World Environment Day 2022 : लखनऊ की दीवारें बनी 'कैनवास', लोगों को पर्यावरण के प्रति किया जागरूक

World Environment Day 2022: शहर की शानदार विरासत बड़ा इमामबाड़ा (Bara Imambara) की इमारत से सटी दीवार को उत्साही राहगीरों और जनता ने जीवंत रंगों से शानदार ढंग से चित्रित किया।;

Written By :  Ashutosh Tripathi
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Update:2022-06-05 06:52 IST
World Environment Day 2022 people aware of environment through pictures in lucknow

World Environment Day 2022 (Photo - ASHUTOSH TRIPATHI)

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World Environment Day 2022 : 'लंग केयर फाउंडेशन' और लखनऊ चाइल्डलाइन के संयुक्त रूप से 'अपने फेफड़ों को जीवंत रखें' कार्यक्रम का आयोजन किया। शहर की शानदार विरासत बड़ा इमामबाड़ा की इमारत से सटी दीवार को उत्साही राहगीरों और जनता ने जीवंत रंगों से शानदार ढंग से चित्रित किया। चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है कि हम अपने परिवेश, पर्यावरण और फेफड़ों को कैसे बचा सकते हैं। बता दें कि, विश्व पर्यावरण दिवस के एक दिन पहले शनिवार को राजधानी लखनऊ में लोगों को चित्र के माध्यम से जागरूक किया गया।

दीवारों पर कूचियों के सहारे उकेरे गए चित्र का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति लोगों को पहले से अधिक जागरूक करना था। इन चित्रों के जरिए हवा में बढ़ते प्रदूषण और उससे उत्पन्न खतरे, भयावह आदि के प्रति जनता को जागरूक करना था। कार्यक्रम में पद्मश्री कलीमुल्लाह, इतिहासकार रवि भट्ट, सीआरपीएफ के पूर्व डीजी डॉ एपी माहेश्वरी ने भाग लिया।


भारतीयों के फेफड़े पहले से 30 प्रतिशत कमजोर

इस मौके पर, लंग केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष समीर ने बताया कि 'वायु प्रदूषण (Air Pollution) की समस्या गंभीर और तात्कालिक है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के नए मानकों के आधार पर, हमारे देश में विभिन्न ग्रेड के 10 गुना अधिक प्रदूषक हैं। यह मुख्य रूप से हमारे औद्योगिक विकास के साथ-साथ जीवन शैली का भी परिणाम है। प्रदूषित हवा (Polluted Air) में सांस लेने के कारण भारतीयों के फेफड़े (Lungs) पहले से ही 30 प्रतिशत कमजोर हैं। इसलिए, स्वच्छ हवा का मुद्दा अन्य पर प्राथमिकता लेता है।'


'आंदोलन' से ही बनेगी बात

सरकार प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भी नीतियां या कानून बना सकती है। जैसा पहले से ही वाहनों, निर्माण क्षेत्र, औद्योगिक उत्सर्जन, देश में हरित आवरण, कृषि-अपशिष्ट प्रबंधन आदि के संबंध में किया जा चुका है। यह अब स्पष्ट हो चुका है कि जब तक नागरिक समाज इसे 'आंदोलन' नहीं बनाता, तब तक कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है।













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