मंत्रियों को लगा झटका! इन राज्यों में इनकी जेब होगी खाली

उत्तर प्रदेश में यह व्यवस्था 1981 से ऐसा हो रहा था। इस दौरान राज्य में 19 मुख्यमंत्री बदले, लेकिन यह कानून अपनी जगह रहा। अब जाकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसे बंद करने का ऐलान किया है। यह उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज ऐंड मिसलेनीअस ऐक्ट, 1981 में बनाया गया था, जब वीपी सिंह मुख्यमंत्री थे।

Update:2023-05-09 16:28 IST

नई दिल्ली: आम जनता द्वारा समय पर टैक्स जमा करवा लेना और पिछले लगभग चालीस साल से मंत्रियों का टेक्स सरकारी खजाने से भरा जाना । उत्तर प्रदेश सरकार ने जब इसका खुलासा किया तब से इस खबर ने तहलका मचा दिया है । खुलासे में यह आया था कि यूपी में 1981 से मुख्यमंत्री और मंत्रियों का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरा जा रहा है। यूपी सीएम ने तो खबर आने के बाद इसपर रोक लगा दी, लेकिन अब एक नई जानकारी सामने आई है।

हम आपको बता दें कि यूपी की ही तरह पांच अन्य राज्य भी हैं जिसमें सीएम और मंत्रियों के टैक्स का बोझ सरकारी खजाने पर है। इसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।

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उत्तर प्रदेश में यह व्यवस्था 1981 से ऐसा हो रहा था। इस दौरान राज्य में 19 मुख्यमंत्री बदले, लेकिन यह कानून अपनी जगह रहा। अब जाकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसे बंद करने का ऐलान किया है। यह उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज ऐंड मिसलेनीअस ऐक्ट, 1981 में बनाया गया था, जब वीपी सिंह मुख्यमंत्री थे।

किस राज्य में कब से चली आ रही प्रथा

पांच राज्यों में से हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में ऐसा 1966 से हो रहा है। उसी साल दोनों राज्य अस्तित्व में आए। इन्हें पंजाब से अलग करके बनाया गया था। उत्तराखंड में 9 नवंबर 2000 (जब यूपी से अलग कर राज्य बना) से यह प्रथा चली आ रही है। इसमें सीएम, मंत्री, असेंबली स्पीकर, डेप्युटी स्पीकर और विपक्ष का जो नेता होगा उसके टैक्स का भार भी राज्य सरकार पर होता है।

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2018 में पंजाब से कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे खत्म कर दिया है

तब से राज्य में आठ सीएम उत्तराखंड का कार्यभार संभाल चुके हैं, लेकिन कानून नहीं बदला। हालांकि, अब सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सीएम योगी की तरह इसे खत्म करने की बात कही है।

मध्यप्रदेश में 1 अप्रैल 1994 से मंत्रियों के साथ-साथ संसदीय सचिव का टैक्स भार राज्य कोष पर है। ईस्ट पंजाब मिनिस्टर सैलरीज ऐक्ट, 1947 के अंतर्गत पंजाब में भी ऐसा होता था। लेकिन मार्च 2018 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे खत्म कर दिया था।

 

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