महिला दिवस: 20 वर्षों से शिक्षा, साहित्य और समाज की सेवा कर रहीं डा. उमा सिंह

नारी सशक्तिकरण का अभियान चला रही उमा सिंह अब तक दर्जनों बालिकाओं को घरों की दहलीज से निकाल कर प्राइमरी और उच्च शिक्षा के लिए दाखिला दिला चुकीं हैं।

Update:2021-03-08 12:57 IST
महिला दिवस: 20 वर्षों से शिक्षा, साहित्य और समाज की सेवा कर रहीं डा. उमा सिंह (PC : social media)

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: आम तौर पर कहा जाता है कि महिलाएं सिर्फ घर-गृहस्थी के फैसले ही ले सकती हैं। लेकिन कुछ ऐसी भी हैं जो समाज की बंदिशों को तोड़कर आगे बढ़ती हैं और अपनी अलग पहचान बनाते हुए लोगों के लिए प्रेरणा बन जाती हैं। आज हम ऐसी ही प्रेरणात्मक महिला डा. उमा सिंह की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया है। प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका डा. उमा सिंह साहित्य लेखन और समाज सेवा में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

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नारी सशक्तिकरण का अभियान चला रही उमा सिंह अब तक दर्जनों बालिकाओं को घरों की दहलीज से निकाल कर प्राइमरी और उच्च शिक्षा के लिए दाखिला दिला चुकीं हैं। समाजसेवा के लिए ही उन्होंने अपनी गृहस्थी नहीं बसाया। शिक्षण कार्य के साथ साहित्य सेवा में लगी उमा सिंह अपनी 50 प्रतिशत कमाई समाज के जरूरतमंद व्यक्तियों, गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने में खर्च करती हैं।

Dr. Uma Singh (PC : social media)

राजनीति शास्त्र में पीएचडी हैं उमा सिंह

जिला मुख्यालय से सटे उच्च प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक के पर तैनात उमा सिंह नगर के ही राधाकुंड मोहल्ले की निवासी हैं। नगर के महाराजगंज के प्राथमिक स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उमा सिंह रेलवे में इंजीनियर के पद पर कार्यरत पिता शिव नरायन सिंह और मां श्रीमती त्रिजराजी देवी के साथ गोरखपुर चली गईं। जहां पूर्वोत्तर रेलवे गर्ल्स कालेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गोरखपुर विश्वद्यिालय में स्नातक में प्रवेश लिया। परास्नातक और बीएड के बाद 1999 में उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक के पद नौकरी मिल गई। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने शिक्षा भी जारी रखी और 2004 में राजनीति शास्त्र में पीएचडी की उपाधि हासिल की।

एक भाई और तीन बहनों में सबसे छोटी उमा सिंह को बचपन से ही कविता, कहानी लिखने और समाजसेवा का शौक था। इसीलिए उन्होंने वैवाहिक बंधन और घर-गृहस्थी के झंझट से स्वयं को दूर रखने का निर्णय लिया। यही कारण है कि उमा अपने कमाई का 50 फीसदी बच्चों की पढ़ाई और समाज के जरूरतमंद लोगों के मदद के लिए खर्च करती हैं। उमा सिंह पहले अपने परिवार के साथ रहती थी। लेकिन वहां रहकर अध्ययन और लेखन कार्य में कठिनाई महसूस हुई तो 10 वर्ष पूर्व अपना अलग आशियाना बना लिया।

बेटियों को दिला रहीं अधिकार

साहित्यकार शिक्षिका डा. उमा सिंह बेटियों को उनका अधिकार भी दिला रहीं हैं। वे बेटियों के उत्थान के लिए भी प्रयास कर रहीं हैं। पिता शिव नारायण सिंह रेलवे में इंजीनियर थे। घर की दहलीज में महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं से वे विचलित हो गईं। काफी चिंतन और मंथन कर उन्होंने आधी आबादी के दर्द को साहित्य में पिरोने की योजना बनाई। पिता की प्रेरणा से उन्होंने 2004 में पहली रचना कलियुग का वनवास लिखकर आधी आबादी की आवाज को बुलंद किया। उनकी यह रचना काफी सराही गई। इसके बाद तो उनकी कलम को पंख लग गए। यही नहीं बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ आन्दोलन के तहत उन्होंने आठ बेटियों को गोद लेकर उनकी शिक्षा का खर्च भी अपने कंधे पर ले रखा है।

वृद्ध, अनाथ की सेवा, कराती हैं बेटियों की शादी

समाज सेवा के क्षेत्र में अपना अहम योगदान देते हुए शिक्षिका डा. उमा सिंह जिले के अनाथ और वृद्धाश्रमों में रह रहे असहाय, निराश्रित बच्चों और बुर्जुगों की सेवा करती हैं। इसके अलावा जेलों में जाकर वहां बंद गरीब महिलाओं के लिए कपड़े और खाद्य सामग्री भी बांटती रहती हैं। इस पर भी उनका काफी पैसा खर्च होता है। यही नही हर साल दर्जनों गरीब बेटियों की शादी में भी वह बढ़चढ़ कर भागीदारी करती हैं और नव दम्पतियों को उपहार भेंट करती हैं। ठंडक में उमा सिंह गरीब लोगों की मदद के लिए गर्म कपड़े और कंबल बांटती हैं ताकि लोगों को ठंड से थोड़ी राहत मिले।

