एक दशक लंबे मां के संघर्ष ने दिलाया दिवंगत कैप्टन को न्याय

Update:2018-01-22 22:19 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ : देश की रक्षा के लिए सेना में अपने पुत्र को भेजने वाली मां लंबे समय से पुत्र पर लगे झूठे आरोपों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी। उसके सेना में कैप्टन रहे पुत्र पर एक पिस्टल बाहर बेचने में शामिल रहने का आरोप था। जिसमें उसके पुत्र के खिलाफ हुए पहले कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया खारिज हो चुकी थी और दूसरे कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया पर एएफटी कोर्ट की रोक थी। आज एएफटी कोर्ट से उसके दिवंगत पुत्र के इन आरोपों से बरी होने के बाद अपने स्वर्गीय पुत्र की आत्मा की शांति और न्याय दिलाने के लिए बुजुर्ग माँ दुर्गावती के संघर्ष को सफलता मिल गयी। जिसे अपने बेटे पर कल भी नाज था और आज भी है।

मामला यह था कि स्व.कैप्टन विवेक आनद सिंह ने 2002 में 16 गढ़वाल रायफल्स बटालियन में कमीशन प्राप्त किया। 2007 में वह घुटने के इलाज के लिए दिल्ली आया। उसके साथ मेजर कयूम खान भी भर्ती था। सेना खुफिया विभाग के अनुसार कयूम खान राजस्थान के व्यापारियों को एक पिस्टल बेंचने की फिराक में था। सेना खुफिया विभाग ने बेस हास्पिटल दिल्ली कैंट में छापा मारा तो याची का पुत्र कामनहाल में टीवी देख रहा था। लेकिन खुफिया विभाग ने दावा किया कि याची का पुत्र रंगे हाथ पिस्टल सहित पकड़ा गया और ले.कर्नल आशीष सिंह और कैप्टन भास्कर पिल्लई के सामने अपराध भी स्वीकार किया जिसे 40 दिन की हिरासत में ले लिया गयाl

20 मई 2007 से 7 सितम्बर 2007 तक कोर्ट आफ इन्क्वायरी हुई। जिसमें 32 बिंदुओं पर अपराध पाए जाने का दावा किया गया। 14 मई 2008 से 4 सितम्बर 2008 तक समरी आफ एविडेंस रिकार्ड हुआ। 2 मार्च 2009 को आरोप-पत्र दिया गया। पहले जनरल कोर्ट मार्शल को रद्द करके 2010 में दूसरा कोर्ट मार्शल हुआ। जिसके खिलाफ याची के पुत्र ने सेना कोर्ट में मुकदमा दायर किया। जिस पर सेना कोर्ट ने 29 सितम्बर 2010 को अंतरिम रोंक लगा दी। तब उसे दुर्घटना का शिकार बना दिया गया। क्योंकि इसमें सेना के बड़े अधिकारी फंस रहे थे।

एऍफ़टी बार के महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए सेना की मुखालफत कर रहे अधिवक्ता जीएस सिकरवार से प्रश्न करते हुए पूंछा कि दुर्घटना की कोर्ट आफ इन्क्वायरी में आखिर रायफलमैन पंकज पुरोहित को बतौर गवाह क्यों नहीं बुलाया गया। हेलमेट कहाँ गया और चोटों में भिन्नता और गलत बयानी क्यों है। परिवार को सूचित क्यों नहीं किया गया जिसका जवाब जी एस सिकरवार नहीं दे पाए।

कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि रिकवरी का दावा तो किया गया। लेकिन पिस्टल का सीजर-मेमों क्यों तैयार नहीं किया गया। धारा 154 सी आर पी सी, 25 और 36 आर्म्स एक्ट के तहत ऍफ़आईआर दर्ज क्यों नहीं कराई जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ललिता कुमारी के तहत बाध्यकारी था। जबकि हथियार सिविल का था और कोर्ट ने कहा की सीजर मेमो न बनाना समझ से परे है। जो एल डी बालम सिंह में दिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ है। पिस्टल बेंचने की डील का प्रमाण नहीं, अपराध स्वीकार में दबाव का प्रयोग और दारा सिंह मामले में दी गई सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था न मानना। रिकवरी में सुस्थापित तथ्य का अभाव, दुर्घटना में विरोधाभासी बयान आरोप को ख़ारिज करने के लिए पर्याप्त है और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ जांच के आदेश दिए।

विजय कुमार पाण्डेय ने मीडिया को बताया कि याची ने पूर्व-अधिवक्ता रहे पी एन चतुर्वेदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने अधिकारियों से पैसा लेकर याची के पुत्र के विरुद्ध गलत शपथ-पत्र दाखिल किया। जिससे षड्यंत्र रचने वाले अधिकारियों को बचाया जा सके जिसके लिए कोर्ट ने उत्तर-प्रदेश बार काउन्सिल को दोनी पक्षों को सुनकर जांच करने का आदेश दियाl सेना कोर्ट के इस निर्णय से एक माँ अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को शांति प्रदान करने में सफल रहीl

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