Mahila Apradh : क्या कड़ा दंड रोक सकता है महिलाओं के साथ अपराध या जरूरी है बदलाव

Mahila Apradh : Newstrack.Com ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध मामले में विभिन्न मनोचिकित्सकों और मनोविज्ञानियों से बातचीत की।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shivani
Update: 2021-06-19 12:42 GMT

सांकेतिक फोटो 

Mahila Apradh: महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों (Crime Against Women) को रोकने के लिए क्या कड़े दंड (Severe Punishment) पर्याप्त हैं या इन्हें और कड़ा किए जाने की जरूरत है या इसके अलावा भी कोई उपाय है जिससे हम महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोक सके।

Newstrack.com ने इस संबंध में विभिन्न मनोचिकित्सकों और मनोविज्ञानियों डॉ एस अनुराधा, डॉक्टर ज्योत्सना सिंह, डॉ शकुंतला कुशवाहा और वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ अजय तिवारी से बातचीत की।
इन सबका यह कहना था कि हमने देखा है कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोकने के लिए कड़े कानून कोई नजीर नहीं बन पाए, चाहे वह पास्को एक्ट (Posco Act) का मामला हो या महिलाओं के प्रति होने वाले यौन अपराधों को रोकने आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक के प्रावधानों (
Strict Punishment)
 का। किसी भी अपराधी में इन कानूनों को लेकर दहशत नहीं दिखी बल्कि महिलाओं के प्रति होने वाले जारी रहे। इनका कहना था दंड दिया जाए लेकिन उसका असर भी दिखाई दे।

मेंटल हेल्थ को ठीक करने की दिशा में काम करना होगा

मनोविज्ञानियों का कहना है इसके लिए हमें समाज में मेंटल हेल्थ को ठीक करने की दिशा में काम करना होगा और यह प्रयास सरकारी स्तर पर होने चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में जबकि कोरोना के लेकर के जनता कर्फ्यू या कड़े प्रावधान किए गए, लॉकडाउन किया गया, कोरोना बुरी तरह फैला। लोगों ने प्रियजन खोए। इन सबके चलते भी लोगों की मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ा है।


 हमें जनता की मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना होगा तभी हम समाज में होने वाले अपराधों को रोक पाएंगे चाहे वह चेन स्नेचिंग का मामला हो या महिलाओं के प्रति किसी भी अपराध का। हर अपराध का पीड़ित महिला पर उसका दूरगामी असर होता है और कई बार यह घातक रूप भी ले लेता है अगर महिला की उचित ढंग से काउंसलिंग नहीं की गई तो।

समाज मे ये फीलिंग आनी चाहिए कि महिलाओं के प्रति अपराध गलत है। इसको रोकने की जिम्मेदारी सबकी है।
किसी भी नारी के साथ हुई आकस्मिक नकारात्मक घटना उसके भावनात्मक मनोभाव को परिवर्तित कर देता है जिसकी वजह से उसमें एक पैनिक ऐंज़ाइयटी उत्पन्न हो जाती है जैसे घबराहट, बेचैनी, पूरे शरीर में कंपकंपी आना, पसीना आना तथा पूरे शरीर में थकान उत्पन्न होना।
जब पीड़ित महिला के सामने किसी भी रूप में घटनाओं की बार बार पुनरावृत्ति होने लगती है। बेशक वह उसके साथ न हो तो यह PTSD नामक बीमारी में परिवर्तित हो जाती है जिसमें मनोवैज्ञानिक चिकित्सा की आवश्यकता भी होती है।

यह बीमारी न्यूनतम छह माह तक किसी न किसी रूप में दिखती रहती है परन्तु धीरे धीरे सामान्यता आने लगती है। यह तब होगा जब घटनाओं की लगातार पुनरावृत्ति न हो।
उन्होंने जोर देकर कहा की कड़े कानूनों पर फोकस करने के बजाय हमें लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने पर ध्यान देना चाहिए कभी हम समाज को सही दिशा में ले जा पाएंगे। डंडे के जोर पर लोगों का मानसिक स्वास्थ्य नहीं सुधारा जा सकता है।
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