Varanasi News: रूढ़ियों को तोड़ काशी की बेटियों ने कराया उपनयन, मुगलकाल से बंद थी परंपरा

वाराणसी जो धर्म और संस्कारों का प्रतिनिधित्व भी करती है ने आज अपनी 5 बेटियों समेत 12 बच्चों का सामूहिक उपनयन संस्कार संपादित कर एक नया और विद्रोही संदेश दिया है।

Newstrack :  Network
Update: 2024-02-15 10:13 GMT

रूढ़ियों को तोड़ काशी की बेटियों ने कराया उपनयन (न्यूजट्रैक)

Varanasi News: बालिकाओं का यज्ञोपवित संस्कार! थोड़ा अचंभा करने वाला शब्द है ये, लेकिन काशी में बसंत पंचमी के अवसर पर बेटियो ने तमाम रूढ़ियों को तोड़ 5 बेटियो ने उपनयन संस्कार कर इस मान्यता के प्रति विद्रोह कर दिया की लड़कियों का उपनयन नही होता है। उपनयन, जनेऊ या यज्ञोपवीत की बात करे तो यह सनातन धर्म के प्रमुख संस्कारों में माना जाता है लेकिन कहने को तो यह सनातन संस्कार है लेकिन यह कुछ जाति विशेष में रह गया है, ब्राह्मण इसे 8 से 12 साल के उम्र में तो राजपूत इसे विवाह के समय विवाह मंडप में करते है। जबकि यह शिक्षा का संस्कार है और शिक्षा ग्रहण के दौरान ही सभी का संस्कार हो जाना चाहिए।

वाराणसी जो धर्म और संस्कारों का प्रतिनिधित्व भी करती है ने आज अपनी 5 बेटियों समेत 12 बच्चों का सामूहिक उपनयन संस्कार संपादित कर एक नया और विद्रोही संदेश दिया है। बच्चों के शिक्षा और संस्कार के दिशा में कार्यरत संस्था राजसूत्र पीठ के माध्यम से यज्ञोपवीत का कार्यक्रम काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य, प्रकाण्ड विद्वान पूज्य आचार्य भक्तिपुत्र रोहतम जी के संरक्षण और उपरोहित्य में राजसूत्र पीठ द्वारा आयोजित सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार में संपन्न हुआ। यज्ञोपवीत जिसे हम उपनयन या जनेऊ संस्कार के रूप में जानते हैं, शिक्षा एवं अनुशासन का संस्कार है जो की व्यक्तित्व को विभिन्न आयामों में उन्नत करते हुए निस्वार्थ भाव से व्यक्ति के स्वयं के जीवन के साथ ही साथ परिवार, समाज, देश, संपूर्ण प्रकृति तक के हित में व्यक्ति को कार्य करने की प्रेरणा देता है।

श्मशान में कंधा देने जा सकती है बेटी क्यों न धारण करे जनेऊ

कन्या के उपनयन के बारे में आचार्य भक्तिपूत्रम रोहतमं ने बताया कि यह तो वेदों में लिखा है की कन्या उपनयन संस्कार के बाद शिक्षा ग्रहण करके ही योग्य वर का चयन करेगी, अर्थात शिक्षा और संस्कार में स्त्री भी अनादि काल से प्रमुख रही है, और मुगल काल से पूर्व तक सनातन में कन्या का उपनयन होता रहा लेकिन मुगल काल में हिंदू कन्याओं के अपहरण, गलत आचरण से भय वश लड़कियों का संस्कार बंद हो गया था और आजादी के बाद भी अब तक इसे किसी ने पुनः प्रारंभ करने का प्रयास नही किया। लेकिन राजसूत्र द्वारा इसे शुरू करना सनातन संस्कार को दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

इस बारे में उपनयन कराने वाली बेटी ले पिता दृगविंदु मणि सिंह साफ कहते है, जब बिटिया श्मशान में कंधा देने जा सकती है तो जनेऊ क्यों न धारण करे, और यह तो हमारे धर्म ग्रंथ में है अतः इसे समाज हित में शुरू करना एक अच्छा कदम है। राजसूत्र पीठ के संस्थापक ट्रस्टी रोहित सिंह के अनुसार यह सिर्फ अध्यात्म और धर्म का विषय नही बल्कि विज्ञान पर आधारित है इससे बच्चो में अनुशासन का निर्माण के साथ हेल्थ केलिए एक बेहतर कदम है और पीठ द्वारा समाज के बच्चो को जागृत करने के साथ उनमें संस्कार भरना महत्वपूर्ण है खासकर बेटियो को समृद्ध करना है और बेटी पढ़ाओ के नारे को स्थान देना है तो बेटी का उपनयन भी करना ही होगा और रूढ़ियों को तोड़ना होगा।

रोहित सिंह के अनुसार जब उन्होंने बेटियो के उपनयन की बाते लोगो में रखी तो शुरू में लोगो ने इसे पागलपन और सनक करार दिया लेकिन जब इसके महत्व को जाना तो अपने बेटियो को इस आयोजन में शामिल किया। इस बार 12 बच्चो का हो संस्कार हो पाया क्योंकि परीक्षा का समय है, लेकिन ग्रीष्म अवकाश के समय 101 बच्चों का पुन सामूहिक यज्ञपावीत संस्कार होगा जिसमे 50 प्रतिशत बिटिया भी होगी।

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