विदेशों में साहित्य मंचों पर किया प्रतिभाग

इंडोनेशिया, मलेशिया, आस्ट्रिया, जर्मनी और बैंकाक आदि कई देशों में हुए कई आयोजनों में प्रतिभाग कर डा. उमा सिंह ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष आइना प्रस्तुत किया। डा. उमा को पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अनुसंशा पत्र भी दिया गया है। चाहे नोट में गांधी हो या फिर आखिर कब तक, इसके माध्यम से उन्होंने समाज का दर्द सामने लाने का प्रयास किया है। कोई महोत्सव हो, स्कूल चलो अभियान, पुलिस लाइन में होने वाली प्रतियोगिताएं हों या फिर कोई अन्य आयोजन उनकी सक्रिय भूमिका रहती है। पुलिस विभाग द्वारा संचालित परिवार परामर्श केन्द्र के माध्यम से अब तक हजारों दम्पतियों को समझा बुझाकर उनके जीवन में खुशहाली लाने का भी काम किया है।

डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित

20 वर्षों के साहित्य साधना में डा. उमा सिंह ने साहित्य का संसार तैयार किया है। इसमें हर प्रकार की पुस्तकें हैं जो लोगों को साहित्य के साथ ही सामाजिक ज्ञान दे रहीं हैं। उनकी रचनाओं से समाज को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। डा. उमा सिंह की रश्मि, मेरे भी पंख हैं, सठ सुधरहिं सत संगति पाई, कलियुग का वनवास, आखिर कब तक, नेकी का अर्थात, नोट में गांधी, नैनाभिराम, क्षितिज की छांव, स्नेही पिंजरा, मीठी वाणी बोलिए, निठल्लू और पंखुड़ी समेत डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हाल ही में एक समाचार पत्र में छपी उनकी कहानी ‘फर्क‘ काफी चर्चित हुई थी। डा. उमा सिंह का कहना है कि साहित्य लेखन उनका अत्यंत प्रिय विषय है, जिसे वह जीवन के अंतिम सांस तक जारी रखेंगी।

देश-विदेश में हुई सम्मानित

साहित्यकार व शिक्षिका डा. उमा सिंह को देश विदेशों में सैकड़ों पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2013 में हिन्दी पत्रकार संघ द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान से नवाजा गया। साल 2016 में 14 फरवरी को इलाहाबाद में आयोजित 13वें साहित्य मेला में उत्कृष्ट उपन्यास लेखने के लिए उन्हें युवा उपन्यासकार सम्मान प्रदान किया गया। 31 जनवरी 2016 में बाली इंडोनेशिया में आयोजित चतुर्थ अंर्तराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य एवं संस्स्कृति सम्मेलन में काव्य भारती से और हंगरी में आयोजित 7वें अंर्तराष्ट्रीय साहित्य एवं संस्कृति सम्मेलन में साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। हंगरी में ही उनकी पुस्तक ‘गोंडा की रानी‘ का विमोचन भी हुआ।

Dr. Uma Singh (PC : social media)

भारत के राजदूत राहुल छाबड़ा ने प्रमाण पत्र प्रदान किया

भारत के राजदूत राहुल छाबड़ा ने प्रमाण पत्र प्रदान किया। बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था सृजन सम्मान के तत्वाधान में रुस की राजधानी मास्को में वर्ष 2018 में आयोजित 15वें अंर्तराष्ट्रीय सम्मलेन में एना अक्म्टोवा सम्मान से नवाजा गया। उमा ने मास्को में अपनी प्रसिद्ध कविता बेटी बचाओ पर काव्य पाठ किया। इसके अलावा उन्हें प्रदेश और जिले स्तर पर सैकड़ों बार स्वयंसेवी संस्थाओं, सरकारी आयोजनों, कवि सम्मेलन और मुशायरों में भी सम्मान से नवाजा गया है।

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महिलाएं आगे बढ़ें, सीमाओं को तोडें

डा. उमा सिंह कहती हैं कि वे महिलाएं जो डरती हैं, वे कोशिश करें, आगे बढ़ें पहला कदम तो बढ़ाएं। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती बल्कि सफलता अवश्य मिलती है। वे महिलाएं जिन्होंने अपनी जिंदगी में कोई बाउंड्री बना ली है। उन्हें आगे बढ़कर अपनी सीमाओं को तोड़ना होगा। सकारात्मक सोच के सहारे आगे बढ़ने की राह आसान हो जाती है। इसे बनाए रखें तभी ऊंचाइयों को आप पाएंगी। रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को रास्ते पर ही रहने दें। भावुकता में आकर हर बात को अपने दिल पर लेना जरूरी नहीं होता है। इसी संदेश के साथ डा. उमा सिंह ने सभी महिलाओं को महिला दिवस की बधाई दी है।

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