निकायों में नियुक्ति का अध्यादेश भी लटका, नाइक ने भेजा राष्ट्रपति के पास
प्रस्तावित अध्यादेश में नगर निगमों और नगर महापालिकाओं में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव किया गया है। परीक्षण के बाद राज्यपाल ने पाया कि इन संशोधनों से निगमों और नगर पालिकाओं जैसी स्वायत्तशासी संस्थाओं की स्वायत्तता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है।
लखनऊ: यूपी के नगर निगमों और नगर महापालिकाओं में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित अध्यादेश लटक गया है। राज्यपाल राम नाइक ने मंत्रिपरिषद से पारित इस अध्यादेश (संशोधन) को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को संदर्भित किया है। उत्तर प्रदेश नगरीय स्थानीय स्वायत्त शासन विधि (संशोधन) अध्यादेश, 2016 को 17 अक्टूबर को मंत्रिपरिषद से पास होने के बाद 28 अक्टूबर को राज्यपाल को भेजा गया था।
प्रस्तावित संशोधन संविधान के प्रावधानों के खिलाफ
-इस अध्यादेश में सरकार और स्थानीय निकायों के नगर निगमों और नगर महापालिकाओं में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव किया गया है।
-अध्यादेश के परीक्षण के बाद राज्यपाल ने पाया कि इन संशोधनों से न केवल निगमों और नगर पालिकाओं जैसी स्वायत्तशासी संस्थाओं की स्वायत्तता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है, बल्कि प्रस्तावित संशोधन लोकतंत्र की मूल अवधारणा तथा संविधान के प्रावधानों के भी विरूद्ध है।
-उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 और उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 के वर्तमान प्रावधानों के तहत विभिन्न श्रेणी के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार महापौरों और अध्यक्षों में निहित है।
शक्तियों में संशोधन संबंधी विधेयक भी राष्ट्रपति के पास
-इसके पहले वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2015 और उत्तर प्रदेश नगरपालिका विधि (संशोधन) विधेयक 2015 राज्य विधान मण्डल के दोनों सदनों से पारित करवाकर राज्यपाल की अनुमति के लिए भेजा गया था।
-इसमें यह प्रस्तावित किया गया था कि महापौरों और अध्यक्षों के विरूद्ध कुप्रशासन की शिकायत पर राज्य सरकार उनकी वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियां अधिकारियों में निहित कर देगी। साथ ही सरकार कर्मचारियों को दूसरे निगमों और नगर पालिकाओं में स्थानांतरित कर सकेगी।
-राज्यपाल ने इन दोनों विधेयकों पर भी अपनी अनुमति प्रदान नहीं की थी, बल्कि विधेयकों को संविधान के भाग 9-क के प्रावधानों के विरूद्ध पाते हुए उन्हें 4 मई को राष्ट्रपति के विचारार्थ संदर्भित कर दिया था।