लॉकडाउन में बेरोजगार हुए बुनकर, पेट पालने के लिए शुरू किया ये काम

बनारस की साड़ियां फैशन नहीं, परंपरा हैं। ऐसी परंपरा, जिसकी रस्म दुनिया भर में निभाई जाती है। शादी कहीं भी हो, दांपत्य का रिश्ता बनारस की रेशमी साड़ियों से ही गाढ़ा होता है।

Update: 2020-06-24 13:23 GMT

वाराणसी: बनारस की साड़ियां फैशन नहीं, परंपरा हैं। ऐसी परंपरा, जिसकी रस्म दुनिया भर में निभाई जाती है। शादी कहीं भी हो, दांपत्य का रिश्ता बनारस की रेशमी साड़ियों से ही गाढ़ा होता है। बनारस के जिन घरों में ये रिश्ते बुने जाते थे, लॉकडाउन के चलते अब वो संकट में हैं। आर्थिक मंदी की मार झेल रहे बनारस साड़ी उद्योग पर कोरोना कहर बनकर टूटा है। लॉकडाउन की बंदिशों ने साड़ी उद्योग पर ग्रहण लगा दिया है। धंधा लगभग ठप पड़ा है। पाई-पाई के लिए मोहताज बुनकर अब सब्जी और फल के ठेले लगाने पर मजबूर है।

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सब्जी बेचकर गुजर-बसर कर रहे हैं बुनकर

लल्लापुरा के रहने वाले 35 साल के नियाज पिछले बीस सालों से बिनकारी का काम करते आ रहे हैं। जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखा, लेकिन ऐसी मंदी से सामना कभी नहीं हुआ। लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी है कि नियाज अब बुनकरी का काम बंद करके गलियों में सब्जी बेच रहे हैं। नियाज कहते हैं कि अब इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। घर में तीन बच्चों, बीवी के अलावा मां-बाप है। लॉकडाउन से सब बर्बाद हो गया। कभी किसी दूसरे के आगे हाथ नहीं फैलाया। ऐसे में सब्जी बेचने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।

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पांच लाख लोगों पर मंडरा रहा है रोजगार का संकट

हाजी मुश्ताक अहमद बताते हैं कि कोरोना से पहले ही मंदी का दौर था। अब चीन के साथ सीमा विवाद ने परेशानी और बढ़ा दी है। बनारस साड़ी के लिए रेशम का आयात चीन से होता है। अगर सरकार रेशम पर आयात शुल्क बढ़ाती है तो इसका सीधा प्रभाव उद्योग पर पड़ेगा। मजबूरी में हमें बैंगलूरु के रेशम पर निर्भर होना पड़ेगा। हाजी मुश्ताक कहते हैं कि आने वाले हालात बेहद भयावह हैं।बुनकरों की मांग है कि सरकार उन्हें भी अब किसानों की तरह राहत पहुचाएं और आर्थिक मदद करे। देश के बड़े हस्तकला लघु-कुटीर उद्योगों में वाराणसी के बनारसी साड़ी का उद्योग भी शामिल हैं। वाराणसी में इस कुटीर उद्योग से लगभग 5 लाख बुनकर आश्रित हैं।

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