लखनऊ। अपनी जिन परियोजनाओं के मार्फत बसपा सुप्रीमो मायावती सम्राट अशोक और मुगल बादशाहों की तरह कालजयी होना चाहती थीं वे कुछ सालों में ही अपना नूर खोती नजर आ रही हैं। सूबे में मायावती की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं लखनऊ, ग्रेटर नोएडा और नोएडा में पसरी है। इन स्थानों पर बने नौ स्मारकों-पार्कों पर कुल 5919 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस खर्च में जमीन की कीमत शामिल नहीं है। खास बात यह है कि इन सभी परियोजनाओं में कुल 5634 कर्मचारी रखरखाव के लिए नियुक्त किए गए थे। दिलचस्प यह है अखिलेश यादव सरकार ने भी इन लोगों को नहीं हटाया और सरकारी खजाने से वेतन भी दिया।
दोगुने दाम पर खरीदे थे पत्थर:
मायावती की शायद ही कोई परियोजना हो जिसके पत्थर बीते पांच साल में चटखने न लगे हों। इन सबकी वजह कैग और लोकायुक्त की रिपोर्ट में साफ तौर पर उजागर की गयी है। लोकायुक्त के निर्देश पर खनन निदेशक की रिपोर्ट भी इन परियोजनाओं में इस्तेमाल किए गये पत्थरों के गोलमाल की कहानी कहती है। पत्थरों को न केवल दोगुने दाम पर खरीदा गया बल्कि पत्थर आपूॢत करने वाली दो तिहाई कंपनियों के पत्थरों के खनन लाइसेंस ही खत्म हो चुके थे। 1090 चौराहे के पास बिना नजर दौड़ाए दिखने वाला मंजर बहुत कुछ बयां कर देगा। यहां पर पीसा की मीनार की तरह झुकी दीवार स्थापत्य कला का नहीं बल्कि इस स्थापना की गलतियों की कहानी बयां करती है। जरा सा आगे बढ़ते ही दीवारों के बीच झांकता सरिया यह बता देगा कि निर्माण का स्तर क्या है।
घटिया सामग्री का किया इस्तेमाल:
पूरी दीवारों में कई जगह पत्थरों ने साथ छोड़ दिया है। अब वहां अंदर की सीमेंट मुंह चिढ़ा रही है। सूखे फौव्वारे और जंग लगे पाइप इस बात की गवाही दे रहे हैं कि गुणवत्ता किस तरह की है। कांशीराम इको गार्डन में बदहाली रखरखाव की कमी से ज्यादा घटिया सामग्री की कहानी बता रही है। यहां पर तालाब अब खेल का मैदान बन चुका है और वह भी ऊबड़-खाबड़। यहां पर रास्तों के पत्थर अब गड्डों में तब्दील हो चुके हैं और फुटपाथ के टूटे पत्थर इन स्थलों को अजर अमर बनाने के दावों की कलई खोल रहे हैं। फौव्वारा चिटक चुका है और पत्थर का पेड़ धाराशाही हो चुका है। जिन धरातलों पर पत्थर के बने जानवर टिकाए गये हैं वह अब बता रहा है कि वे पत्थर से नहीं ईंटों से बने हैं।
आलमबाग के वीआईपी मार्ग पर बने ग्रिल और पत्थर जो फौलादी बताए गये थे अब स्मैकियों के कांपते हाथों की ताकत के आगे नतमस्तक हैं। आगे की स्लाइड में ख़बर जारी...
