन सीटें देने के लिए तैयार है।
जयंत चौधरी की एनडीए में एंट्री को लेकर यही पेंच फंसा हुआ है जिसे सुलझाने की कोशिशें की जा रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्लीन स्वीप के लिए भाजपा की ओर से रालोद पर डोरे डाले जा रहे हैं। भाजपा नेताओं का मानना है कि जयंत चौधरी के साथ आने से जाट मतदाताओं का पूरा समर्थन एनडीए के साथ जुड़ जाएगा।

अखिलेश यादव को लग सकता है बड़ा झटका

रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने हाल में बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की बैठक में भी हिस्सा लिया था। हाल के दिनों में कई मौकों पर वे भाजपा पर हमले भी कर चुके हैं मगर उन्हें लेकर सियासी अटकलों का नया दौर शुरू हो गया है। यदि जयंत चौधरी ने आने वाले दिनों में भाजपा से हाथ मिला लिया तो यह समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा।
सुभासपा समेत कुछ अन्य दल पहले ही समाजवादी पार्टी को झटका दे चुके हैं और ऐसे में यदि जयंत चौधरी ने पलटी मारी तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ इंडिया गठबंधन की लड़ाई काफी कमजोर हो जाएगी। अब सबकी निगाहें जयंत चौधरी के अगले कदम पर टिकी हुई हैं।

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