बौनों का शहर: इस शहर में रहते थे छोटे कद के लोग, ऐसे पड़ी सबकी नज़र

बचपन में आप सभी ने गुलिवर की मजेदार कहानी तो सुनी ही होगी। जिसमे गुलिवर एक लिलिपुट नाम के द्वीप पर पहुंच जाता है। और वहां रहने वाले छोटे कद के लोग उसे अपना बंधी बना लेते है।

Update: 2020-08-26 09:47 GMT
Dwarves lived in a village in Iran hundred years ago

बचपन में आप सभी ने गुलिवर की मजेदार कहानी तो सुनी ही होगी। जिसमे गुलिवर एक लिलिपुट नाम के द्वीप पर पहुंच जाता है। और वहां रहने वाले छोटे कद के लोग उसे अपना बंधी बना लेते है। या फिर आपने जावेद जाफरी की फिल्म जजंतराम ममंताराम तो देखी ही होगी।बचपन में ये बात हम सभी को हैरान कर देती थी कि क्या सच में बौने इंसान होने थे, और अगर होते है तो कैसे लगते होंगे? कहां रहते होंगे ?आज हम आपको एक ऐसे सच से रूबरू कराएंगे, जिसके बाद बौनों को लेकर आपकी सोच एकदम बदल जाएगी।

डेढ़ सौ साल पहले की बात

अब से करीब डेढ़ सौ साल पहले ईरान के एक गांव में बौने लोग रहा करते थे। इस गांव का नाम है 'माखुनिक' जो कि ईरान-अफगानिस्तान सीमा से करीब 75 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि मौजूदा वक्त में ईरान के लोगों की जितनी औसत लंबाई है, उससे करीब 50 सेंटीमीटर कम लंबाई के लोग इस गांव में रहते थे। 2005 में खुदाई के दौरान इस गांव से एक ममी मिली थी जिसकी लंबाई सिर्फ 25 सेंटीमीटर थी। इस ममी के मिलने के बाद ये यकीन पुख्ता हो गया कि इस गांव में बहुत कम लंबाई वाले लोग रहते थे।

हालांकि, कुछ जानकार मानते हैं कि ये ममी समय से पूर्व पैदा हुए किसी बच्चे की भी हो सकती है, जिसकी 400 साल पहले मौत हुई होगी। वो इस बात पर विश्वास नहीं करते कि 'माखुनिक' गांव के लोग बौने थे।

एक सूखा इलाका

दरअसल, माखुनिक ईरान के दूरदराज का एक सूखा इलाका है। यहां चंद अनाज, जौ, शलजम, बेर और खजूर जैसे फल की ही खेती होती थी। इस इलाके के लोग पूरी तरह से शाकाहारी थे। शरीर के विकास के लिए जिन पौष्टिक तत्वों की जरूरत होती है वो इस इलाके के लोगों को नहीं मिल पाते थे। यही वजह थी कि यहां के लोगों का शारीरिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता था।

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माखुनिक गांव बिल्कुल कटा हुआ था। कोई भी सड़क इस गांव तक नहीं आती थी। लेकिन बीसवीं सदी के मध्य में जब इस इलाके तक सड़कें बनाई गईं। गाड़ियों की आवाजाही इस गांव तक पहुंची तो यहां के लोगों ने ईरान के बड़े शहरों में आकर काम करना शुरू किया। बदले में वो यहां से चावल और मुर्गे अपने गांव लेकर जाते थे।

बदला माहौल

धीरे-धीरे यहां के लोगों का खान-पान बदलने लगा। नतीजा ये हुआ कि आज इस गांव के करीब 700 लोग औसत लंबाई वाले हैं। लेकिन इस गांव में बने पुराने घर आज भी इस बात की याद दिलाते हैं कि कभी यहां बहुत कम लंबाई वाले लोग रहते थे। इस प्राचीन गांव में करीब दो सौ घर हैं, जिनमें से 70 से 80 ऐसे घर हैं जिनकी ऊंचाई बहुत ही कम है। इन घरों की ऊंचाई महज डेढ़ से दो मीटर ही है। घर की छत एक मीटर और चार सेंटीमीटर की ऊंचाई पर है। इससे साफ जाहिर होता कि कभी यहां कम लंबाई वाले लोग रहते थे।

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