Varanasi Tiranga Burfi: तिरंगी बर्फी का आजादी में बड़ा योगदान, काशी की इस मिठाई ने उड़ा दी थी अंग्रेजों की नींद

Varanasi Tiranga Burfi History: काशी के मिठाई कारोबारियों में आजादी की लड़ाई में अपने तरीके से बड़ा योगदान किया था। लोगों में आजादी का जज्बा और देशभक्ति की भावना जगाने के लिए तिरंगी बर्फी का ईजाद किया गया था।

Update:2023-08-15 10:17 IST
Varanasi Tiranga Burfi History (photo: social media )

Varanasi Tiranga Burfi History: देश को आजादी दिलाने में न जाने कितने स्वाधीनता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। देश के 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आज पूरा देश उन सेनानियों के प्रति श्रद्धावनत है जिनकी बदौलत हमें आजाद हवा में सांस लेने का हक हासिल हुआ। आजादी की इस लड़ाई में कई ऐसी चीजें भी हथियार बनीं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। तिरंगी बर्फी भी उनमें से एक है।

काशी के मिठाई कारोबारियों में आजादी की लड़ाई में अपने तरीके से बड़ा योगदान किया था। लोगों में आजादी का जज्बा और देशभक्ति की भावना जगाने के लिए तिरंगी बर्फी का ईजाद किया गया था। इस तिरंगी बर्फी ने आजादी के आंदोलन को गजब की धार दी थी और आजादी के बाद भी इस तिरंगी बर्फी को लोगों के बीच काफी पसंद किया जाता रहा है। आज भी इस बर्फी की लोकप्रियता लोगों के बीच बनी हुई है।

तिरंगी बर्फी के आइडिया से अंग्रेज हुए परेशान

देश में आजादी की लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों के जज्बे से अंग्रेजी हुकूमत बेहाल हो गई थी। इसी कारण अंग्रेजी हुकूमत की ओर से तिरंगा लेकर चलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। तिरंगा देखते ही अंग्रेज अफसर लोगों को हिरासत में ले लिया करते थे। ऐसे समय में काशी के मशहूर श्रीराम मिष्ठान भंडार ने एक ऐसी आइडिया निकाला जिससे अंग्रेज अफसर भी भौचक्का रह गए।

श्रीराम मिष्ठान भंडार के संचालक रघुनाथ दास गुप्ता ने 1940 में तिरंगी बर्फी को लांच किया। काशी के पुराने लोगों का कहना है कि इस तिरंगी बर्फी को देखने के बाद अंग्रेजों के होश उड़ गए थे क्योंकि इस बर्फी में तिरंगा वाले तीनों रंग थे जो आजादी का संदेश देने वाले थे।

आजादी की अलख जगाने में बड़ी भूमिका

काशी की इस मशहूर तिरंगी बर्फी ने लोगों के बीच आजादी की अलख जगाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। काशी में चौक स्थित श्रीराम भंडार के मौजूदा संचालक वरुण गुप्ता का कहना है कि हमारे पूर्वजों में इस तिरंगे बर्फी का ईजाद किया था।

उन्होंने बताया कि तिरंगी मिठाई के डिब्बे के जरिए क्रांतिकारियों संदेश भेजने का सिलसिला शुरू हो गया था जिससे अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ गई थी। लोगों के बीच आजादी का संदेश देने के लिए कई स्थानों पर तिरंगी बर्फी को घर-घर फ्री भी बांटा गया था। इसके बाद दुकान की पहरेदारी का सिलसिला भी शुरू कर दिया गया था।

विशेष मौकों पर होती है जबर्दस्त डिमांड

पुरानी यादों को सहेजने के लिए इस दुकान पर अभी भी तिरंगे बर्फी बनाई जाती है। वैसे मौजूदा समय में काशी की कुछ और मशहूर मिठाई की दुकानों पर भी तिरंगी बर्फी मिलती है। जानकारों का कहना है कि इस तिरंगी बर्फी को आज भी उतना ही पसंद किया जाता है जितना आजादी से पहले पसंद किया जाता था।

खासतौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और अन्य विशेष मौकों पर इस तिरंगी बर्फी की जबर्दस्त डिमांड होती है। काशी में मिठाई की कई प्रसिद्ध दुकानों के संचालकों का कहना है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन तिरंगी बर्फी की काफी बिक्री होती है। स्कूलों के अलावा आम लोग भी इन बर्फियों को काफी चाव से खाते हैं।

तिरंगे की तरह तिरंगी बर्फी में भी तीन लेयर

काशी की मशहूर तिरंगी बर्फी आज भी आजादी के पर्व को खास बना देती है। देश के तिरंगे की तरह इस बर्फी में भी तीन रंग होते हैं। केसरिया सफेद और हरे, तीन लेयर में यह बर्फी बनाई जाती है। इस बर्फी के ऊपर बादाम और ड्राई फ्रूट भी डाले जाते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी तिरंगी बर्फी का जिक्र सुनने के बाद एक बार इसे खाने की इच्छा जताई थी। वे इस बर्फी को खाने के लिए श्रीराम भंडार तक पहुंची थीं। इस दौरान उन्होंने इस तिरंगी बर्फी की जी भरकर तारीफ भी की थी।

तिरंगी बर्फी के बाद लोगों के बीच आजादी की अलख जगाने के लिए कुछ और मिठाइयां भी ईजाद की गई थी। इन मिठाइयों में गांधी गौरव, जवाहर लड्डू, वल्लभ संदेश, मोती पाक और सुभाष भोग को लोकप्रियता हासिल हुई थी।

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