जांच के नाम पर रस्मअदायगी:
अखिलेश सरकार ने इन परियोजनाओं की जांच के लिए आयोग बनाने का वादा घोषणापत्र में किया था पर लोकायुक्त की रस्मी जांच कराकर इस पर लीपापोती कर दी। यही नहीं अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने इन स्मारकों के समाजवादी इस्तेमाल का ढिंढोरा भी पीटा था। वादा किया था कि इन्हें शादी ब्याह के लिए किराए पर दिया जाएगा मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं।
जांच में काली कमाई का खुलासा:
ठ्ठ लोकायुक्त की जांच व कैग रिपोर्टें बताती हैं कि स्मारकों के निर्माण में ऊंची दरों पर भुगतान किया गया। करोड़ों रुपये बेवजह अधिक खर्च कर दिए गए। निर्माण एजेंसी राजकीय निर्माण निगम पर भी सवाल उठे हैं। कमाई के लिए पत्थरों की नक्काशी चुनार के बजाय राजस्थान में करायी गई। अगर चुनार में नक्काशी कराई जाती तो ढुलाई में ही 15.60 करोड़ रुपये बच जाते।
ठ्ठ इतना ही नहीं इन परियोजनाओं को तामीर कराने के लिए पहले से मौजूद इमारतों को जमींदोज करने के लिए 2.84 करोड़ रुपये अधिक खर्च किए गये।
ठ्ठ चहारदीवारी बनाने और ब्लाकों की स्थापना का काम ज्यादा दर पर देने के चलते प्रदेश सरकार को 22.16 करोड़ रुपए अधिक खर्च करने पड़े। इन कामों को दो अलग-अलग दर पर कराया गया। अनावश्यक रुप से 25 रुपये प्रति घन फिट का भुगतान थर्माकोल के लिए किया गया। आगे की स्लाइड में ख़बर जारी...
स्मारकों की सुरक्षा में लगे हैं सैकड़ों कर्मचारी:
- मायावती सरकार ने 1362 करोड़ रुपये खर्च कर लखनऊ के गोमतीनगर में भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल बनाया। 94 एकड़ में फैले इस स्मारक के रखरखाव के लिए 893 कर्मचारी हैं।
- अंबेडकर परिवर्तन स्थल के दो पार्क और स्थलों पर 750 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 80 एकड़ के इस स्मारक के रखरखाव के लिए 962 कर्मचारी हैं। इसमें अंबेडकर परिवर्तन प्रतीक स्थल, अंबेडकर विहार और कै$फेटेरिया है।
- जिला जेल, महिला जेल और आदर्श कारागार को गिराकर 180 एकड़ क्षेत्र में मायावती ने कांशीराम इकोगार्डेन बनवाया। इस पर 1075 करोड़ रुपये खर्च हुए। 1261 कर्मचारी इसका रखरखाव करते हैं।
- कांशीराम स्मारक स्थल साढ़े 44 एकड़ में बना है। 727 करोड़ रुपये खर्च कर बनवाए गए इस स्थल पर 30 हाथियों की प्रतिमाएं भी लगी हैं। 631 कर्मचारी इसकी देखभाल करते हैं।
- यहीं पर बुद्ध विहार शांति उपवन है। मायावती, कांशीराम, गौतम बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ ही बौद्ध पुस्तकालय वाला यह स्मारक 458 करोड़ में बना है। इसकी देखभाल के लिए 653 कर्मचारी रखे गये हैं।
- रैलियों के लिए मुफीद माने जाने वाले रमाबाई अंबेडकर रैली स्थल और रैन बसेरा पर मायावती ने 655 करोड़ खर्च किए और इसकी देखरेख के लिए 960 कर्मचारी लगे हैं।
- नोएडा में बने दलित प्रेरणा स्थल का आकार साढ़े 86 एकड़ का है। 750 करोड़ रुपये खर्च कर बने इस स्मारक के लिए 187 कर्मचारी तैनात हैं।
- अपने गांव में मायावती ने 25 एकड़ में अंबेडकर पार्क और 10 एकड़ में गौतमबुद्ध पार्क बनवाया। इन पर क्रमश: 96 करोड़ और 46 करोड़ रुपये खर्च हुए। इन पार्कों के रखरखाव के लिए 87 कर्मचारी रखे गये हैं।
- बदहाली सरकारी विद्वेष का ही परिणाम है। ये केवल बसपा के महापुरुष नहीं हैं। इन्हीं महापुरुषों की वजह से ही सपा के इन नेताओं को सीएम और मंत्री बनने का मौका मिला। यह रखरखाव की कमी है और यही वजह कि सारे स्मारक बदहाल हैं। सरकार बदलते ही इन स्मारकों की सूरत भी बदल जाएगी।
- स्मारक रखरखाव नहीं बल्कि घोटाले का शिकार है। एक नहीं कई एफआईआर भी दर्ज हुई है। यह बंदरबाट का तरीका था। कमाई सिर्फ इंजीनियरों और अफसरों तक सीमित नहीं थी बल्कि बड़ा हिस्सा ऊपर भी गया था।