Savitri Bai Khanolkar: परमवीर चक्र से जुड़ी है सावित्री बाई की कहानी
Savitribai Khanolkar: बहुत कम लोग जानते होंगे कि सावित्री बाई खानोलकर को सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र को डिज़ाइन करने का गौरव प्राप्त है।
Savitri Bai Khanolkar: सावित्री बाई खानोलकर (Savitri Bai Khanolkar) उन शख्सियतों में से हैं जिनका जन्म तो पश्चिम में हुआ किंतु उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय संस्कृति को अपनाया और भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। बहुत कम लोग जानते होंगे कि सावित्री बाई खानोलकर को सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र को डिज़ाइन करने का गौरव प्राप्त है।
सावित्री बाई के पिता हंगरी के व माँ रूसी थीं। सावित्री का जन्म (Savitri Bai Khanolkar birthday) 20 जुलाई 1913 को स्विट्जरलैंड में हुआ था और जन्म के समय उनका नाम इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज था। इवा के जन्म के तुरन्त बाद इवा की माँ का देहान्त हो गया। उस समय उनके पिता जेनेवा में लीग ऑफ़ नेशन्स में लाइब्रेरियन थे। पिता के पुस्तकालय में काम करने का कारण इवा के लिए छुट्टी के दिनों में किताबें पढ़ने की खूब सुविधा थी। इन्हीं किताबों को पढ़ते हुए किसी समय भारत के प्रति उसके मन में प्रेम और आकर्षण जागा। एक बार जब वह अपने पिता तथा अन्य परिवारों के साथ रिवियेरा के समुद्रतट पर छुट्टी मना रही थी, तब उनकी मुलाकात भारतीयों के एक ग्रुप से हुई। इस ग्रुप में ब्रिटेन के सैन्डहर्स्ट मिलिटरी कॉलेज के एक भारतीय छात्र विक्रम खानोलकर भी थे। वे पहले भारतीय थे जिससे इवा का परिचय हुआ। उस समय वह 14 वर्ष की थी। इवा और विक्रम बाद में संपर्क में रहे।
सावित्री बाई खानोलकर ने विक्रम से की शादी (Savitri Bai Khanolkar married Vikram)
पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम भारत लौटे और सिख बटालियन से जुड़ गए। एक दिन इवा भारत आ पहुँची और विक्रम से कहा कि वह उन्हीं से शादी करेगी। 1932 में मराठी रिवाजों के साथ इवा और विक्रम का विवाह हो गया। विवाह के बाद इवा का नया नाम रखा गया सावित्री रखा गया।
विवाह के बाद सावित्री बाई ने पूर्ण रूप से भारतीय हिन्दू संस्कृति को अपना लिया। कैप्टन विक्रम जब मेजर बने और उनका तबादला पटना हो गया तो सावित्री बाई ने पटना यूनिवर्सिटी से वेदांत, उपनिषद और हिन्दू धर्म का गहन अध्ययन किया।
इन विषयों पर उनकी पकड़ इतनी मज़बूत हो गयी कि वे रामकृष्ण मिशन में प्रवचन देने लगीं। सावित्री बाई चित्रकला में भी माहिर थीं तथा उन्होंने पं. उदय शंकर से क्लासिकल नृत्य भी सीखा।
सावित्री बाई द्वारा बनाया गया पदक (Medal made by Savitri Bai)
1947 में भारतीय सेना को भारत पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को सम्मनित करने के लिए पदक की आवश्यकता महसूस हुई। मेजर जनरल हीरा लाल अट्टल ने पदकों के नाम भी तय किये - परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र। इनकी डिज़ाइन बनाने के लिए मेजर जनरल अट्टल को सावित्री बाई सबसे योग्य लगीं। अट्टल ऐसा पदक चाहते थे जो भारतीय गौरव को प्रदर्शित करता हो। सावित्री बाई ने ऐसा पदक बना कर दिया जो भारतीय सैनिकों के त्याग और समर्पण को दर्शाता है।
सावित्री बाई ने पदक के रूपांकन के लिये इन्द्र का वज्र चुना क्यों कि वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था और इस वज्र के लिये महर्षि दधीची को अपने प्राणों तथा देह का त्याग करना पडा़ था।
परमवीर चक्र का पदक कांसे से 3.5 सेंटीमीटर मी के व्यास का बनाया गया है और इसमें चारों ओर वज्र के चार चिह्न अंकित हैं। पदक के बीच का हिस्सा उभरा हुआ है और उसपर राष्ट्र का प्रतीक चिह्न है। पदक के दूसरी ओर कमल का चिह्न है और हिन्दी व अंग्रेज़ी में परमवीर चक्र लिखा हुआ है।
पहला परमवीर चक्र किसे मिला
संयोग से सबसे पहला परमवीर चक्र (param vir chakra) सावित्री बाई की पुत्री के देवर मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत प्रदान किया गया, जो 3 नवम्बर 1947 को शहीद हुए थै। इस युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी ने श्रीनगर हवाईअड्डे की रक्षा करते हुए 300 पकिस्तानी सैनिकों का सफ़ाया किया था। इस लड़ाई में भारत के लगभग 22 सैनिक शहीद हुए थे।
1952 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर के देहांत हो जाने के बाद सावित्री बाई ने अपने जीवन को अध्यात्म की तरफ़ मोड लिया। वे दार्जिलिंग के राम कृष्ण मिशन में चली गयीं। अपने जीवन के अन्तिम वर्ष उन्होंने अपनी पुत्री मृणालिनी के साथ गुजारे। 26 नवम्बर 1990 को उनका देहान्त हो गया।