वनटांगियों के तीन दशक लंबे संघर्ष को मिला मुकाम, राजस्व ग्राम का मिला नाम
गोरखपुर: हक के लिए तीन दशक से अधिक समय तक संघर्ष करते रहना आसान नहीं होता। इतने लंबे समय से संघर्ष में हिम्मत तो टूट जाती है, संघर्ष में सहयोगी भी साथ छोड़ देते हैं। लेकिन वनटांगिया मजदूर ना तो हिम्मत हारे और ना ही संघर्ष में साथ खड़े लोग ही पीछे हटे। भले ही इस लड़ाई में उन्हें लाठी गोली खानी पड़ी। उनकी बस्तियों को प्रदेश सरकार के राजस्व ग्राम का दर्जा देने के साथ ही लंबे संघर्ष को आखिरकार मुकाम मिला ही गया।
यह भी पढ़ें: अपनी नई पहचान से खुश वनटांगिया समुदाय, CM योगी की पहल पर नाम होगी 635 एकड़ जमीन
सांसद रहते हुए पिछले कई साल वनटांगिया बस्तियों में जाकर दीपावली मनाते रहने वाले योगी आदित्यनाथ इस साल मुख्यमंत्री के रूप में वनटांगिया बस्ती में जाकर यहां रहने वालों के साथ दीपावली मना कर राजस्व ग्राम का दर्जा मिलने की खुशी में साझीदार बनेंगे।
कौन है वन टांगिया: भारत में हुकुमत कायम करने के बाद अंग्रेजों ने जंगलों का विकास करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने ग्रामीणों इलाकों से मजदूरों को पकड़कर जंगलों में भेज दिया, यह मजदूर जंगलों में अपने आप उगने वाले पौधे के पेड़ बनाने तक देखभाल करते थे। वनों के विकास के लिए वर्ष 1918 में अंग्रेज सरकार ने देश में टांगिया पद्धति की शुरुआत की।
यह भी पढ़ें: योगी राज- नहीं बदले हालात,गोरखपुर में डॉक्टरों की लापरवाही से बच्ची की मौत
इसमें वन क्षेत्र कि खाली भूमि पर पहले उपयोगी पौधों की नर्सरी तैयार की जाती थी। नर्सरी तैयार होने पर पौधरोपण किया जाता था। पहले वनों की देखभाल करने वाले मजदूरों को भी इस काम में लगा दिया गया। उन्हीं मजदूरों के बाद में वनटांगिया मजदूर कहा जाने लगा। जीविकोपार्जन के लिए इन मजदूरों को वन की कुछ खाली जमीन रहने तथा खेती करने के लिए दी जाती थी। जंगल की लकड़ियां से भी व परिवार का भरण पोषण किया करते थे।
यह भी पढ़ें: गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन जारी करेगा छात्राओं के लिए हेल्पलाइन
वन निगम की स्थापना के बाद शुरू हुई मुश्किल: वर्ष 1983 तक जंगल उगाने की टांगिया पद्धति लागू रही और वनटांगिया मजदूर जंगलों में काम करते रहे। वर्ष 1984 में इस वन निगम की स्थापना के बाद उनकी मुश्किलें शुरू हो गई। प्रदेश सरकार ने इन मजदूरों को अतिक्रमण कार्य घोषित कर जंगल की जमीन खाली करने का फरमान सुना दिया।
जारी रहा वनटांगिया मजदूरों का संघर्ष: पुलिस व वन कर्मियों से संघर्ष में दो साथियों को गांव आने के बाद भी वनटांगिया मजदूरों का संघर्ष जारी रहा। समाजसेवी विनोद तिवारी के नेतृत्व लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2006 में अनुसूचित जाति जनजाति एवं परंपरागत निवासी अधिनियम तैयार हुआ। वर्ष 2007 में इसकी नियमावली बनाई गई और दिसंबर 2008 में इसे लागू कर दिया गया। इसके बावजूद अधिकारियों की लालफीताशाही इन मजदूरों को मिलने में बाधा बनती रही।