पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: योगी के समर्थकों से लेकर विरोधी तक असमंजस में हैं कि केन्द्रीय नेतृत्व उनका पावर बढ़ा रहा है या कट कर रहा है। असमंजस यूं ही नहीं है। एक तरफ केन्द्रीय नेतृत्व योगी को गुजरात, कर्नाटक, त्रिपुरा से लेकर पूरे देश में स्टार प्रचारक के रूप में प्रस्तुत कर रहा है तो वहीं खुद योगी के गढ़ में उनके विरोधियों का कद बढ़ाया जा रहा है। कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी को अभी लंबी दूरी तय करनी है, ऐसे में वह यह सब नजरअंदाज कर रहे हैं। योगी को करीब से जानने वालों के लिए एक के बाद एक विरोधियों का कद बढऩा किसी पहेली से कम नहीं है। इस पहेली के राजनीतिक निहितार्थ क्या है, इसे लेकर फिलहाल सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है। यही वजह है कि जब योगी से बगावत कर चुनाव लडऩे वाले उपेन्द्र दत्त शुक्ला का गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए टिकट फाइनल हुआ तो उनके जीत-हार से अधिक योगी के पावर को लेकर ही चर्चा हो रही है।
= चार बार मिल चुकी विरोधियों को तरजीह
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद चार बार ऐसा लगा जब उनकी मर्जी के खिलाफ कभी उनके विरोधी रहे नेताओं को तरजीह दे दी गई। योगी की नापसंद माने जाने वाले सूर्य प्रकाश शाही के मंत्री बनने पर लोगों को आश्चर्य हुआ था,लेकिन तब लोगों ने यह कहते हुए बात टाल दी कि मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी का दिल बड़ा हो गया है। शाही जब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे तब उनके योगी से कड़वे रिश्ते की बात किसी से छिपी नहीं थी। दोनों के बीच की तल्खी कई बार कड़वे बयानों से उजागर भी हुई थी।
इसके बाद जब योगी के धुर विरोधी राज्यसभा सांसद शिवप्रताप शुक्ला को पिछले सितम्बर माह में केन्द्रीय मंत्री बनाया तब राजनीतिक पंडितों ने पूर्वांचल में जातिगत पॉवर बैलेंस की बात कहकर पूरे मामले की व्याख्या की जबकि योगी की बगावत की वजह से ही शुक्ला को 14 वर्षों का राजनीतिक बनवास झेलना पड़ा था। पिछले दिनों हुए महापौर पद के प्रत्याशी के चयन को लेकर भी योगी की पसंद को दरकिनार किया गया। योगी अपने करीबी धर्मेन्द्र सिंह का टिकट फाइनल कर विदेश यात्रा पर चले गए थे। वापस लौटे तब तक संगठन ने 82 साल के बुजुर्ग व्यापारी नेता सीताराम जायसवाल का नाम घोषित कर दिया। योगी ने जायसवाल के लिए खास प्रचार नहीं किया, लेकिन वह एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीतने में सफल रहे।
= योगी के करीबी के खिलाफ लड़ चुके हैं उपेन्द्र
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी के इस्तीफे से खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट को लेकर कयास लगाया जा रहा था कि भाजपा इस सीट पर योगी के पसंद के उम्मीदवार को ही मैदान में उतारेगी। उम्मीदवारों में योगी के करीबी धर्मेन्द्र सिंह, हरिप्रकाश मिश्रा, अधिवक्ता अशोक शुक्ला से लेकर गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी तक के नाम की चर्चा हो रही थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने ऐसे व्यक्ति के नाम की घोषणा कर दी जो योगी के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं।
गोरखपुर लोकसभा सीट से घोषित उम्मीदवार उपेन्द्र शुक्ला कभी गोरखनाथ मंदिर की पसंद नहीं रहे। उपेन्द्र को राजनाथ सिंह, डॉ रमापति राम त्रिपाठी से लेकर महराजगंज सांसद पंकज चौधरी का करीबी माना जाता है। उपेन्द्र शुक्ला कौड़ीराम विधानसभा सीट से तीन बार चुनाव लड़े चुके हैं, लेकिन जीत नहीं पाए। दो बार तो पार्टी ने टिकट भी काट दिया। 2005 में हुए उपचुनाव में उपेन्द्र का टिकट काटकर योगी आदित्यनाथ के करीबी शीतल पांडेय को दे दिया गया था। तब उपेन्द्र बगावत कर निर्दल ही मैदान में कूद पड़े थे। शीतल पांडेय और उपेन्द्र शुक्ल की लड़ाई में रामभुआल निषाद को जीत मिली।
= हाईकमान की पसंद ब्राह्मण प्रत्याशी
