आशुतोष सिंह की रिपोर्ट
वाराणसी: दो साल से ज्यादा समय बीतने पर भी पूर्व सीएम अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट वरुणा कॉरीडोर अब तक परवान नहीं चढ़ पाया। अलबत्ता घोटाले को लेकर यह परियोजना जरूर सुर्खियों में है। जैसे-जैसे जांच का दायरा बढ़ता जा रहा है, घोटालों की कड़ियां खुलने लगी हैं। कॉरीडोर का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ है। इस बीच एक और घोटाले ने दस्तक दे दी है। कॉरीडोर के निर्माण में मिट्टी घोटाला सामने आया है।
लगभग 20 करोड़ के इस घोटाले से प्रशासनिक अधिकारियों में हड़कंप मचा हुआ है। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए प्रमुख सचिव सिंचाई सुरेश चंद्रा ने टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी (टीएसी) जांच के आदेश दिए हैं। माना जा रहा है कि अगर सही तरीके से घोटाले की जांच हुई तो कई अधिकारियों पर फंदा कस सकता है।
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घोटाले की खुलने लगीं कड़ियां
कॉरीडोर का निरीक्षण करने के दौरान सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव ने शिकायतकर्ता को भी मौके पर बुलाया और अपनी मौजूदगी में जांच कराई। उन्होंने भी शुरुआती स्तर पर घपले की बात स्वीकार की। उन्होंने विभागीय अधिकारियों और कार्यदायी कंपनी के ठेकेदारों से कई सवाल किए। उन्होंने पूछा कि अगर किनारे पर सही तरीके से मिट्टी डाली गई तो ये किन किसानों के खेतों से खरीदी गई? मिट्टी खरीद के एवज में कितना भुगतान किया गया? खनन विभाग को रायल्टी के रूप में टैक्स की कितनी धनराशि जमा कराई गई?
नियमानुसार 30 रुपए घनमीटर टैक्स जमा करने के बाद ही खोदाई की जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि वरुणा से सैकड़ों ट्रक सिल्ट निकाली गई तो उसका क्या हुआ और कहां पर इस्तेमाल की गयी। मिट्टी संबंधित कार्यों के अलावा नदी किनारे लगी सोलर लाइटों की खरीददारी पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि नदी के किनारों पर लगी सोलर लाइटों की कीमत कागज पर 8 लाख से 12 लाख रुपए तक दिखाई गयी जबकि बाजार में इन लाइटों की वास्तविक कीमत दो से तीन लाख रुपए ही है।
अधिकारियों ने साधी चुप्पी
इस बाबत अपना भारत ने यूपी प्रोजेक्ट कॉरर्पोरेशन के स्थानीय अधिकारी श्यामजी चौबे से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। अलबत्ता अधीक्षण अभियंता आलोक जैन का कहना था कि अक्टूबर से काम शुरू होना है। उन्होंने घोटाले के बाबत कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। दूसरी ओर प्रमुख सचिव ने टीएसी जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने पूरे मामले में बिंदुवार आख्या मांगी है।
दरअसल करोड़ों का मिट्टी घोटाला कई विभागीय अधिकारियों की गले की फांस बन चुका है। खरीद से लेकर विभागीय टैक्स तक का ब्योरा देना होगा। यही कारण है कि ठेकेदार से लेकर प्रोजेक्ट मैनेजर तक पसीना पोंछते दिख रहे हैं।
वरुणा कॉरीडोर पर सरकार की नजरें टेढ़ी
वरुणा कॉरीडोर यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है। वरुणा किनारे लगभग १०.४ किमी तक कॉरीडोर बनाए जाने की योजना थी। इसके तहत चार घाट भी बनाए जाने थे। इस योजना पर 200.1 करोड़ रुपए खर्च होना था, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी तीन किमी तक का काम पूरा नहीं हो पाया। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि परियोजना के नाम पर अब तक 100 करोड़ रुपए फूंके जा चुके हैं। सूत्रों के अनुसार परियोजना के नाम पर जिस तरीके से रुपए की बंदरबांट हुई है, उस पर योगी सरकार की आंखें टेढ़ी हो गई है।
एक तिहाई काम भी पूरा नहीं
शुरुआती स्तर से ही वरुणा कॉरीडोर के निर्माण में लापरवाही बरती गई। प्लानिंग से लेकर निर्माण तक हर स्तर पर लापरवाही और भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रहीं। अधिकारियों का होमवर्क कितना कमजोर था, इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि नदी किनारे बनने वाले पाथ-वे पर पहले लाखों रुपए खर्च करके लोहे की ग्रिल लगाई गई। बाद में बवाल बढ़ा तो चुनार के पत्थर लगाए गए।
लगभग 11 किमी की इस परियोजना पर 201 करोड़ रुपए खर्च होने थे। जांच के दौरान पाया गया है कि अब तक बजट का लगभग 70 फीसदी हिस्सा निकाला जा चुका है। जबकि मौके पर एक तिहाई काम भी नहीं हुआ है। नदी किनारे चार नए घाट बनने हैं जबकि अब तक सिर्फ एक काम ही पूरा हुआ है। यही नहीं पाथ-वे का निर्माण भी बमुश्किल आधा किलोमीटर तक ही हुआ है। अब यह पता लगाया जाना है कि काम हुए बगैर निकाली गई रकम में कहां-कहां और किस-किस स्तर पर बंदरबांट हुई।
सिल्ट के ऊपर मिट्टी डाल लिया भुगतान
आरटीआई कार्यकर्ता प्रमोद कुमार सिंह ने पिछले दिनों सीएम से लेकर विभागीय अधिकारियों तक वरुणा कॉरीडोर में मिट्टी घोटाले की शिकायत की थी। शिकायत के अनुसार कॉरीडोर के निर्माण के दौरान भारी अनियमितता बरती गई। नदी से निकाली गई सिल्ट के ऊपर कुछ मिट्टी डाल दी गई और करोड़ों का भुगतान ले लिया गया। जबकि नियमों के तहत नदी के किनारों को पूरी तरह से मिट्टी से पाटा जाना था।
नदी के किनारे खोदाई करने के दौरान भी यह बात साफ है। जमीन की ऊपरी सतह पर मिट्टी तो जरूर है, लेकिन अंदर पूरी तरह से सिल्ट जमा है। विभाग की तरफ से यह बताया गया है कि सिर्फ आठ फीसदी सिल्ट ही काम करने लायक थी, शेष सूख चुकी थी। बताया जा रहा है कि निर्माण से जुड़े ठेकेदारों ने लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए किनारों पर हल्की मिट्टी डाली और भुगतान पूरे काम का लिया।
शिवपाल के करीबी को मिला था टेंडर
वरुणा कॉरीडोर की साइट पर दो बार रहस्यमय तरीके से आग लगने की घटना हो चुकी है। दोनों बार स्थानीय अधिकारी जांच का हवाला देकर मामले को रफा-दफा करने में जुटे रहे। बताया जा रहा है कि वरुणा कॉरीडोर को बनाने का जिम्मा पूर्व मंत्री शिवपाल यादव के एक करीबी की कंपनी को मिला था। जबकि स्थानीय स्तर पर इसकी जिम्मेदारी सिंचाई विभाग और कार्यदायी संस्था यूपीपीसीएल के अधिकारियों पर थी। निगरानी का जिम्मा जहां सिंचाई विभाग के बंधी प्रखंड के हवाले था, वहीं क्रियान्वयन की जिम्मेदारी यूपीपीसीएल के कंधों पर थी।