दरअसल, भाजपा हाईकमान गोरखपुर उपचुनाव में किसी ब्राह्मण को ही चुनाव लड़ाना चाहता था। उपेन्द्र दत्त शुक्ल सहित कई नाम इसके लिए आगे आए। ब्राह्मण चेहरे के चलते ही योगी के धुर विरोधी माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के भांजे और पूर्व विधानपरिषद अध्यक्ष गणेश शंकर पांडेय का नाम भी उछला। चर्चा है कि योगी के विरोध के चलते ही गणेश शंकर पांडेय के अध्याय को चंद दिनों के लिए बंद कर दिया गया है। बहरहाल उपेन्द्र दत्त शुक्ला के नाम की घोषणा के बाद योगी आदित्यनाथ ने इस बाबत कोई बयान नहीं दिया है। मजबूरी ही सही उपेन्द्र को लोकसभा चुनाव में पहुंचाने के लिए वे गोरखपुर में दस जनसभाएं करेंगे। उधर, टिकट मिलने के बाद उपेन्द्र न सिर्फ मंदिर का चक्कर लगा रहे हैं बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ में कसीदे भी पढ़ते नजर आ रहे हैं।
= त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद
= 29 साल से सीट पर गोरक्षपीठ का कब्जा
गोरखपुर लोकसभा सीट पर पिछले 29 साल से लगातार गोरक्षपीठ का कब्जा रहा है। वर्ष 1989 से अवैद्यनाथ के सांसद बनने से लेकर यह सिलसिला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इस्तीफा देने के बाद ही थमा है। 1989 में ब्रह्मïलीन हुए अवैद्यनाथ हिन्दू महासभा से गोरखपुर के सांसद चुने गए थे। 1991 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए। उन्होंने अगला संसदीय चुनाव भी जीता और 1998 तक सांसद रहे।
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ ने संसदीय सीट की कमान संभाली और सबसे कम उम्र के सांसद चुने गए। योगी ने पांच बार न केवल जीत हासिल की बल्कि रिकार्ड मतों से जीतते में भी सफल रहे। गोरक्षपीठ से राजनीति का रिश्ता ब्रहमलीन महंत दिग्विजयनाथ के समय शुरू हुआ था। दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1967 में बतौर निर्दल प्रत्याशी हासिल की थी। महंत दिग्विजयनाथ 1970 तक सांसद रहे।
1989 में एक बार फिर महंत अवैद्यनाथ ने संसदीय चुनाव जीता और बाद में इसी सिलसिले को 2017 तक योगी आदित्यनाथ ने बढ़ाया। गोरखपुर की लोकसभा सीट पर दूसरी बार लोकसभा उपचुनाव हो रहा है। पहली बार 1970 में महंत दिग्विजयनाथ के निधन के बाद उपचुनाव कराना पड़ा था।
लोकसभा सीट पर आजादी के बाद 17 बार चुनाव हो चुके हैं। जीत की बाजी कांग्रेस और भाजपा के हाथ ही लगी है। अभी तक सपा और बसपा का यहां खाता नहीं खुल सका है। 1952 से 1967 तक कांग्रेस के सिंघासन सिंह ने चुनाव जीता। इसके बाद 1971 में नरसिंह नारायण आंैर 1977 और 1980 में हरिकेश बहादुर के हाथ जीत का बाजी लगी। गैर गोरक्षपीठ के आशीर्वाद से जीतने वाले अंतिम कांग्रेसी नेता मदन पांडेय थे, जिन्होंने वर्ष 1984 में जीत हासिल की थी।= योगी ही सबसे बड़े फैक्टर
भाजपा, सपा से लेकर कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों को देखते हुए अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है। उपेन्द्र दत्त शुक्ला को सिर्फ इसलिये टिकट दिया गया है ताकि ब्राह्मणों को खुश किया जा सके। दरअसल, गोरक्षपीठ पर ठाकुरों को प्रश्रय देने का आरोप लगता रहा है। ऐसे में ब्राह्मण पैरोकारों की तरफ से ब्राह्मण उम्मीदवार की मांग लंबे समय से की जा रही थी। इसी जातिगत संतुलन के लिए शिवप्रताप शुक्ला को राज्यसभा का सांसद बनाने के बाद केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। वहीं प्रवीण निषाद को उतारकर सपा ने निषाद वोटों पर निशाना साधा है।
कांग्रेस डॉ सुरहिता चटर्जी करीम के बहाने ब्राह्मण और मुस्लिम वोटों के साथ भाजपा से नाराज प्रबुद्ध वर्ग को टॉरगेट करने की कोशिशों में जुटी है। प्रमुख दलों ने भले ही जातिगत गुणा-भाग में प्रत्याशियों की घोषणाएं की हों, लेकिन हकीकत यह है कि लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ही सबसे बड़े फैक्टर हैं। यहां न विकास मुददा है और न ही इंसेफेलाइटिस। उपेन्द्र शुक्ला भले ही प्रत्याशी हों, लेकिन विरोधी अच्छी तरह जानते हैं कि उनका मुकाबला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से है। प्रत्याशी चयन में भले योगी की नहीं चली हो, लेकिन प्रतिष्ठा उन्हीं की दांव पर लगी है। जीत और हार की बात छोड़ दें, मतों के अंतर में भी बड़ा फेरबदल हुआ तो योगी की सक्रियता पर सवाल उठना तय है।
लोकसभा सीट
. मतदान -11 मार्च
. मतगणना -14 मार्च
. महिला वोटर -10,72,003
. कुल वोटर -19,49,238
. ईवीएम की संख्या -2355